अनुभव सिन्हा: कोई नहीं चाहता था कि मैं 'मुल्क' बनाऊं

Update: 2019-12-11 07:25 GMT




नीलेश :- ये जो एक असफल फिल्म या जिसको कमर्शियल मामले में असफल मानते हैं ,उसके बाद उसके अगले दिन का जो डायरेक्टर होता है ,वो किसी एक अदृश्य कटघरे में खड़ा होता है क्या?

अनुभव :- अपने ही कटघरे में खड़ा होता है,अगर वो ईमानदार आदमी है तो! अगर वो बेईमान आदमी है तो वो रास्ते ढूँढ़ लेता है उस सबको जस्टीफाई करने के। पर अपने आप से ईमानदार रहने की सलाहियत आपमें है तो आपको पता होता है कि- ऐसा क्यों हुआ?

लेकिन उसका कुछ कर नहीं सकते ,क्योंकि उस वक़्त जो बिजनेस है वो इतना कैपीटल इंटेंसिव आर्ट फॉर्म है ना ये कि- फिर वो पैसा रेज़ करना वो किसी अजनबी का कॉन्फिडेंस रेज़ करना कि- नहीं अनुभव अच्छी पिक्चर बनायेगा इस बार वो बड़ा मुश्किल होता है यहाँ। और उसमें कमर टूट जाती है।

नीलेश :- जब ये लग रहा था कि- आप नहीं कर पायेंगे आगे फिल्म! तब क्या सोचते थे?

अनुभव :- नहीं! मुझे नहीं लगा ऐसा कभी ,लोगों को लगता था। मुझे तो पता है मैं ...पता है ना मैं बहुत पॉम्पस आदमी हूँ। मैं तो फिल्में बनाऊँगा। मुझे कोई नहीं रोक सकता।

नीलेश :- पर कभी-कभी मुझे लगता है- कितना कठिन होता होगा इतनी लंबी यात्रा आपके साथ तो बहुत हाईज़् आते रहे इस लंबी यात्रा में ,लेकिन कयी लोग कितने साल इंतज़ार करते हैं एक फिल्म बनाने के लिये ,कैसे होती हैं ये यात्रायें और इस बीच क्या करते हैं लोग?

जीविका कैसे संभालते हैं?

अनुभव :- पता नहीं! सबके अलग-अलग तरीके होते हैं। बहुत मुश्किल तरीके होते हैं वो सारे लेकिन जिसको फिल्म बनानी होती है,उसको फिल्म बनानी होती है ,वो कुछ और नहीं कर सकता ,,वो यही कर सकता है।

आप मेरे कनपटी पर बंदूक लगा दीजिये और बोलिये कि फिल्म मत बना। ,,,वो नहीं हो सकता। मैं बोलूँगा गोली मार दे। तो वो एक नशा है ,बहुत श़दीद ख़्वाहिश है। पैशन कह लीजिये ,इसमें ऑप्शंस नहीं होते।

नीलेश :- और आपने ज़िन्दा कैसे रखा इस पैशन को अब तक?

अनुभव :- पैशन अगर ज़िन्दा रखना पड़े तो पैशन नहीं था ना फिर ,वो तो ख़ुद ही ज़िन्दा रहेगा। वो आपको कभी मरने नहीं देगा। तो पैशन ज़िन्दा रखने के लिये कुछ करना नहीं पड़ा।वो पैशन था तभी तो इतनी भयंकर.... रा-वन के बाद इंडस्ट्री मेरे बारे में ऐसे बात करती थी कि- इसने तो शाहरुख खान के साथ फ्लाप बनाई है। और 2011 में सवा सौ करोड़ का बिजनेस है। तब फ्लाप थी फिल्म। तो इतनी नेगेटिविटी और जो आप कहें ना कहें मुझे आपकी नज़रों में दिखाई देती थी ,तो वो आसान थोड़ी था ,बहुत मुश्किल था ,बहुत हार्टब्रेकिंग था।

बिकॉज़् बहुत मन से और बहुत मेहनत से बनाई थी। गलतियाँ कीं थी ऑफ्कोर्स ,कौन सी पिक्चर परफेक्ट होती है।

नीलेश :- मुल्क में आप जो कहना चाह रहे हैं,और हाल के वर्षो में आप सोशल मीडिया पर बहुत मुख़र रहे हैं फिर गायब हो गए?

अनुभव :- हाँ ,,मुझे लगा मैं ...पता नहीं आपके शो पे गाली अलाउड है कि नहीं?

वो उल्लू के पट्ठों से क्यों बात करूँ मैं?

मैं जाता था वहाँ क्योंकि वहाँ नीलेश मिल जाता था,वहाँ हंसल मिल जाता था। हम लोग ऐसा कुछ व्हाट इज़् नीलेश अप टू! नीलेश ने कोई कविता शेयर की है,हंसल ने कोई फिल्म रिकमेंड की है मैं वहाँ जाता था इसलिए।

फिर मुझे मेरे समाज के बारे में क्या बुरा लग रहा है वो बोल दिया ,मुझे मेरे देश की राजनीति के बारे में क्या बुरा लग रहा है- वो बोल दिया। तो उस पर बातचीत की हमेशा गुंजाइश रहती है ,लेकिन जब आप उस पर मशीनों से डील करने लगे ,तो वो तज़ुर्बा अच्छा नहीं था, तो मैंने कहा कि- अभी जब ये मशीनें मर जायेंगी तब आऊँगा वापस। नीलेश से एस.एम.एस.पर बात कर लूँगा,व्हाट्सएप पर बात कर लूँगा।

नीलेश :- और ये अब क्या मुल्क़ में पहली बार एक कन्सर्न्ड सिटिजन के नाते भी आपने अपनी फिल्म ....?

