देश में तेजी से बढ़ रही विदेशी साग-सब्जियों की खेती और बाजार

Update: 2017-12-09 19:35 GMT
सभी फोटो साभार: इंटरनेट

भारत में खाने-पीने के शौकीनों की बदौलत जहां फूड सर्विस का बाजार तेजी से बढ़ रहा है, वहीं इसकी वजह से विदेशी साग-सब्जियों की खेती भी देश में तेजी से बढ़ रही है। त्रिनिडाड की मिर्च बिशप्स क्राउन, पेरू की मिर्च अजी अमैरिलो, जापानी साग मिजुना-मित्सुबा, वाइल्ड रॉकेट सलाद पत्ता और थाइ ग्रीन्स की खेती भारत में शुरू हो चुकी है।

तेजी से बढ़ी है मांग

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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के मुताबिक, विदेशी साग-सब्जियों का बाजार सालाना 15 से 20 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। नेशनल रेस्तरां एसोसिएशन ऑफ इंडिया और टेक्नोपैक के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत में फूड सर्विस का बाजार 78 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है, यानी यह करीब उतना ही हो जाएगा, जितने का फिलहाल भारतीय आइटी उद्योग निर्यात करता है। विदेशी साग-सब्जियों की होटलों और रेस्तरां में बढ़ रही मांग से किसान विदेशी सब्जियों की खेती करना शुरू कर दिए हैं।

राज्यों में बढ़े फार्म, और ग्राहक भी

ग्रीन हाउस में खेती का बढ़ा चलन।

भारत में पहले विदेशी साग-सब्जियों की खेती नहीं की जाती थी। देश के बड़े-बड़े रेस्तरां सलाद पत्तियों से लेकर यूरोपीय सब्जियों तक ऐसी हर चीज का विदेश से ही आयात करते थे। लेकिन विदेशी साग-सब्जियों की देश में खेती का चलन वैसे पांच सालों में काफी तेजी से बढ़ा है। विदेशी किस्म की हरी साग-सब्जियों की खेती वाले फार्म की संख्या भी खासकर मानेसर (दिल्ली के पास हरियाणा में), पुणे, बंगलुरू और मैसूर में तेजी से बढ़ी है। इन फार्म के ग्राहकों में ज्यादातर फाइव स्टार होटलों में चलने वाले रेस्तरां होते हैं, इनके कुछ उत्पाद छोटे-छोटे रिटेल स्टोर में भी बिक्री के लिए जाते हैं।

छह साल पहले शुरू की खेती

छह साल पहले विदेशी साग-सब्जियों की खेती शुरू करने वाली आयशा ग्रेवाल दिल्ली और गुड़गाँव स्थित अपने रिटेल आउटलेट द अल्टीट्यूड स्टोर के माध्यम से विदेशी सब्जियों को बेचती हैं। आयशा ने बताते हैं, “इस तरह की साग-सब्जियों की भारी मांग रहती है।“

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किसी प्रकार का पेस्टीसाइड इस्तेमाल नहीं हुआ

कर्नाटक के तलक्कड़ में सात साल पहले विदेशी साग-सब्जियों की खेती शुरू करने वाले फर्स्ट एग्रो के सह-संस्थापक एम. नमीत बताते हैं, ''विदेशी साग-सब्जियों की खेती करने के लिए हमने विष और कीटनाशक रहित उपज सुनिश्चित करने को 'कोडेक्स स्टैंडर्ड’ को अपनाया है। हमारे फार्म में त्रिनिडाड की मिर्च बिशप्स क्राउन, पेरू की मिर्च अजी अमैरिलो, जापानी साग मिजुना और मित्सुबा, वाइल्ड रॉकेट सलाद पत्ता और थाइ ग्रीन्स इस फार्म की पैदावार हो रही है।'' उन्होंने बताया, “कोडेक्स इंटरनेशनल फूड स्टैंडर्ड एजेंसी है, जो सुनिश्चित करती है कि हम जो उत्पाद उगा रहे हैं, उसमें किसी भी प्रकार का कोई पेस्टीसाइड इस्तेमाल नहीं हुआ है।“

खेती से हो रही भारी बचत

देश में विदेशी साग-सब्जियों की खेती से रेस्तरां की लागत में भारी बचत हो रही है। भारत में ही उगाया गया विदेशी किस्म का सलाद पत्ता आयात के मुकाबले 30 फीसदी सस्ता पड़ रहा है, वहीं आयातित चेरी टमाटर की लागत 1000 रुपए प्रति किलो है, लेकिन देश में पैदा किए जाने पर इनकी लागत महज 200 किलो है। देश की 42 प्रतिशत जनसंख्या शाकाहारी है। भारत समेत पूरी दुनिया में सब्जियां मुख्य आहार का अभिन्न अंग हैं। देश में अभी केवल 2.8 प्रतिशत भूमि से संसार की 15 प्रतिशत सब्जियां उत्पादित हो रही हैं।

2020 तक 225 मिलियन टन सब्जियों की जरूरत

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत आने वाले भारतीय सब्जी अनुसंधान वाराणसी की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 तक 225 मिलियन टन सब्जियों की जरूरत पड़ेगी। भारत में भी सालाना 162.2 मिलियन टन सब्जियों का उत्पादन हो रहा है। ऐसे में भारत को सब्जी उत्पादन बढ़ाना होगा, जिसके लिए संस्थान के वैज्ञानिक सब्जियों के उन्नत किस्मों को विकसित करने में लगे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सब्जियों की उत्पादकता 17.4 टन हेक्टेयर है, जो विश्व की औसत उत्पादकता 18.8 टन प्रति हेक्टेयर से कम है। ऐसे में इसको बढ़ाने के लिए काम किया जा रहा है। विदेशी सब्जियों की खेती करके इस अंतर को कम किया जा सकता है।

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