एक तरफ जहां किसान अंधाधुंध राशायनिक खादों, कीटनाशकों का इस्तेमाल करके खेती कर रहे हैं तो वहीं कुछ किसान ऐसे भी हैं जो बिना किसी राशायनिक उर्वरक व कीटनाशक के खेती कर रहे हैं। इसके बावजूद उनकी फसलें लहलहा रही हैं।
''मैं एक पैसे की भी राशायनिक खाद या कीटनाशक बाज़ार से नहीं लाता हूं, पूरी तरह से जैविक खेती करता हूं,'' मंदसौर जिले की सुहासरा ब्लॉक के देवरिया विजय गाँव के किसान शिवलाल गमेर बताते हैं, ''राशायनिक खाद की जगह पर मैं जेविक खाद डालता हूं और कीटनाशक भी गाय के मूत्र से घर में ही बना लेता हूं, वही डालता हूं।'' शिवलाल के पास दो हेक्टेयर जमीन है, जिसमें गेहूं, चना, सरसों, सोयाबीन और अलसी खेती करते हैं।
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देश में लगातार बढ़ रहे राशायनिक ऊर्वरकों और कीटनाशकों के इस्तेमाल को देखते हुए केंद्र सरकार ने भी जैविक खेती पर जोर देना शुरु कर दिया है। मोदी सरकार ने 2022 तक देश के किसानों की आय दोगुनी करने का निर्णय लिया था। इसी क्रम में मोदी सरकार किसानों की लागत घटाने और आय बढ़ाने के लिए जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
शिवकुमार से जब पूछा गया कि आपने राशायनिक ऊर्वरकों और कीटनाशकों का छिड़काव क्यू बंद कर दिया तो इस पर उन्होंने बताया कि जब मुझे इससे लाभ हो रहा है जिसमें पैसे नहीं लगने तो क्यूं उन सब (राशायनिक ऊर्वरकों और कीटनाशकों) पर पैसे खर्च करूं। उन्होंने बताया कि पहले जब राशायनिक खेती करता था तो एक एकड़ में शुरू से आखिरी तक करीब 10-12 हज़ार रुपए खर्च होते थे और अब (जैविक तरीके से) सिर्फ चार हज़ार रुपए का खर्च आता है, जो पानी लगाने बीज खरीदने और कुछ मजदूरी देने में खर्च हुआ।
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उन्होंने बताया कि दूसरे लोग बीज को उपचारित करने के लिए बाज़ार से दवाई लाते हैं मैंने गेहूं की बुवाई गोमूत्र से उपचारित करके की थी। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि फसल की बुवाई करने के 15-20 दिन बाद से हर 10 से 15 दिन पर जीवाम्रत का छिड़काव करता हूं इससे फसल पर कोई कीय या रोग नहीं लगता है। नीम की पत्ती, धतूरा, आंक की पत्ती, अरंडी के पत्ते, नीम की निंबौली आदि को पीस कर एक मटके में भर कर उसमें गोमूत्र मिला कर उसका मुह बंद कर देते हैं। 15-20 दिन में जीवाम्रत बनके तैयार हो जाएगा। इसके बाद उसको छान कर आधा लीटर उसको लेकर एक टंकी (कीटनाशक छिड़काव करने वाली) पानी में मिला कर छिड़काव कर देते हैं।
वहीं उसी गाँव के किसान देवेन्द्र सिंह देवड़ा धनिया, चना, सरसों और गेहूं की जैविक तरीके से खेती करते हैं। उनकी फसल में न तो कोई रोग है और न ही कोई कीट लगा है। देवेन्द्र पिछले पांच वर्षों से जैविक खेती करल रहे हैं। वो बता ते हैं, ''मैं कीटनाशक और दवाई घर पर ही जैविक तरीके से बनाता हूं, बाज़ार से कुछ नहीं लाता हूं। फसल को कीटों से बचाने के लिए खेत में जगह-जगह पर टी आकार की लकड़ियां गाड़ रखीं हैं जिसपर चिड़िया बैठती है और सभी कीटों को खा जाती है।'' इसके साथ ही उन्होंने बताया कि वो हर फसल में केचुवा खाद और जीवाम्रत डालते हैं।
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उन्होंने कहा, ''पहले-पहले जब मैने जैविक खेती शुरू की थी तो लोग मेरी हसी उड़ाते थे। लोग विश्वास नहीं करते थे। साल-दो साल बाद जब फसल देखी तब लोगों को विश्वास हुआ।'' इसके अलावा देवेन्द्र सीड ड्रिल की मदद से बीज की बुआई करते हैं। इसके बारे में वो बताते हैं, ''इससे बुआई करने से बीज कम लगता है और अगर पानी की मात्रा कम भी हो तो फसल अच्छी होती है।''