उठ मेरी जान - कैफ़ी आज़मी की नज़्म ‘औरत’ पर आधारित

Update: 2017-01-14 02:37 GMT
कैफ़ी आज़मी

हिंदुस्तान की अदबी आसमान का सबसे चमकदार नाम है कैफ़ी आज़मी। वो शायर जिसने ज़िंदगी के हर एहसास पर लिखा। जो लिखा उसे जिया भी। ज़ुल्म के खिलाफ सिर्फ कलम नहीं, आवाज़ भी उठाई। हिंदी सिनेमा को वो गीत दिये जिन्हें ज़मानों तक भुलाया नहीं जा सकेगा।

कैफी साहब का पूरा नाम सैय्यद अतहर हुसैन रिज़वी था। 14 जनवरी 1919 को आज़मगढ़ के गांव मिज़वां में पैदा हुए कैफ़ी साहब की कलम के ज़ोर ने उन्हें पूरी दुनिया में मशहूर किया। कौमी एकता पर उन्होंने एक से बढ़कर एक नज़्में कही। दूसरा वनवास उसमें से एक है।

कैफ़ी साहब ने अपनी नज़्म ‘औरत’ में मर्द और औरत को कंधे से कंधा मिलाकर, साथ-साथ चलने की बात की है। उनका कहना था, हर वो हक जो मर्दों के पास हैं औरतों के पास भी होना चाहिए। Content Project Pvt Ltd ने कैफी साहब के उसी ख्याल पर, उन्ही की नज़्म लेकर एक छोटी सी कोशिश की है, जिसे आप नीचे लिंक में देख सकते हैं। ये कैफ़ी आज़मी को हमारी श्रद्धांजलि है।

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