खरीद केंद्रों की कमी से नहीं बढ़ पा रहा दाल व्यापार

Update: 2017-09-09 19:11 GMT
यूपी में दालों की खरीद के लिए नहीं बनाई गई कोई भी सरकारी ढांचाकृत खरीद व्यवस्था

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। देश में दलहन किसानों को उनकी उपज का पूरा दाम मिल सके इसके लिए सरकार ने देशभर में 971 सरकारी दलहन खरीद केंद्र खोले गए हैं, लेकिन इनमें से एक भी केंद्र उत्तर प्रदेश में अभी तक नहीं खोला जा सका है। ठोस खरीद व्यवस्था न होने के कारण दालों का व्यापार राशन मार्केट और गाँव के व्यापारियों तक ही सिमट कर रह गया है।

“प्रदेश में दाल की खेती जिस हिसाब से 20 वर्ष पहले होती थी, अब उसकी तुलना में एक चौथाई भी नहीं होती है। उत्पादन कम होने के बावजूद दाल व्यापार के लिए गेहूं और धान जैसी सरकारी ढांचाकृत खरीद व्यवस्था बनाने से कोई लाभ नहीं है। प्रदेश में जब कभी भी बाज़ारों में दाल के दाम बहुत बढ़ जाते हैं, तो उस समय सरकार टेंडर निकाल कर दाल की आपूर्ति करती है।” यह बताते हैं उत्तर प्रदेश कृषि उत्पादन मंडी परिषद के उप निदेशक (कृषि विपणन) सुग्रीव शुक्ला।

कृषि मंत्रालय भारत सरकार ने वर्ष 2016-17 में पूरे देश में सभी प्रकार की दालों की एक निश्चित खरीद व्यवास्था बनाने प्रमुख दाल उत्पादन करने राज्यों(कर्नाटक,महाराष्ट्र, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान) में 971 सरकारी दलहन खरीद केंद्र खोले गए। इनमें से 514 खरीद केंद्रों पर अरहर की खरीद, 269 केंद्रों पर मूंग व 188 केंद्रों पर उड़द दाल की खरीद की गई। इन सभी केंद्रों में किसान खुद आकर दाल बेच सकते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में दाल की खरीद के लिए ऐसी कोई भी व्यवस्था आज तक नहीं बन पायी है।

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देश में वर्ष 2016-17 में 20 लाख टन के दलहनी बफर स्टॉक को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), लघु कृषक कृषि व्यापार संघ (एसएफएसी) और राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नाफेड) ज़िम्मेदारी दी थी। इन संस्थाओं की मदद से कुल 10 लाख टन घरेलू दाल खरीदने का लक्ष्य रखा गया था।

राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नाफेड) यूपी को वर्ष 2016-17 में 20,000 टन दलहन का स्टॉक करने का लक्ष्य दिया गया था, लेकिन दिए गए लक्ष्य में केवल 8,000 टन दाल की ही खरीद हुई। इसकी वजह बताते हुए नाफेड, यूपी के शाखा प्रबंधक रंजय कुमार ने बताया, “प्रदेश के किसान डिमांड के हिसाब से दाल बेचना सीख चुके हैं, उन्हें सरकारी तंत्र में दाल बेचने से बेहतर गाँव के व्यापारी को ही दाल बेचने में फायदा लगता है। दूसरा यह है कि प्रदेश में गेहूं और चावल के भंड़ारण के लिए जितनी जगह उपलब्ध है, वैसी भंडारण क्षमता दालों के भंडारण के लिए नहीं है। इसका असर खरीद पर पड़ता है।”

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राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में किसानों को उन्नत कृषि तकनीकों से जोड़ने का काम कर रहें कृषि सलाहकार उमापति शुक्ला बताते हैं, “देश का किसान खेती में भेड़चाल अपना रहा है। यूपी में दाल के व्यापार के लिए सरकार किसानों तक कोई जानकारी नहीं पहुंचा पाई है।कहीं नीलगाय किसानों की फसल खराब कर रही हैं, तो कहीं पर उन्हें अच्छी बज़ार नहीं मिल पा रही है, लेकिन दाल किसान फिर भी दाल की खेती नहीं छोड़ पा रहे हैं क्योंकि वो वर्षों से यही खेती कर रहे हैं।”

दलहन खरीद केंद्र न होने से दालों का व्यापार खुदरा बाज़ारों तक सीमित है। हालांकि गल्ला मंडियों में आज भी छोटे स्तर पर दालों का व्यापार होता है, पर अलग-अलग मंडियों में भावों में अंतर होने से किसान मंडियों में दाल बेचना पसंद नहीं कर रहे हैं। मंडियों में दाल के व्यापार के बारे में निदेशक मंडी परिषद, धीरज कुमार बताते हैं, “मंडियों में दालों का कोई फिक्स रेट नहीं रहता हैं और उन्हें अपनी उपज बेचने के लिए मंडी शुल्क भी देना पड़ता है। इसलिए किसान मंडी में दाल न बेच कर गाँव में व्यापारी को ही बेच देते हैं।”

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