बदलते दौर में इंटीरियर डेकोरेशन के लिए लोग गाँवों में बने हस्तशिल्प उत्पादों को खूब पसंद कर रहे हैं। हाथों से बनाए गए उत्पाद मशीनों में बने सामानों की तुलना में ज़्यादा आकर्षक तो लगते ही हैं, साथ ही इनपर किया गया काम भी सफाई से दिखता है। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद ज़िले में बनाए गए मूंज उत्पाद भी अपनेआप में अलग पहचान रखते हैं। हालांकि एक बड़ा तबका इस काम से जुड़ा हुआ है, लेकिन इस कला को प्रोत्साहित करने में सरकार ने अभी तक कोई खास पहल शुरू नहीं की है। आइये जानते हैं इलाहाबाद के मशहूर मूंज हस्तशिल्प कारोबार के बारें में।
इलाहाबाद ज़िले में नैनी क्षेत्र के पूरब पट्टी गाँव में पिछले 80 साल से मूंज उत्पादों का कारोबार हो रहा है। इस इलाके में करीब 90 फीसदी लोग इस कला से जुड़े हुए हैं, लेकिन सरकार की ओर से कोई मदद न मिल पाने के कारण यह कला अभी इलाहाबाद ज़िले तक ही सीमित रह गई है। पूरब पट्टी गाँव में रहने वाले मो. अबसार का परिवार पिछले 20 वर्षों से मूंज उत्पाद बनाने का काम करता है।
मूंज उत्पाद के बारे में हस्तशिल्पी मो. अबसार बताते हैं कि मूंज के बर्तन बनाने का कारोबार सिर्फ और सिर्फ इलाहाबाद के कारीगरों की मदद से जिंदा रखा जा सका है। इस समय हमारे कस्बे में करीब 500 कारीगर इस कला से जुड़े हुए हैं, लेकिन मूंज कारोबार को बढ़ाने के लिए अभी तक कोई भी सरकारी योजना नहीं शुरू की गई है। बस कभी कभी सरकारी मेलों में जाने का मौका मिल जाता है, जिसमें अच्छी कमाई हो जाती है। नहीं तो बहुत मेहनत कर अपना घर चलाना पड़ता है।
मूंज उत्पाद नदी किनारे उगाई जाने वाली मूंज घास (सरपत) से बनाए जाते हैं, इस घास की पैदावार साल में एक बार होती है। यह घास दशहरे से दिवाली तक तैयार हो जाती है और इसे कच्चा तोड़ कर धूप में सुखाया जाता है। इसके बाद इस घास को स्टोर कर के साल भर मूंज के बर्तन व कलाकृतियां बनाई जाती है |
''जब भी हम मेले या किसी आयोजन में जाते हैं, तो हम तरह-तरह के डिज़ाइनर सजावटी सामान देखते हैं, इससे हमें आइडिया मिल जाता है कि आज कल कस्टमर क्या चाहता है। हम उसी के हिसाब से हस्तशिल्प सामान तैयार करते हैं।'' मो. अबसार मूंज कारीगर आगे बताते हैं।
मूंज घास से मुख्यरूप से फ्रूट बासकेट, ब्रेड बास्केट, डायनिंग टेबल मैट, वॉल हैंगिंग, चूड़ियां-कंगन, पेन स्टैंड, पिकनिक बैग, चप्पल और टी सेट जैसै सामान बनाए जाते हैं।
इलाहाबाद के ही नैनी इलाके में मूंज कारोबार से जुड़े व्यवसायी नरेश सिंह (44 वर्ष) बताते हैं,'' मूंज उत्पाद में सबसे पहले बिचौलियों की दखल को खत्म करना चाहिए, ये बिचौलिये कारीगरों से सस्ते में सामान खरीदकर बाहर बज़ारों में महंगे रेट पर बेचते हैं, इससे इन कारीगरों को मेहनत का फल उन्हें नहीं मिल पाता है।'' वो आगे बताते हैं कि अगर सरकार मूंज कारीगरों के लिए अलग से बिक्री केंद्र खोल दे, जहां ये कारीगर सीधे आकर अपना सामान बेच सकें, तो इससे इस कला को आगे बढ़ाने में बहुत मदद मिलेगी।
एक जनपद-एक उत्पाद योजना में शामिल हुआ मूंज कारोबार
हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी एक जनपद-एक उत्पाद योजना में मूंज कारोबार को शामिल किया है। इस योजना से जुड़ कर इस उत्पाद से जुड़े कारीगरों को आसानी से लोन मिलने में मदद मिलेगी।