एमबीए किया, फिर नौकरी, मगर गेंदे के फूलों की खेती ने बदली किस्मत, पढ़िए पूरी कहानी

Update: 2018-04-01 14:08 GMT
गेंदे के फूलों की खेती से रवि पाल ने बदली अपनी किस्मत।

लखनऊ। एमबीए के बाद चार साल नौकरी करने के बाद जब गाँव में फूलों की खेती करने लौटे तो गाँव वालों के साथ ही घर के लोगों ने भी विरोध किया। आज जिले के सबसे बड़े फूल उत्पादक किसान बन गए हैं। मैनपुरी ज़िले के सुल्तानगंज ब्लॉक के गाँव पद्मपुर छिबकरिया के रहने वाले रवि पाल (27 वर्ष) छह महीने पहले तक नोएडा की एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करते थे। मगर अब रवि अपने गाँव में वापस आकर गेंदा की खेती करने लगे हैं। दो बीघा में खेती शुरू करने वाले रवि ने इस बार 20 बीघा खेत में गेंदा लगाया है।

गेंदे की फसल को खराब नहीं करते जानवर

नौकरी छोड़कर गाँव वापस आने के बारे में रवि बताते हैं, ‘‘हमारे गाँव में नीलगाय का बहुत आतंक है। हर साल नीलगाय हमारे तरफ सैकड़ों बीघा खेत बर्बाद कर देते हैं। मुझे पता चला कि गेंदे की फसल को नीलगाय और दूसरे जानवर खराब नहीं करते हैं।’’ वो आगे कहते हैं, ‘‘बस तभी से घर आ गया और दो बीघा खेत में गेंदे के पौधे लगा दिए। इसकी सबसे अच्छी खासियत है ये ढाई-तीन महीने में इसकी फसल तैयार हो जाती है।’’

नौकरी से अच्छा किसान बनकर लगा

इस दिपावली में रवि के खेत से दस क्विंटल गेंदा मैनपुरी जिले में गया था। अभी इससे कई गुना ज्यादा गेंदा का उत्पादन होगा। दस दिनों में फूलों तोड़ने लायक हो जाते हैं। मैनपुरी ज़िले में ये पहला उदाहरण है, जब कोई एमबीए जैसी डिग्री वाला किसान हो। साल 2011 में एमबीए करने के बाद रवि पाल ने एलएनटी और कोटेक महिन्द्रा जैसी कंपनियों में नौकरी की है। रवि इस बारे में कहते हैं, ‘‘मुझे इन नौकरियों में इतना अच्छा नहीं लगा, जितना किसान बन कर। अब मुझसे मिलने ज़िलेभर के किसानों के साथ ही दूसरे ज़िलों के भी किसान आते हैं।’’

ढाई-तीन हजार लागत में 30-50 हजार की आमदनी

एक बीघा गेंदा लगाने में नर्सरी से लेकर खाद तक में ढाई से तीन हजार रुपए की लागत आती है। उसी खेती में 30 से 40 हजार रुपए की आमदनी हो जाती है। रवि के साथ ही किसानों को दीपावली में ही आठ हजार रुपए की आमदनी हो गयी है।

दूसरे किसानों को भी दे रहे हैं गेंदा की खेती की जानकारी

रवि के खेतों से फूल आगरा, कानपुर और दिल्ली के फूल मंडी में जाता है। रवि अपने जिले के दूसरे किसानों को भी गेंदा की फूलों की खेती करा रहे हैं। जिले के कछपोरा, बहादुरपुर, मधाऊ, मंगलाझाला जैसे गाँवों के 12 और भी किसान गेंदा की खेती कर रहे हैं। गाँव आने में दूसरे किसानों को भी प्रेरणा मिल रही है। दस मार्च को जिलाधिकारी ने रवि को सम्मानित भी किया। अब उसे सैकड़ों किसान जुड़ गए हैं।

थाईलैंड और कोलकाता से मंगाते हैं फूलों की बीज

रवि ने गर्मी वाली फसल के लिए थाइलैंड से गेंदे के बीज मंगाकर बाग लगायी थी। रवि कहते हैं, ‘‘पिछली बार थाईलैंड से गेंदे के कुछ बीज मंगाए थे, अपने यहां के गेंदे के फूल तीन-चार महीने तक फूल देते हैं, जबकि थाईलैंड के गेंदे के पौधे 12 महीने फूल देते हैं। थाईलैंड से मंगाए गेंदों को बुके में भी लगा सकते हैं।’’ इस बार सर्दी की फसल में रवि ने कलकत्तिया और जाफरी किस्म का गेंदा लगाया है।

गेहूं धान जैसी फसलों से होती है अधिक कमाई

रवि बताते हैं, “ज्यादातर किसान धान, गेहूं, मक्का जैसी परंपरागत फसलों की खेती में उतना फायदा नहीं होता है, जितना हम किसान फूलों की खेती से कमा रहे हैं।“

वीडियो- फूलों की खेती करने वाले एक किसान की कहानी देखिए

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