धान की खेती: नर्सरी की तैयारी से लेकर रोपाई तक इन बातों का ध्यान रखकर अच्छा उत्पादन पा सकते हैं किसान

धान की खेती करने वाले किसान अगर शुरू से कुछ बातों का ध्यान रखें तो अच्छा उत्पादन भी पा सकतें हैं और कई तरह के कीट और रोगों से होने वाले नुकसान से भी बच सकते हैं।

Update: 2021-05-15 14:07 GMT

किसान धान की रोपाई या फिर बुवाई के लिए कई विधियां अपना सकता है। सभी फोटो: गाँव कनेक्शन

मई महीने से ही किसान धान की खेती की तैयारी शुरू कर देते हैं, खरीफ सीजन की प्रमुख फसलों में से एक धान की खेती पूरे भारत में की जाती है। अगर किसान को धान की फसल से अच्छा उत्पादन पाना चाहते हैं तो शुरू से उनको कुछ बातों का ध्यान रखना होता है।

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. विनोद कुमार श्रीवास्तव बताते हैं, "धान की खेती करने वाले किसान किसान अगर शुरू से कुछ बातों का ध्यान रखकर वैज्ञानिक विधि से खेती करें, तो निश्चित रूप से उन्हें फायदा होगा, क्योंकि बस धान लगा देने से ही अच्छा उत्पादन मिलेगा, नर्सरी की तैयारी से लेकर फसल तैयार होने तक पूरा ध्यान रखना होता है।"

वो आगे कहते हैं, "किसानों को धान की खेती शुरू करने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। पहली बात किसान को पहले ही देख लेना होता है कि उसके पास सिंचाई का साधन है या फिर बिना सिंचाई के खेती करनी है। धान की खेती दो तरह से होती है, एक तो आप सीधी बुवाई करें या फिर रोपाई विधि से करें।"


धान की नर्सरी विधि से बुवाई के बारे में वो कहते हैं, "अगर आपके पास सिंचाई का पर्याप्त साधन है और रोपाई विधि से खेती करना चाहते हैं तो इस समय मई महीना चल रहा इसी समय आप लंबे अवधि की धान की किस्म की नर्सरी लगा सकते हैं, क्योंकि जितनी जल्दी धान की रोपाई होती है, उतनी ही जल्दी धान की फसल तैयार हो जाती है, जिससे आगे गेहूं की फसल में देरी नहीं होती है।"

सीधी बुवाई या फिर नर्सरी विधि से रोपाई, दोनों विधियों में बीज शोधन सबसे जरूरी होता है, शुरू में ही बीजों का उपचार करके फसलों को कई तरह के रोगों से बचा सकते हैं। किसानों को एक हेक्टेयर धान की रोपाई में बीज शोधन में सिर्फ 25-30 रुपए खर्च होते हैं।

अपने क्षेत्र के हिसाब से विकसित प्रजातियों का करें चुनाव

डॉ श्रीवास्तव आगे कहते हैं, "हर एक क्षेत्र के लिए अलग अलग किस्में विकसित की जाती हैं, इसलिए अपने क्षेत्र के हिसाब से विकसित किस्मों का ही चुनाव करें। कई बार किसान दुकानदार के कहने पर बीज चुनता है, इसलिए पूरी जांच पड़ताल के ही उसकी बुवाई करें।

एक हेक्टेयर के लिए लगता है 18-20 किलो बीज

कृषि विज्ञान केन्द्र, अनौगी के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. वीके कनौजिया बताते हैं, "एक हेक्टेयर में पौधरोपण के लिए 18 से 20 किग्रा संकर बीज की आवश्कता होती है। समय से धान पौधरोपण के लिए 25 से 30 दिन पूर्व पौधशाला में धान की बुवाई कर देनी चाहिए। ऊंचे स्थान, सिंचाई, हल्की व उपजाऊ भूमि तथा अच्छे संकर बीज का होना आवश्यक है। फसल चक्र में ली जाने वाली फसलों को ध्यान में रखकर संकर प्रजातियों की नर्सरी मई के अंत से 15 जून तक बीज की बुवाई पौधशाला में अवश्य कर लेना चाहिए। यह सुझाव कृषि विज्ञान केन्द्र, अनौगी के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. वीके कनौजिया ने दिए हैं।


