इंटरनेशनल नर्स डे: एक सरकारी अस्पताल की नर्स के 24 घंटे, जानिए कैसे बीतते हैं
अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस पर जानिए कैसे बीतते हैं एक नर्स के 24 घंटे ... घर और अस्पताल मिलाकर एक नर्स दिन के 19-20 घंटे काम करती है। अगर अस्पताल में कभी किसी नर्स को आप बैठा देख लें या उन्हें तेज आवाज़ में बोलते हुए सुन लें तो यह धारणा बिलकुल न बनाएं कि वह लापरवाही करती है।
आपने कभी सोचा है अस्पताल में हमें आपको दवा और सीरींज देने वाली, देखभाल करने वाली नर्स की जिंदगी कैसी होती होगी ?
"नर्स बहन जी हमारा नम्बर कब आएगा ?"
इस सवाल का जबाब मालती देवी दे पाती उससे पहले ही दूसरी तरफ से आवाज़ आयी, " बहन जी ये हमारा पर्चा है हमें दवा कहां से मिलेगी ? ... बीस वर्षों से स्टाफ नर्स की जिम्मेदारी सम्भाल रही मालती देवी ने दोनों ही सवालों के जबाब बड़ी ही सहजता से दिए। उनके चेहरे की मुस्कराहट और शांत स्वभाव को देखकर कोई ये नहीं समझ सकता कि ये महिला सुबह चार बजे अपने घर के कितने काम निपटाकर आयी होगी।
दिन के उन्नीस घंटे...घर और अस्पताल...थकती नहीं आप? इस सवाल के जबाब में मालती देवी ने मुस्कुराते हुए बड़ी सहजता से जबाब दिया, "दोनों काम बड़े ही आसान है, घर पर काम करना हर महिला की जिम्मेदारी है उसे निभाती हूँ, अस्पताल में मरीज हमारे भरोसे आते हैं उनकी देखरेख करना फर्ज है, अपना फर्ज पूरा करते हैं तो अच्छा लगता है।"
जी हाँ हम बात कर रहे हैं एक स्टाफ नर्स की, जो परिवार और अस्पताल की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं। मालती देवी (51 वर्ष) देश की पहली स्टाफ नर्स नहीं हैं जो परिवार और अस्पताल की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हों बल्कि मालती की तरह हजारों नर्सें 24 घंटे में महज पांच से छह घंटे ही सो पाती हैं। इंटरनेशनल नर्स डे पर सलाम इन नर्सों को, जो घर और मरीज की देखरेख बेहतर तरीके से कर पाती हैं।
गांव कनेक्शन संवाददाता ने स्टाफ नर्स मालती देवी के साथ पूरा एक दिन बिताया। ये जानने की कोशिश की कि आखिर एक नर्स जो कहीं नौकरी करती है वो महिला अपने घर और अस्पताल के काम में कैसे सामंजस्य बिठा पाती है। इस नर्स की दिनचर्या वैसी नहीं थी जैसी हम सोचते हैं।
लखनऊ के शुक्ला बिहार पारा चौकी में रहने वालीं मालती देवी हर सुबह की तरह आज भी चार बजे उठ कर अपनी दैनिक दिनचर्या निपटाकर किचन में चली गईं। मालती देवी ने हर दिन की तरह आज भी सब्जी रोटी फटाफट बनानी शुरू कर दी। किचन में इनके काम करने की फुर्ती देखते ही बनती है। फटाफट गैस के एक चूल्हे पर आलू उबलने रख दिए और आटा गूथने लगीं।
जब मैंने उनसे ये पूंछा कि आपको हर सुबह इतनी जल्दी उठना आलस्य नहीं लगता तो मालती देवी ने अदरक कूटते हुए कहा, "एक महिला की जिन्दगी ऐसी ही बनी होती है उसे घर बाहर दोनों काम करने होते हैं, अगर हम इतनी जल्दी उठकर घर का काम न निपटाएं तो बच्चे और पति दिनभर भूखें रह जाएंगे।" मालती के इस जबाब में उनकी कोई शिकायत नहीं थी बल्कि उन्हें ये लगता है कि एक महिला अगर नौकरी करती है तो उसे घर बाहर की जिम्मेदारी सम्भालनी ही पड़ेगी। शायद मालती की तरह कोई भी कामकाजी महिला भी यही सोचती होगी।
