अब और डरकर नहीं रहेंगे एलजीबीटी समुदाय के लोग

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद समाज का ये तबका भी बिना किसी से डरे अब ये भी खुली हवा में सांस ले सकते हैं। हमने ऐसे ही कुछ लोगों से बात की जिन्हें अब तक समाज का डर था, कि लोग उनके संबंध को स्वीकारेंगे या नहीं, लेकिन अब वो खुश हैं कि देर से ही सही लेकिन सही फैसला तो आया।

Update: 2018-09-13 13:50 GMT

लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को रद्द करके दो वयस्कों के बीच समलैगिंक संबंधों को मंजूरी दे दी है। कोर्ट के फैसले के बाद हम भारतियों को दूसरी आजादी मिली है, जिन्हें अंग्रेजों द्वारा अधनियमित कानून को बनाए रखा गया है। अब एलजीबीटी समुदाय के लोग बेपरवाह, बिना किसी से डरे सड़क पर चल सकते हैं।

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भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में समलैंगिकता को अपराध माना गया था। आईपीसी की धारा 377 के मुताबिक, जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाता है तो इस अपराध के लिए उसे 10 वर्ष की सज़ा या आजीवन कारावास का प्रावधान रखा गया था। इसमें जुर्माने का भी प्रावधान था और इसे ग़ैर ज़मानती अपराध की श्रेणी में रखा गया था। ऐसे में समाज में इन लोगों को गलत नजरों से देखा जाता था।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद ये लोग भी बिना किसी से डरे अब ये भी खुली हवा में सांस ले सकते हैं। हमने ऐसे ही कुछ लोगों से बात की जिन्हें अब तक समाज का डर था, कि लोग उनके संबंध को स्वीकारेंगे या नहीं, लेकिन अब वो खुश हैं कि देर से ही सही लेकिन सही फैसला तो आया। 

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धारा 377 को पहली बार कोर्ट में 1994 में चुनौती दी गई थी। और आखिरकार 24 साल की लंबी लड़ाई के बाद समलैंगिकों को उनका हक मिल गया। अपनी मांगों को लेकर समलैंगिकों ने समय-समय पर देश भर में आंदोलन भी किया लेकिन उन्हें कभी किसी तरह का राजनीतिक समर्थन नहीं मिला। समलैंगिंकता को अपराध से बाहर रखने के लिए 2015 में कांग्रेस सांसद शशि थरूर लोकसभा में प्राइवेट मेंबर बिल लेकर जरूर आए थे लेकिन तब बीजेपी सांसदों ने इसके विरोध में वोटिंग की थी।

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दुनिया के ज्यादातर मुल्कों में समलैंगिकों को अपनी आजादी से जिंदगी जीने का अधिकार हासिल है। कनाडा में 1969 में ही इसे कानूनी मान्यता मिल गई थी... वहां समलैंगिकों को आपस में शादी करने की भी अनुमति है। फ्रांस में 1791 से ही समलैंगिंकता को अपराध से बाहर रखा गया है, ब्रिटेन में 1967 में समलैंगिंको को उनका हक मिला तो अमेरिका में इसे 2003 में कानूनी मान्यता दी गई। रूस में 1993 से समलैंगिंको को साथ रहने का अधिकार है लेकिन वो शादी नहीं कर सकते। ब्राजील में 1830 से ही इसे अपराध की श्रेणी से बाहर रखा गया है.. वहां समलैंगिंको कको आपस में शादी रचाने का भी अधिकार है। ऑस्ट्रेलिया, जापान, चीन, थाइलैंड सभी देशों में समलैंगिकों को उनका हक मिल चुका है। यहां तक की नेपाल में भी 2007 में समलैंगिंको को उनका हक मिल गया। बस पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे देशों में इसे गैरकानूनी माना गया है।

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