ऐसे करें बीजोपचार

सबसे पहले दस लीटर पानी में 1.6 किलो खड़ा नमक मिलाकर घोल लें, इस घोल में एक अंडा या फिर उसी आकार का एक आलू डाले और जब अंडा या आलू घोल में तैरने लगे तो समझिए की घोल तैयार हो गया है। अगर अंडा या आलू डूब जाता है तो पानी में और आलू डालकर घोले, जबतक कि अंडा या आलू तैरने न लगे, तब जाकर घोल बीज शोधन के लिए तैयार है।

तैयार घोल में धीरे-धीरे करके धान का बीज डालें, जो बीज पानी की सतह पर तैरने लगे उसे फेंक दें, क्योंकि ये बीज बेकार होते हैं। जो बीज नीचे बैठ जाए उसे निकाल लें, यही बीज सही होता है। इस घोल का उपयोग पांच से छह बार धान के बीज शोधन के लिए कर सकते हैं, तैयार बीज को साफ पानी से तीन से चार बार अच्छे से धो लें।

शुरू से करेंगे ये उपाय तो नहीं लगेंगे कई रोग

खैरा रोग के लिए सुरक्षात्मक छिड़काव 400 ग्राम जिंक सल्फेट का 1.6 किलो यूरिया या 2.0 किग्रा बुझे हुए चूने के साथ 60 लीटर पानी में मिलाकर 700 से 800 वर्ग मीटर की दर से छिड़काव बुवाई के 15 दिन बाद करना चाहिए।

सफेदा रोग के नियंत्रण के लिए 300 से 350 ग्राम फेरस सल्फेट का 1.5 किलो यूरिया के घोल के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

नर्सरी में लगने वाले कीटों से बचाव हेतु क्लोरोसाइपार 1.25 लीटर अथवा इमिडाक्लोप्रिड 250 मिली प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें। नर्सरी में पानी का तापक्रम बढ़ने पर उसे निकाल कर फिर से ताजा पानी भर देना चाहिए।

इन जरूरी बातों का भी रखें ध्यान

संकर धान की प्रजातियों की रोपाई 15 जुलाई तक अवश्य कर लेनी चाहिए और इसे ध्यान में रखकर ही पौध डालना चाहिए। अन्यथा उपज में कमी होने लगती है।

पौधशाला की अच्छी जुताई कर 1.2 मीटर चौड़ी क्यारियां बनाकर अंकुरित बीज की बुवाई करनी चाहिए। प्रारंभ में हजारे से बाद में नालियों से सिंचाई करना चाहिए। बिजाई के 20 से 25 दिन बाद पौधरोपण को तैयार हो जाती है। ऊसर भूमि के लिए 30 से 35 दिन बाद की पौध रोपण की जानी चाहिए।

ऐसे करें बुवाई/रोपाई

डॉ श्रीवास्तव कहते हैं, "किसान कई विधियों से धान की बुवाई कर सकते हैं। किसानों के बीज धान की एरोबिक विधि भी काफी प्रचलित हो रही है, इस विधि से बुवाई करने में खेत भी तैयार नहीं करना होता है और पलेवा भी नहीं करना होता है। इसमें दूसरी विधियों के मुकाबले 40 से 50 प्रतिशत तक पानी की बचत हो जाती है।"

इसके साथ ही किसान एसआरआई विधि (श्रीविधि) से भी रोपाई कर सकते हैं। इसके लिए 12-14 दिन के तैयार नर्सरी की रोपाई की जाती है। इसमें 25 सेमी दूरी पर लाइन से रोपाई की जाती है। सही दूरी के लिए पैडी मार्कर का प्रयोग करें। जिस खेती में श्रीविधि से बुवाई कर रहे हैं उस खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए, इससे अगर खेत में पानी भर जाए तो आसानी से निकल भी जाए।

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