राजस्थान में लॉकडाउन के चलते ऊंट पालकों के सामने ऊंटनी का दूध बेचने में आ रहीं मुश्किलें

Update: 2020-06-01 05:35 GMT

जो ऊंटनी का दूध पहले अस्सी रुपए लीटर बिकता था, लॉकडाउन के चलते आज उसके खरीददार नहीं मिल रहे हैं। राजस्थान के सैकड़ों ऊंट पालकों के सामने ये बड़ी समस्या खड़ी हो गई है।

राजस्थान के जैसलमेर जिले के सांवता गाँव के ऊंट पालक सुमेर सिंह भाटी के पास 400 ऊंटनियां हैं। इनसे हर दिन करीब सौ लीटर तक दूध मिल जाता है। लॉकडाउन के पहले लोग खुद आकर उनकी डेयरी से दूध खरीदकर ले जाते और वो भी जयपुर, मुंबई, जैसलमेर जैसे शहरों तक अपना दूध पहुंचाते थे। लेकिन अब उनके जैसे ऊंट पालकों के सामने समस्या आ गई है कि दूध का क्या करें।


सुमेर सिंह बताते हैं, "मेरे पास खुद की 400 ऊंटनियां हैं और हमारे यहां बीस किमी के दायरे में लगभग 20 हजार ऊंटनियां हैं। हर दिन हमारे यहां करीब दस हजार लीटर दूध होता है, लेकिन अभी कहीं जा नहीं रहा। मेरी खुद की डेयरी में हर दिन सौ लीटर दूध हर दिन होता है, लेकिन लॉकडाउन के चलते बिकना मुश्किल हो रहा है। पहले हमारे यहां से दूध जैसलमेर सिटी के साथ ही मुंबई, जयपुर जैसे शहरों तक जाता था। लेकिन तीन महीने से सब बंद पड़ा है। हर दिन का चार हजार का दूध बिक जाता था, लेकिन अब सब बंद है।"

ऊंट राजस्थान का राज्य पशु भी है और देश में सबसे ज्यादा ऊंट राजस्थान में ही हैं। बीते कुछ सालों में अवैध शिकार, बीमारी और उपयोगिता में कमी आने के कारण इनकी संख्या लगातार कम हो रही है। बीसवीं पशुगणना के अनुसार देश में 2,51,956 हैं, जबकि साल 2012 में हुई 19वीं पशुगणना के अनुसार 4,00,274 ऊंट थे। वहीं राजस्थान में साल 2012 में हुई 19वीं पशुगणना के अनुसार 3, 25, 713 ऊंट थे, जो साल 2019 हुई बीसवीं पशुगणना में घटकर 2,12,739 ही रह गए हैं।


सुमेर सिंह ऊंटों के संरक्षण के लिए श्री देगराय उष्ट्र संरक्षण एवं दूध विपणन विकास सेवा समिति भी चलाते हैं। वो बताते हैं, "सरकार ने ऊंट को राजकीय पशु तो घोषित कर दिया, लेकिन ध्यान नहीं दिया। सबसे ज्यादा ऊंटनियां जैसलमेर जिले में ही हैं, इसके साथ ही दूसरे जिलों जैसे बिकानेर, बाड़मेर और जालौर जिले भी ऊंटनियों का गढ़ है। यहां पर भी हजारों ऊंटनियां हैं।अब इतना दूध होता है कि हम अपने घरों में प्रयोग करते हैं और ऊंटनी के बच्चों को ही पिला देते हैं।"

वर्ष 1984 में स्थापित राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र पिछले डेढ़ दशक से ऊंटनी के दूध और इसकी उपयोगिता पर काम कर रहा है। इस संस्थान के शोध के अनुसार ऊंटनी का दूध कई बीमारियों के उपचार में लाभकारी है। केंद्र ऊंट पालकों को ऊंट के दूध से कई तरह के उत्पादन बनाने का प्रशिक्षण भी देता है। सुमरे बताते हैं, "हम लोग डेयरी में ऊंटनियों के दूध से आइसक्रीम, खीर जैसे प्रोडक्ट भी बनाते थे, लेकिन अभी सब बंद पड़ा है।"


ऊंटनी के दूध में रोग प्रतिरोधकता क्षमता होती है। इससे कई रोगों का इलाज हो सकता है। ऊंटनी के दूध का प्रयोग डायबिटीज और मंदबुदि बच्चों के लिए किया जाता है। इसके साथ ही उच्च रक्तचाप, टीबी, बच्चों में दूध एलर्जी कई बीमारियों बहुत उपयोगी है।

यहां के ऊंट पालकों के सामने सबसे बड़ी समस्या चरागाह की आ रही है, पहले सैकड़ों एकड़ खाली जमीन में चरागाह थे, जहां पर लोग अपने ऊंटों को चराने ले जाते थे। सुमेर बताते हैं, "ऊंटों के लिए चारे की भी बहुत समस्या होती है, पहले ऊंटों के चारागाह थे, जहां पर हम ऊंटों को चराने ले जाते थे, लेकिन उस सरकारी जमीन पर सोलर प्लांट लगाए जा रहे हैं। अगर हमें ऊंटों को चराने की जगह ही नहीं मिलेगी तो उन्हें खिलाएंगे क्या। 

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