अनुभव :- हाँ ,मुल्क़ इज़् प्योरली फ्रॉम अ कन्सर्न्ड सिटीजन। प्योरली वाइव् कंसर्न्ड सिटीजन हू इज़् वैरी एंग्री।




 


नीलेश :- क्या थी वो नाराज़गी?

अनुभव :- कि क्या कर रहे हो? वो जो कर रहे हैं वो तो कर रहे हैं।आप देखिये मुल्क़ में एक भी पॉलीटिकल कैरेक्टर नहीं है। मुल्क़ हमारे बारे में है। तो, मैं तो हमलोगों से नाराज़ था। मुसलमानों से भी नाराज़ था और हिन्दुओं से भी नाराज़ था। वो कंसर्न्ड सिटीजन था जो रिस्पांसिवल फील करता था कि- भाई ये गलत हो रहा है ,इसको ठीक करो। क्योंकि तुम जहाँ जा रहे हो वहाँ कोई रास्ता नहीं है ,उधर दीवार है और बहुत मजबूत दीवार है उधर। उसको तोड़ के उस पार निकल नहीं पाओगे। रहना यहीं है,साथ में रहना है। चार लोग बरगलाते हैं ,आप बेवकूफों की तरह लड़ने लगते हैं तलवार ले के बंदूक ले के निकल पड़ते हैं। अचानक गाय देश का सबसे इंपोर्टेंट जानवर हो गया ,हज़ारों की तादाद़ में गायें हाइवे पे खड़ी दिखती हैं,प्लास्टिक खा रही होती हैं उस गाय से किसी को प्यार नहीं है। इस बात का गुस्सा था।

नीलेश :- मैंने सुना कि जब आप मुल्क़ बना रहे थे तो आपको एक डेढ़ महीने पहले तक पता भी नहीं था कि- इसको फाइनेंस कैसे करेंगे?

अनुभव :- पंद्रह दिन, बीस दिन पहले तक। ऑफिस में प्री-प्रोडक्शन चल रहा था,जितने मेरे पास पैसे थे उनसे। और मैं मार्केट में पैसे ढूँढ़ रहा था। कोई मुझे पैसे दे नहीं रहा था। कौन देखेगा ये पिक्चर? अंत में दीपक मुकुट ने पैसे लगा दिये उसमें। आई एम सो हैप्पी कि..उनको उनके पैसे वापस मिल गये और चार पैसे कमा भी लिये उन्होंने। इज्ज़त भी कमा ली हम सबने।

नहीं,,,मुल्क़ तो कोई चाहता नहीं था मैं बनाऊँ, फिर जब पिक्चर चल जाती है ना ,तो फिर हर आदमी को मुल्क़ बनानी होती है।

नीलेश :- हाँ ये भेड़चाल है।

अनुभव :- मतलब वो अनप्रेसिडेंटिड किसी को नहीं करना है। एक्चुअली आर प्रोड्यूसर्स नीड टू गेट मोर फिल्म लवर्स।

दे हैव टू लव मनी, दैट्स व्हाई दे आर प्रोड्यूसर्स बट दे आलसो हैव टू बी मोर मूवी लवर्स। इन लॉट ऑफ केसेज देअर आर बट लाट ऑफ केसेज दे आरनॉट मैनी मैनी मूवी लवर्स।

नीलेश :- और आप बम्बई से कुछ-कुछ समय के लिये दूर जाना चाहते हैं?

अनुभव :- हाँ ,,,हन्ड्रेड परसेंट। ढूँढ नहीं पा रहा हूँ ,पीछे विदेश सोच रहा था फिर मुझे लगा वो अपनी सभ्यता तो नहीं है, अपने संस्कार नहीं हैं बोर हो जाऊँगा। यहाँ से आप निकलें कम से कम बाहर जायेंगे तो वही खिचड़ी डिस्कस होगी ना,वही गेंहूँ डिस्कस होगा ना! मैं वहाँ पे क्या डिस्कस करूँगा। वहाँ घूमने जाया जा सकता है शायद ,तो मैं थोड़ा भटक रहा हूँ। ढूँढ़ रहा हूँ कि- कहाँ जाना चाहता हूँ?

पर एक छोटा सा एक ठिया बनाना चाहता हूँ,जहाँ पे थोड़ी सी... मतलब थोड़े-थोड़े समय के लिये इजेक्ट होता रहे आदमी।

ऐसा कुछ करना चाहता हूँ। और आपका ये ठिया बहुत कमाल है ,जो आपने बनाया है।

तो इस जगह का नाम ही 'स्लो' रख दिया है?

नीलेश :- इस जगह का नाम ही स्लो है ,जहाँ ज़िन्दगी धीमी हो जाती है।

अनुभव :- (हँसते हुये ) सब कुछ स्लो है यहाँ पर!

धीमी ही होनी चाहिए थी ,ज्यादा तेज़ कर दी हम लोगों ने। अंधेरी से जूहू जाने में ही हम परेशान होते रहते हैं कि- अरे यार कितना ट्रैफिक है ,बहुत।

पहुँच जायेंगे भाई .....

नीलेश :- चलिये,, बहुत मज़ा आया आपसे बात करने में।

अनुभव :- मुझे भी बहुत मज़ा आया, तज़ुर्बा बहुत कमाल रहा।

कढ़ी-चावल और उसके बाद चाय और इत्ती सारी बातचीत।


प्रस्तुति: प्रीति राघव


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