शम्मी कपूर का ज़िक्र जब भी होता है हमारे ज़हन में या तो 'याहू...' गूंजने लगता है या फिर अशोक कुमार के साथ उनका वो विज्ञापन 'एक बात तो कहना हम भूल ही गए..' लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि शम्मी साहब एक बेहतरीन अदाकार होने के साथ-साथ एक टेक्नोलॉजी फ्रीक भी थे। साल 1988, जब देश में शायद ही किसी के पास कंप्यूटर रहा हो, तब भी वो पर्सनल कंप्यूटर इस्तेमाल करते थे। शायद इसीलिए शम्मी साहब को फ़िल्म जगत का सबसे पारंगत कम्प्यूटर यूजर माना जाता था।
इस बारे में उनके दामाद केतन देसाई ने एक इंटरव्यू में बताया कि शम्मी साहब जब पहली बार कम्प्यूटर और प्रिंटर घर लाए थे तो दिनभर उस पर अपने प्रयोग करते रहते थे। एक बार वो (केतन देसाई) अनिल अंबानी के साथ शम्मी साहब घर गए तो सारा ताम-झाम देख कुछ समझ ना पाये। अनिल अंबानी ने पूछा, "क्या शम्मी अंकल ने घर पर ही डेस्क-टाप पब्लिशिंग शुरू कर दी है"?
ज़ाहिर है, ये वो दौर था जब पर्सनल कम्प्यूटर नाम की किसी चीज से लोग अनजान थे। शम्मीजी भारत में कम्प्यूटर और इंटरनेट के घरेलू उपयोग को बढ़ावा देने वाले पहले शख्स थे, इसीलिए उन्हें भारत का पहला इंटरनेट गुरू या साइबरमैन कहा जाता है। उनका असली नाम 'शमशेर राज कपूर' था और आज उनका जन्मदिन है।
शम्मी कपूर की पैदाइश 21 अक्टूबर 1931 को मुंबई में हुई थी। वह महान कलाकार पृथ्वीराज कपूर और रामसरनी रमा मेहरा के दूसरे बेटे थे। शम्मी कपूर के परिवार में पत्नी नीला देवी, बेटा आदित्य राज और बेटी कंचन देसाई हैं। इससे पहले की उनकी ज़िंदगी और करियर के सफर के बारे में जाने, एक नज़र उस विज्ञापन पर जिसे देखते हुए हमारी पीढ़ी बड़ी हुई और शायद यही वो दौर था जब हमने पहली बार शम्मी साहब को टीवी स्क्रीन पर देखा।
अभिनय पारी
शम्मी कपूर ने साल 1953 में फिल्म 'ज्योति जीवन' से अपनी अभिनय पारी की शुरुआत की। साल 1957 में नासिर हुसैन की फिल्म 'तुमसा नहीं देखा' में जहां अभिनेत्री अमिता के साथ काम किया, वहीं साल 1959 में आई फिल्म 'दिल दे के देखो' में आशा पारेख के साथ नजर आए। 1961 में आई फिल्म जंगली ने शम्मी कपूर को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया। साल 1960 के दशक तक शम्मी कपूर प्रोफेसर, चार दिल चार राहें, रात के राही, चाइना टाउन, दिल तेरा दीवाना, कश्मीर की कली और ब्लफमास्टर जैसी बेहतरीन फिल्मों में दिखाई दिए। फिल्म ब्रह्मचारी के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला था।
रॉकस्टार शम्मी
शम्मी कपूर ने अपनी फिल्मों में बगावती तेवर और रॉकस्टार वाली छवि से उस दौर के नायकों को कई बंधनों से आजाद कर दिया था। हिंदी सिनेमा को ये उनकी बड़ी देन थ। उनके जैसे किरदार दूसरा कोई नहीं निभा पाया। शम्मी कपूर बड़े शौकीन मिजाज थे। भारत में जब इंटरनेट आने पर वह उसका इस्तेमाल करने वाले गिने-चुने कलाकारों में शामिल थे। तरह-तरह की गाडिय़ां चलाने का शौक़, शाम को गोल्फ खेलना, समय के साथ चलना वे बख़ूबी जानते थे। फि़ल्मों में शम्मी कपूर जितने जिंदादिल किरदार निभाया करते थे, उतनी ही जिंदादिली उनके निजी जीवन में दिखती थी। उनके जीवन में कई मुश्किल दौर भी आए खासकर तब जब 60 के दशक में उनकी पत्नी गीता बाली का निधन हो गया। तब वे अपने करियर के बेहद हसीन मकाम पर थे, ये और बात है कि बाद में एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होने बुरा दौर भी देखा लेकिन अपनी कोशिशों और ज़िंदादिली से जल्द ही वो वापस कामयाबी की तरफ आ गए। उनकी आखिरी फ़िल्म रॉकस्टार थी।
इंतकाल
शम्मी साहब ना सिर्फ अदाकारी बल्कि डांस के लिए भी बहुत मशहूर हुए। उनके बाद के कई अदाकारों ने उनकी ही तरह गर्दन को लचकाकर डांस करने को अपना स्टाइल बनाने के कोशिश की लेकिन कामयाब ना हो सके। स्टार शम्मी कपूर ने 14 अगस्त, 2011 को मुंबई के ब्रिज कैंडी अस्पताल में सुबह 5 बजकर 41 मिनट पर दुनिया को अलविदा कह दिया।