क्रिकेट को बरगद का पेड़ न बनाएं, जिसके नीचे कुछ नहीं उगता

Update: 2016-04-25 05:30 GMT
गाँव कनेक्शन

इस साल रियो में होने वाले ओलम्पिक खेलों के लिए भारतीय ओलम्पिक संघ द्वारा भारत की ओर से अभिनेता सलमान खान को सद्भावना दूत चुना गया है। उन्होंने इस बात का प्रयास करने की बात कही है कि अधिक से अधिक लोग ओलम्पिक खेलों को देखें और सराहें। जब मेडल तालिका देखते हैं तो भारत जैसे विशाल देश से जिम्नास्टिक्स, अन्य एथलेटिक्स खेलों में बहुत पीछे रहते हैं। हमारे देश में ध्यानचन्द और केडी सिंह बाबू द्वारा खेला जाने वाला हॉकी, या फिर कुश्ती, कबड्डी और व्यक्तिगत पुरुषार्थ वाले खेल ना जाने कब और कैसे अपनी लोकप्रियता खो बैठे। आशा करनी चाहिए कि सलमान खान उस लोकप्रियता को वापस दिलाने में सफल होंगे।

क्रिकेट का जन्मस्थान इंग्लैंड माना जाता है और आरम्भ में क्रिकेट में पैसे की भूमिका अहम नहीं रही होगी। बच्चों द्वारा शुद्ध रूप से मनोरंजन के लिए खेला जाने वाला क्रिकेट जब क्लबों के माध्यम से मैच और टूर्नामेन्ट की दुनिया में प्रवेश कर गया तो पैसे की जरूरत पड़ी होगी। आज राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह खेल बहुत ही व्यापक रूप से खेला जाता है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि क्रिकेट में बेतहाशा पैसा है और खूब सट्टेबाजी और जुआं भी। बड़े-बड़े नेताओं और अभिनेताओं की इस खेल में इतनी रुचि होना इसका सबूत है। इतनी दौलत देखकर खिलाड़ियों की भी नीयत डोल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। इस खेल में पांच दिन या पूरा एक दिन लगता है। बेइमानी के करतब दिखाने के लिए बहुत समय रहता हैं। तीसरी खास बात यह है कि पूरी टीम पूरे समय एक साथ नहीं खेलती है इसलिए कुछ लोग जो मैदान में नहीं होते उनके पास सौदेबाजी का सन्देश भेजने और प्राप्त करने का पर्याप्त अवसर रहता है। मैच फिक्सिंग की गुंजाइश रहती है। ऐसे क्रिकेट से तो गुल्ली डंडा ही भला जिसमें दर्शकों से धोखा और देश से गद्दारी करने का अवसर नहीं रहता।

कहते हैं कि क्रिकेट रईसों का खेल है परन्तु विचार करने की बात है कि धनी देश जैसे अमेरिका, रूस, चीन, जापान, कनाडा और फ्रांस क्रिकेट नहीं खेलते। शायद इसलिए कि उनके लिए समय की कीमत है और वे पांच दिन बैठकर क्रिकेट देखते हुए समय नहीं गंवाना चाहते। इसके अलावा दूसरा कोई कारण समझ में नहीं आता कि वे क्रिकेट क्यों नहीं खेलते। क्रिकेट खेलने वाले देशों में प्रमुख हैं भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बंगलादेश, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिणी अफ्रीका, जिम्बॉव्वे, वेस्टइन्डीज, इंग्लैंड और केन्या। इन देशों में एक ही समानता है कि ये देश इंग्लैंड के अधीन रह चुके है और कुछ को छोड़कर, विकसित नहीं कहे जा सकते। हमें अमेरिका और चीन जैसे समृद्ध देशों की सोच से लाभ उठाना चाहिए। 

भारत में आईपीएल आरम्भ होने के बाद तो क्रिकेट खिलाड़ियों की नीलामी होने लगी, उनकी कीमत लगाई जाने लगी और उन्हें अपनी कीमत का अहसास भी होने लगा। राष्ट्रीय टीम में खेलने का मौका मिले या ना मिले या फिर उसके लिए ताकत बचे या ना बचे परन्तु आईपीएल में खेलने का मौका नहीं जाना चाहिए। क्रिकेट खिलाड़ियों के लिए जैसे राष्ट्रीय सम्मान की अपेक्षा पैसे की कीमत अधिक है। वैसे आईपीएल का एक लाभ भी हुआ है कि नए- नए खिलाड़ियों को मौका मिलता है। 

एक घन्टे में समाप्त होने वाले खेल श्रेयस्कर हैं जैसे हॉकी जिसे भारत का राष्ट्रीय खेल भी कहा जाता है, फुटबॉल और वॉलीबाल, खो-खो, कबड्डी और कुश्ती जो बिल्कुल खर्चीले नहीं होते, इनमें सट्टेबाजी और जुआंबाजी की फितरत के लिए समय ही नहीं रहता। कम समय में तेज गति से खेले जाने वाले खेल गाँवों में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए और गाँव वालों को बीमारियों से बचाने के लिए बहुत जरूरी हो गए हैं। यदि निठल्ले बैठकर क्रिकेट को मनोरंजन के लिए देखना हो तो लगान फिल्म देखकर यह काम पूरा हो सकता है। 

पांच दिन में काम के तमाम घन्टे ‘‘मैन आवर्स” बर्बाद करने की आवश्यकता नहीं। हमारे देश के लिए अवसर है अपने को खेल की दुनिया में स्थापित करने का जिसके लिए सरकार को दिल खोल कर धन का आवंटन करना होगा, खेल सुविधाएं जुटानी होंगी और खेलसंघों को अच्छे कोच भी ढूंढ़ने होंगे।

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