सीमैप की सलाह- मेंथोल मिंट की खेती में ज्यादा तेल के लिए ये काम करें किसान

मेंथा की खेती की तैयारियां शुरु हो चुकी हैं। जो किसान भाई मेंथा की खेती करना चाहते हैं उनके लिए सीमैप के विज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का ये लेख काफी मददगार हो सकता है।

Update: 2019-12-26 05:35 GMT
मेंथा (पिपरमिंट) की खेती की जानकारी

भारत दुनिया का सबसे बड़ा मेंथोल मिंट उत्पादक व निर्यातक देश है। औद्योगिक विशेषज्ञों के अनुसार पिछले वर्ष मेंथा का उत्पादन पूरी दुनिया में उत्पादन 45000 - 48000 टन के बीच रहा, जिसमे से अकेले भारत ने ही 25000 टन मेंथोल मिंट तेल का उत्पादन किया था। हमारे देश के विभिन्न राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, पंजाब व हरियाणा में बड़े स्तर पर खेती की जाती हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश की हिस्सा 90-95फीसदी उत्पादन अकेले यूपी का है।

लखनऊ स्थित सीएसआईआर- केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौध संस्थान ने मेंथोल मिंट की कई उन्नत किस्में व कृषि तकनिकी विकसित की हैं, सीमैप के मुताबिक ये किस्में कम लागत में ज्यादा उत्पादन और मुनाफा देती हैं।

मेंथोल मिंट की उन्नत किस्मे:-

सीएसआईआर- केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान ने पिछले कुछ दशकों में मेंथोल मिंट की विभिन्न उन्नतशील किस्मों को विकसित किया है

मॉस-1, हाइब्रिड-77, (कालका) , हिमालय, डमरू, शिवालिक, कुशल, सक्षम, संभव, सिम, सरयू,कोसी, सिम क्रांति

इनमें से कोसी व सिम-क्रान्ति दोनों किस्में उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में व्यावसायिक रूप से पिछले कई वर्षों से होती चली आ रही है। इन दोनों किस्मों की मुख्य विशेषता यह है की इसके तेल व मेंथोल की उपज शेष सभी किस्मों से काफी बेहतर है। इन दोनों के बारें में संक्षिप्त में बताया गया है।


व्यावसायिक खेती के लिए कोसी का महत्व:-

सीमैप ने इस प्रजाति को सन 1999 में विकसित किया था। उत्तर भारत के मैदानी इलाकों की यह किस्म 70% किसानों की मांग वाली किस्म है। इसमें विशेष बात यह है की लीफ स्पॉट, रस्ट और पाउडरी मिलडेव जैसे रोगों से लड़ने की क्षमता होती है। यह किस्म वैसे तो 90-100 दिनों में पेराई के लिए तैयार हो जाती है, लेकिन सीमैप द्वारा विकसित की हुई अगेती मिंट तकनीकी से यह मात्र 70-75 दिनों में ही तैयार हो जाती है। सकर उत्पादन हेतु भी इसमें उत्पादकता अच्छी मिलती है, साथ ही इसमें कम पानी की भी जरुरत होती है।

व्यावसायिक खेती के लिए सिम-क्रान्ति का महत्व:

सीमैप ने इस प्रजाति को 2013 में विकसित किया था। मेंथा की खेती सकर/जड़ के लिए शरद ऋतु में करने वाले किसानों के लिए यह किस्म एक वरदान जैसी साबित हो रही है। क्योंकि यह किस्म कड़ाके की सर्दी में भी आसानी से बढ़वार करती है। कहने का तात्पर्य यह है कि इसमें ठण्ड को सहन करने की क्षमता ज्यादा है। सर्दियों के सीजन में किसानों के खेतों पर सकर/जड़ हेतु लगाई गई फसल से 80-90 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर तेल का अतिरिक्त उत्पादन भी मिलता है। लेकिन कोसी की तुलना में इसमें लगभग डेढ़ गुना जड़ का उत्पादन कम होता है।

सिम क्रांति को तैयार होने में समय तो भी काफी लगता है और सिंचाई की भी अधिक जरुरत पड़ती है। अच्छी गुडवत्ता वाली किस्म का बीज किसान स्वयं अपने खेत पर पैदा कर सकते है। वर्तमान में मुख्य रूप से किसान कोसी व सिम-क्रान्ति प्रजातियों की खेती कर रहे हैं। लेकिन प्रचलित विधि में सकर उत्पादन करने पर सिम-क्रांति में सकर कि उपज 0.5-0.7 कि.ग्रा. प्रति वर्ग मीटर तक ही आती है जबकि नवीन विधि से यह बढ़कर 1.0-1.5 कि.ग्रा. प्रति वर्ग मीटर हो जाती है, जो की दोगुनी हैं।

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उन्नत कृषि तकनीकी से मिलने वाला लाभ:

