सलाह : केले की खेती से कमाई करनी है तो इन गांठ बांध ले किसान 

Update: 2018-04-03 17:42 GMT
किसानों को होगा ज्यादा फायदा। 

केला ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल है। लेकिन इसमे थोड़ा चूकने पर नुकसान की आशंका भी हमेशा रहती है। इसलिए जरुरी है कि अच्छी पौध होने के साथ-साथ फसल सुरक्षा का पूरा ध्यान रखें।

केले की फसल से ज्यादा पैदावार लेने और अच्छी गुणवत्ता का केला प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि केले की पौध से लेकर फल कटने तक हर छोटी-बड़ी जानकारी हो और तकनीकी पहलुओं को सही तरीके से आजमाया जाए। सीतापुर के कटिया कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डा. डीएस श्रीवास्तव कुछ ऐसे तरीके बता रहे हैं, जिससे किसान केले का बेहतर उत्पदान पा सकते हैं...

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केला अधिक आय देने वाली फसल है, लेकिन ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल में समस्माएं भी ज्यादा होती है। मुख्य बात ये है कि अगर हम फसल सुरक्षा को ध्यान में रखकर केले की खेती करें तो लागत में कमी के साथ अधिक मुनाफा हो सकता है। नीचे क्रमवार पूरा ब्यौरा है लेकिन सबसे पहले बात फसल सुरक्षा की

भूमि का उपचार-

1.बिवेरिया बेसियान- पांच किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 250 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर भूमि में प्रयोग करें। यदि खेत में सूत्र कृमि (निमेटो) की समस्या है तो पेसिलोमाईसी (जैविक फंफूद) की पांच किलोग्राम मात्रा गोबर की सड़ी हुई खाद में मिलाकर करें।

2.जड़ गाठ सूत्र कृमि केले की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे फसल की वृद्धि रुक जाती है, एवं पौधे का पूरा पोषक तत्व नहीं मिल पाता है। खड़ी फसल नियंत्रण के लिए नीम की खली 250 ग्राम या कार्बोफ्यूरान 50 ग्राम प्रति पौधा (जड़ के पास) प्रयोग करें।

3.कीटों और बीमारियों से बचने के लिए खेत को बिल्कुल साफ सुथरा रखें, सत्रु कीटों की संख्या कम करने के लिए फसल के बीच बीच में रेडी या अरंडी के पौधे भी लगा सकते हैं।

4.मित्र जीवों की संख्य़ा बढ़ाने के लिए फूलदार वृक्ष (सूरजमुखी, गेदा, धनिया, तिल्ली आदि) मेढ़ों के किनारे-किनारे लगा सकते हैं।

5.फसल तैयार होने की दशा में पत्ते और तनों के अवशेष खेत से हटाकर गड्ढों में दबाते रहें। फसल की लगातार निगरानी करें।

6.कीटों की संख्या कम करनेके लिए पीला चिपचिपा पाष एवं लाइट ट्रैप का इस्तेमाल करें।

केले की खेती के लिए मिट्टी

किसान भाई जिस खेत में केला लगाना चाहते हैं, पहले उसकी जांच जरुरी है, ताकि ये पता चल जाए कि ऐसे फसल के लिए जमीन उपजाऊ है कि नहीं, जमीन में पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व हैं कि नहीं। इसका सबसे अच्छा तरीका है मिट्टी की जांच कराएं।

इसकी खेती के लिए चिनकी बलुई मिट्टी उपयुक्त है, लेकिन इस जमीन का पीएच स्तर 6-7.5 के बीच होना चाहिए, ज्यादा अम्लीय या छारीय मिट्टी फसल को नुकसान पहुंचा सकती है। खेत में जलभराव न होने पाए, यानि पानी निकासी की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए, साथी खेत का चुनाव करते वक्त ये भी ध्यान रखना चाहिए कि हवा का आवागमन बेहतर होना चाहिए, इसलिए पौधे लाइन में लगाने चाहिए।

दूसरी बात है अच्छी पौध। टिशू कल्चर से तैयार पौधों में रोपाई के 8-9 महीने बाद फूल आना शुरू होता है और एक साल में फसल तैयार हो जाती है इसलिए समय को बचाने के लिए और जल्दी आमदनी लेने के लिए टिशू कल्चर से तैयार पौधे को ही लगाएं ।

