बर्थडे स्पेशल - “सांभा, तुम कहां चले गए”

Update: 2017-04-24 17:57 GMT
मैकमोहन

वो पुराना दौर जब एंग्री यंग मैन की सुर्ख आंखें हिंदुस्तान में फिल्म के चाहने वालों को दिवाना बना रही थीं, सत्ता, सिस्टम और समाज के खिलाफ उसका गुस्सा दर्शक को अपना गुस्सा लग रहा था, उसी दौर में एक शख्स और था जो न तो सिस्टम को बदलना चाहता था न समाज को, वो सिर्फ वही करता था जो उसका ‘सरदार’ उससे कहता था, लेकिन फिर भी दर्शक उसे बेहद पसंद करते थे। दुबला-पतला जिस्म, चेहरे पर खिचड़ी दाढ़ी और बोलती हुई आंखें .. वो शख्स पर्दे पर जब भी आता, लोगों की उम्मीदें फिल्म से बढ़ जाती थी। उस शख्स का नाम था - मैकमोहन।

फिल्म शोले के एक दृश्य में मैकमोहन

आमतौर पर माना जाता है कि किसी फिल्म का यादगार किरदार बनने के लिेए बेहतरीन संवाद होना ज़रूरी होता है, बहुत हद तक ये सही भी है, लेकिन मैकमोहन वो कलाकार थे जो साधारण संवाद को भी बेहतरीन बनाने का हुनर जानते थे। फिल्म शोले में जब गब्बर सिंह पूछता है, "कितना इनाम रक्खे है सरकार हमपर" तो टीले पर बैठा हुआ सांभा यानि मैकमोहन बताता है, "पूरे पचास हज़ार"। इस संवाद में न कोई खास बात है न कोई वज़न लेकिन शोले फिल्म के तमाम यादगार डायलॉग्स में मैकमोहन का 'पूरे पचास हज़ार' भी उतना ही मशहूर है जितना 'कितने आदमी थे', ये मैकमोहन का ही कमाल था।

‘ज़ंजीर’ में अमिताभ बच्चन के साथ मैकमोहन

24 अप्रैल 1938 को कराची में पैदा हुए मैकमोहन कहते थे कि फिल्मों में उनका आना सिर्फ एक इत्तिफाक़ था। उनके पिता भारत में ब्रिटिश आर्मी में कर्नल थे। मैकमोहन को बचपन से ही क्रिकेट का शौक था और वो क्रिकेटर बनना चाहते थे। साल 1940 में उनके पिता का ट्रांसफर कराची से लखनऊ हो गया, फिर मैकमोहन की शुरुआती पढ़ाई लखनऊ में ही हुई। इसके बाद कुछ दिनों के लिए वो मसूरी भी रहे। एक इंटरव्यू में मैकमोहन ने कहा था कि उन्होंने उत्तर प्रदेश की क्रिकेट टीम के लिए भी खेला था। फिर एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने तय कर लिया कि अब उन्हें क्रिकेटर बनना ही है। उन दिनों क्रिकेट की अच्छी ट्रेनिंग सिर्फ मुंबई में दी जाती थी, वहां कई क्रिकेट ऐकेडमी हुआ करती थीं। मैकमोहन साल 1952 में मुंबई आ गए। लेकिन मुंबई आने के बाद उन्होंने जब रंगमंच को देखा तो वो उन्हें ज़्यादा करिश्माई लगा। उन दिनों कैफी आज़मी की पत्नी शौकत कैफी जो कि IPTA की सदस्य थी, एक स्टेज ड्रामा डायरेक्ट कर रही थीं जिसका नाम था 'इलेक्शन का टिकट'। उसके लिए उन्हें एक दुबले-पतले लेकिन साफ बोलने वाले शख्स की ज़रूरत थी। मैकमोहन के किसी दोस्त ने उन्हें इसके बारे में बताया। उन्हें पैसों की ज़रूरत थी लिहाज़ा सिर्फ थोड़े-बहुत पैसे बनाने के लिए उन्होंने शौकत कैफी से नाटक में काम मांगने के लिए मुलाकात की। काम मिल भी गया लेकिन जब उनकी एक्टिंग मंच पर देखी गई तो सभी हैरान हो गए, मौकमोहन को खुद भी नहीं पता था कि वो इतने बेहतरीन एक्टर हैं। अदाकारी उन्हें 'गॉड गिफ्टेड' मिली थी।