मालती मेरे सवालों के जबाब तो दे रही थी लेकिन उनके हाथ लगातार काम कर रहे थे क्योंकि मालती ने अगर अपने काम की रफ्तार कम कर दी तो उन्हें अस्पताल पहुंचने में देर हो जायेगी। मालती मूल रूप से हरदोई जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर सुभानखेड़ा गाँव की रहने वाली हैं।समाज सेवा करना इनका शौक था तो इंटर की पढ़ाई के बाद नर्सिंग की पढ़ाई की। इनकी मेहनत और लगन से वर्ष 1999 में ये नर्स बन गईं, तबसे ये परिवार और अस्पताल दोनों के कामों में सामंजस्य बिठा रही हैं।
अदरक वाली चाय पति के लिए नाश्ता साढ़े छह बजे मालती उनकी चेयर पर पहुंचा देती हैं। मालती को हर दिन साढ़े सात बजे घर छोड़ना होता है।घर से अस्पताल की दूरी चार किलोमीटर है जब इन्हें साधन नहीं मिलता तो इन्हें मजबूरन पैदल जाना पड़ता है क्योंकि जहां ये रहती हैं वहां से इनके अस्पताल रानी लक्ष्मीबाई संयुक्त चिकित्सालय, राजाजीपुरम के बीच ऑटो और ई-रिक्शा बहुत कम चलते हैं। घर से अस्पताल निकलते वक़्त इन्हें इस बात की कभी चिंता नहीं रहती कि इन्होंने नाश्ता किया या नहीं, पर पति का लंच बाक्स बच्चों का खाना कभी कम न पड़े ये इनकी पूरी कोशिश रहती है।
आज भी घर से निकलने के बाद एक किलोमीटर पैदल चलने के बाद इन्हें ऑटो मिला। ऑटो में मैंने इनसे पूछा कि रोज की भागमभाग से आप परेशान नहीं होती हैं। इन्होंने हर बार की तरह फिर हँसते हुए जबाब दिया, "ये हर दिन की भागमभाग है कोई नई बात नहीं है, बच्चों को अच्छी शिक्षा देना है, खुद भी अपने पैरों खड़े होना है तो ये सब काम तो करना ही पड़ेगा। पहले तो बच्चे छोटे थे, सास-ससुर रहते थे तब ज्यादा काम थे अब तो बच्चे बड़े हो गये हैं पहले से अब कम काम है।"
अस्पताल के गेट पर उतरते ही लम्बी चाल से मालती अपने वार्ड में पहुंची। पांच मिनट में ही यूनीफार्म पहनकर जैसे ही बाहर आयीं वहां मरीजों की लम्बी लगी लाइन में बैठी महिलाएं जैसे उन्हीं के आने का इन्तजार कर रहीं हों।"
एक महिला मरीज ने पर्चा देते हुए मालती देवी से कहा, "बहन जी ये दवाई का पर्चा है डॉ साहब ने लिखा है कहां मिलेगी ये दवा, मालती देवी ने पर्चा लिया और अस्पताल के अन्दर बने दवा काउंटर पर पहुंचकर दवा लें आयीं। मालती देवी जिस स्पीड से घर के किचन में काम कर रहीं थी उसी स्पीड से अस्पताल में अपनी ड्यूटी निभा रहीं थी। मालती की तरह मैं इस वार्ड में कई महिला नर्सों से मिली सभी के चेहरे पर खुशी थी सभी अपना-अपना काम कर रहीं थीं उन्हें देखकर ये लग नहीं रहा था कि ये सभी चार या पांच बजे जगकर एक नौकरी अपने घर भी करके आयीं हैं।
जब मालती देवी से वहां पड़ी सीट पर मैंने बैठने के लिए कहा तो उन्होंने कहा, "अरे नहीं सुबह-सुबह घर से आकर अगर बैठ गये तो फिर मरीजों को कौन देखेगा, सुबह से लाइन में कितने लोग बैठें हैं इन्हें देखना है।" मालती देवी सुबह आठ बजे से दो तीन बजे तक लगातार अस्पताल में मरीजों के बीच रहकर अपना काम करती रहती। चार बजे घर पहुंचने के बाद रात का खाना, घर के जरूरी काम निपटाना शुरू हो जातें है। मालती देवी 11 बजे रात में सोने के लिए अपने बिस्तर में पहुंच पाती हैं।
नर्सों को लेकर अकसर हमारे और आपके दिमाग में कई तरह की छवि बनी होती है लेकिन जब एक दिन हमने उनके साथ बिताया तब पता मैं ये समझ पायी एक नर्स 19 से 20 घंटे लगातर काम करती है अगर इस दौरान हमने उसे कहीं बैठा या तेज आवाज़ में बोलना सुन भी लें तो यह धारणा न बनाएं कि वह काम नहीं करती लापरवाही करती है।
नोट ये खबर मूल रुप से साल 2018 में प्रकाशित की गई थी।