चकबंदी का चक्रव्यूह पार्ट-3: उत्तराखंड में लंबी लड़ाई के बाद योगी के गाँव से शुरू हुई चकबंदी

Update: 2017-11-19 09:23 GMT
फोटो: विनय गुप्ता

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चकबंदी का चक्रव्यूह पार्ट -2 : नहीं हुई चकबंदी तो भूखे मरने की आ सकती है नौबत

लखनऊ। देश में चकबंदी की शुरुआत भले ही आजादी के तुरंत बाद हो गई थी, लेकिन देश के अलग-अलग जगहों पर चकबंदी की मांग करने के बाद भी गाँवों में चकबंदी नहीं हुई, लेकिन इसी महीने उत्तराखंड में इसकी शुरुआत हुई।

42 सालों की लंबी लड़ाई के बाद

उत्तराखंड में 42 सालों की लंबी लड़ाई के बाद चकबंदी की शुरुआत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जनपद पौड़ी के यमकेश्वर ब्लॉक की ग्रामसभा सीला के राजस्व ग्राम पंचूर और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के तहसील सतपुली स्थित खेरा गाँव में चकबंदी की शुरुआत हुई। यह जानकारी जिलाधिकारी पौड़ी सुशील कुमार ने दी।

गाँवों से होता गया पलायन

उत्तराखंड में चकबंदी की मांग को लेकर लंबे समय से आंदोलन कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता कपिल डोभाल बताते हैं, “उत्तराखंड चकबंदी आंदोलन की शुरुआत 1975 में दिल्ली में अखिल भारतीय गढ़वाली प्रगतिशील संगठन के गणेश सिंह गरीब ने की थी, इसके बाद लंबा आंदोलन चला। चकबंदी नहीं होने से कृषि घाटे का सौदा बनती गई और गाँवों से पलायन होता गया।''

बंद कर दिए गए चकबंदी कार्यालय

डोभाल ने आगे बताया, “लंबी लड़ाई के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने 1989 में उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में चकबंदी करने का निर्णय लिया, लेकिन कोई योजना और नियमावली नहीं बनने से 1996 में चकबंदी कार्यालय बंद कर दिए गए।“

…तो मैं खेती कर पाता

उत्तराखंड पौड़ी के यमकेश्वर के किसान सुरेश कुमार विष्ट बताते हैं, “मेरे पास 50 नाली जमीन है, लेकिन यह जमीन टुकड़ों-टुकड़ों में यहां-वहां फैली हुई है। हमारे गाँव की आबोहवा पुष्पोउत्पादन और जड़ी-बूटी की खेती के लिए उपयुक्त है। अगर खेत एक जगह हो जाते थे तो मैं खेती कर पाता।''

हजारों किसानों का यही दर्द

ऐसा सिर्फ अकेले सुरेश का कहना नहीं है, बल्कि उत्तराखंड हजारों किसानों का यही दर्द है। चकबंदी को लेकर आंदोलन कर रहे कपिल डोभाल ने बताया कि अब चकबंदी होने से राज्य के लगभग 10 लाख परिवारों का ग्रामीण क्षेत्र में ही रोजगार मिल जाएगा। उन्होंने बताया कि चकबंदी होने से प्रत्येक परिवार अपनी सोच, सुविधा, योग्यता और आवयकता के अनुसार योजना बनाकर खेती कर सकेगा। गाँव के गरीब भूमिहीनों को कृषि के लिए जमीन भी मिल जाएगी। उत्तराखंड में चकबंदी होने से जहां लोगों का उत्साह है, वहीं उत्तर प्रदेश में दर्जनों ऐसे गाँव हैं, जहां पर लोग चकबंदी को लेकर आज भी लोग संघर्ष कर रहे हैं।

1952 से इस गाँव में नहीं हुई चकबंदी

भू-माफियाओं पर नकेल कसने के लिए यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार भले ही नकेल कसने के बड़ी-बड़ी बातें कर रही है, लेकिन जिला चकबंदी विभाग की उदासीनता व भू माफियाओं की मिलीभगत से आजमगढ़ जिले के ब्लाक तहबरपुर के ग्राम पंचायत ददरा-भगवानपुर अंतर्गत पोहीपुर गाँव का 1952 से आज तक कभी चकबंदी ही नहीं हो सकी।

भूमाफिया जमाए हुए हैं कब्जा

इस गाँव के किसान बाबू राम यादव ने बताया, “पोहीपुर गांववासियों की विडंबना रही कि 96 बीघे में फैले इस गाँव में 22 बीघा जमीन बंजर और चाराहगाह है। 74 बीघा जमीन कृषि योग्य है, लेकिन चकबंदी नहीं होने से जमीनों पर भू माफिया कब्जा जमाए हुए हैं। उन्होंने बताया कि 65 वर्षो तक आज तक कोई चकबंदी न होने से भू माफिया और दबंग कृषि और बंजर भूमि पर बड़े पैमाने पर अवैध रूप से कब्जा कर चुके हैं। जिसके चलते आम किसान आज तक विकास से कोसों दूर हैं। चकबंदी न होने से गांव में सड़कें, पानी निकासी, शौचालय आदि निर्माण में आये दिन विवाद हो रहा है। इस गाँव के लोग पिछले दिनों मंडलायुक्त कार्यालय में जाकर धरना देकर ज्ञापन सौंपा।

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