“मैं रोज़ाना अपने घर की छत पर जाकर अलग अलग चरित्रों की प्रैक्टिस किया करता था, ज़ोर ज़ोर से डायलॉग बोलता था और चीखता-चिल्लाता था। मेरी इस चीख-चिल्लाहट से पड़ोस में रहने वाले निर्देशक रघुनाथ झालानी इतने तंग आ गए थे कि फ़िल्म ‘आया सावन झूम के’ में पागल की भूमिका में उन्हें मैं ही याद आया”,
एक इंटरव्यू में मैकमोहन

मैकमोहन

'इलेक्शन का टिकट' के बाद उन्हें लोग पहचानने लगे, नाटक ज़बर्दस्त हिट हुआ। इसी दौर में IPTA के कोच पी डी शिनॉय ने उन्हें राय दी कि उन्हें क्रिकेट नहीं बल्कि एक्टिंग सीखनी चाहिए, वो और बेतर कर पाएंगे, ये राय मैकमोहन को समझ आ गई और उन्होंने 'फिल्मालया एक्टिंग स्कूल' में तीन साल के एक्टिंग कोर्स में एडमिशन ले लिया। कोर्स खत्म करने के बाद उन्होंने अपने दोस्त और फिल्म डायरेक्टर चेतन आनंद के एसिस्टेंट के तौर पर राम करना शुरु कर दिया। उन्हें फिल्म एक्टर के तौर पर पहला काम भी चेतन आनंद ने ही दिया। फिल्म का नाम था 'हकीकत'.. हालांकि फिल्म के क्रेडिट रोल में उनका नाम मैकमोहन की जगह, गलती से ‘ब्रिज मोहन’ हो गया था।

फिल्म हकीकत के क्रेडिट रोल

मैकमोहन ने अपने 46 साल के करियर में 175 फिल्मों में काम किया। उन्हें अपने दौर के सभी बड़े फिल्म डायरेक्टर्स ने काम दिया। डॉन, कर्ज़, सत्ते पे सत्ता, काला पत्थर, रफू चक्कर, शान और शोले जैसी फिल्मों में उनका काम बेहद सराहा गया। मैकमोहन ने नेगिटिव शेड के किरदार किये, अपनी दुबले-पितले जिस्म के बावजूद वो स्क्रीन पर असरदार लगते थे। उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ काफी फिल्मों में काम किया। मौकमोहन की आखिरी फिल्मों में ज़ोया अख़्तर की 'लक बाए चांस', 'अतिथि तुम कब जाओगे' और एक पंजाबी फिल्म 'दिल दरिया' थीं।

No one could have suited Sambha’s role better than Mac Mohan. He will be always remembered by that role 
रमेश सिप्पी

नवंबर 2010 में जब मौकमोहन 'अतिथी तुम कब जाओगे' की शूटिंग कर रहे थे तो उनकी तबियत खराब हुई। तभी उन्हें मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में दाखिल किया गया। जहां डॉक्टरों ने बताया कि उनके फेफड़ों में ट्यूमर है। इसके बाद उनका लंबा इलाज चला लेकिन उनकी तबियत लगातार बिगड़़ती गई। एक साल बाद ही,10 मई 2010 को मैकमोहन हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह गए। वो अपने पीछे, पत्नी मिनी, दो बेटियां मंजरी - विनती और एक बेटा विक्रांत छोड़ गए।

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