जलवायु

गर्मतर और समजलवायु केले की खेती के लिए उपयुक्त है। ये फसल 13-14 डिग्री तापमान से लेकर 40 डिग्री तक आसानी से हो जाती है। लेकिन ज्यादा धूप इसके पौधों को झुलसा सकती है। अच्छी बारिश वाली जगहें भी केले के लिए मुफीद हैं।

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खेत तैयार करना

अच्छी फसल चाहिए तो खेत अच्छा होना चाहिए, इसके लिए जरुरी है कि खेत की मिट्टी उपजाऊ हो। किसान केले की रोपाई से पहले उसमें फसल चक्र अपनाएं। अगर हरी खाद जैसे ढैंंचा और लोबिया आदि उगाकर उसे रोटावेटर से उसी में जुतवा दें तो अच्छा रहेगा। मिट्टी में पूरे पोषक तत्व होंगे तो बाहर से रसायनिक खादों का इस्तेमाल कम करना पड़ेगा

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खाद एवं उर्वरक

केले की रोपाई के लिए जून-जुलाई सटीक समय है। सेहतमंद पौधों की रोपाई के लिए किसानों को पहले से तैयारी करनी चाहिए। जैसे गड्ढ़ों को जून में ही खोदकर उसमें कंपोस्ट खाद (सड़ी गोबर वाली खाद) भर दें। जड़ के रोगों से निपटने के लिए पौधे वाले गड्ढे में ही नीम की खाद डालें। केचुआ खाद अगर किसान डाल पाएं तो उसका अलग ही असर दिखता है।

सिंचाई निराई गुड़ाई

केला लंबी अवधि का पौधा है। इसलिए जरुरी है सिंचाई का उचित प्रबंध हो। बेहतर किसान पौध रोपाई के दौरान ही बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली स्थापित करवा लें। मोर ड्राप पर क्रॉप के तहत एक तरफ सरकार जहां 90 फीसदी तक सब्सिडी दे रही है वहीं सिंचाई में काफी बचत होगी। पानी कम लगेगा और मजदूरों की जरुरत नहीं रह जाएग। ड्रिप सिस्टम लगा होने पर कीटनाशनकों आदि छिड़काव के लिए भी ज्यादा मशक्कत नहीं करनी होगी। केले को पौधों को कतार में इन्हें लगाते वक्त हवा और सूर्य की रोशनी का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए

कई किसान केले में मल्चिंग करवा रहे है, इससे निराई गुड़ाई से छुटकारा मिल जाता है। लेकिन जो किसान सीधे खेत में रोपाई करवा रहे हैं, उनके लिए जरुरी है कि रोपाई के 4-5 महीने बाद हर 2 से 3 माह में गुड़ाई कराते रहे। पौधे तैयार होने लगें तो उन पर मिट्टी जरुर चढ़ाई जाए।

पोषण प्रबंधन

केले की खेती में भूमि की ऊर्वरता के अनुसार प्रति पौधा 300 ग्राम नत्रजन, 100 ग्राम फॉस्फोरस तथा 300 ग्राम पोटाश की आवश्यकता पड़ती है। फॉस्फोरस की आधी मात्रा पौधरोपण के समय तथा शेष आधी मात्रा रोपाई के बाद देनी चाहिए। नत्रजन की पूरी मात्रा पांच भागों में बांटकर अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर तथा फरवरी एवं अप्रैल में देनी चाहिए।

  • एक हेक्टेयर में करीब 3,700 पुतियों की रोपाई करनी चाहिए।
  • केले के बगल में निकलने वाली पुतियों को हटाते रहें।
  • बरसात के दिनों में पेड़ों के अगल-बगल मिट्टी चढ़ाते रहें।
  • सितम्बर महीने में विगलन रोग तथा अक्टूबर महीने में छीग टोका रोग के बचाव के लिए
  • प्रोपोकोनेजॉल दवाई 1.5 एमएल प्रति लीटर पानी के हिसाब से पौधों पर छिड़काव करें।

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