सीमैप द्वारा विकसित नवीन रोपण तकनीकी को अपनाकर किसानों को ये लाभ मिलते हैं (नीचे लिखे)

1.जड़/ सकर की अधिक उपज अच्छी गुडवत्ता के साथ कम लगत और कम समय में प्राप्त की जा सकती है। साथ ही साथ ऊपरी शाक का आसवन (पेराई) करके 50-60 कि. ग्रा. प्रति हेक्टेयर अतिरिक्त तेल भी पैदा किया जा सकता है। इस विधि में जड़ें 15 दिसंबर तक पूरी तरह से परिपक्व हो जाती हैं।

2.सकर/जड़ों से पौध पैदा करने की ऐसी तकनीकी विकसित की है, जिसके द्वारा रोपाई योग्य पौध जनवरी के अंतिम या फरवरी के प्रथम सप्ताह में ही उपलब्ध हो जाती हैं। जबकि सामान्यतः मार्च के प्रथम सप्ताह या उसके बाद प्राप्त होती थी। इस प्रकार किसान जनवरी /फरवरी में सकर द्वारा सीधी बुवाई करने के लिए मजबूर नहीं होंगे। अब उसी समय पौध द्वारा खेती कर सकेंगे जो सीधी बुवाई की तुलना में 30-40 दिन कम समय लेती हैं। इसके अलावा इस पद्धत्ति में वर्षा ऋतु (बारिश का सीजन) शुरू होने से पहले ही दो कटाई की जा सकती हैं।

3.खेत में पौध रोपण की ऐसी विधि का विकास किया है जिसके द्धारा प्रचलित विधि की तुलना में लगभग 30 दिन का कम समय लगता है।

4.रोपाई की इस विधि को अपनाने के बाद दूसरी कटाई लेने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं, जो की शुद्ध लाभ की दृष्टि से लाभदायक है। महत्वपूर्ण बात ये है की जहां प्रचलित विधि में दूसरी कटाई से मिलने वाली उपज पहली कटाई से मिलने वाली उपज पहली कटाई की तुलना में काफी कम हो जाती हैं, वहीं नवीन पद्धत्ति में दूसरी कटाई की उपज पहली कटाई की तुलना में काफी अच्छी मिलती है।

5.पौध रोपण की नयी विधि में एक तरफ सिंचाई करते समय पानी की आवश्कता लगभग 30% कम हो जाती है, वहीं दूसरी तरफ खड़ी फसल में किसी कारण जल भराव की स्थिति में होने वाला जोखिम बहुत कम हो जाता हैं।

6.नवीन रोपण विधि में फसल की बढ़वार तेजी से होने के कारण खरपतवारों को बढ़ने के लिए कम मौका मिल पाता हैं एवं बाद में स्वतः ही दब जाते हैं। इस प्रकार खरपतवार नियंत्रण पर होने वाला खर्च प्रथम कटाई के दौरान लगभग 30 प्रतिशत तथा दूसरी कटाई के दौरान लगभग 60 प्रतिशत तक कम हो जाता हैं।

7.मेंथोल मिंट की खेती पर आने वाली लागत में कमी व उत्पादन में बढ़ोतरी के कारण प्रति किलो तेल उत्पादन की कीमत 35-40% तक कम हो जाती हैं। (वर्तमान परिपेक्ष्य में लगभग रु 400 प्रति किलो से घटकर रु 250 प्रति किलो) अतः किसान एवं उद्योग दोनों ही कृत्रिम मेंथोल द्वारा मिल रही चुनौती का बहुत हद तक सामना कर सकते हैं।

ऊपर लिखे कुछ बिंदुओं को मिलाकर मिलने वाले लाभ को सीमैप ने अगेती मिंट तकनीकी नाम दिया है।

उन्नत किस्मों के साथ उचित कृषि तकनीक का विवरण-

विशेषताएं                                            कोसी             सिम-क्रान्ति        

फसल तैयार होने का समय (दिनों में)     70-80                80-90

जल बचत (%)                                  20-25               25-30%

तेल उपज (कि.ग्रा.प्रति.हे )                  200                    190

मेंथोल (%)                                     75-80                70-75

कुल लागत (रु./हे)                            45000                50000

कुल आय (रु./हे)                             2,00,000            1,90,000

शुद्ध आय (रु./हे)                              1,55,000-            1,40,000

तेल उत्पादन लागत (रु./ कि.ग्रा.)       225.00                263.15

गणना तेल का बाजार भाव रुपए 1000 प्रति. कि.ग्रा. के अनुसार

नोट- शोध, लेखन एवं संपादन- अंजलि सिंह, नीलोफर, देवेंद्र कुमार, अनुज कुमार, परमिंदर कौर, कीर्ति वर्मा, कुशल पाल सिंह, अनिल कुमार सिंह व सौदान सिंह।  

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