पहले मां ने छोड़ा साथ, फिर पति ने किया रेप, संघर्ष ने बनाया नाम 'हलदर'
लखनऊ : कहते हैं, परिस्थितियां अनुकूल नहीं होती उन्हें अनुकूल बनाना पड़ता है मतलब जरुरी नहीं कि जिंदगी में हमेशा वही हो जो हम चाहते हैं कभी-कभी वास्तविकता कल्पना से बेहद परे होती है। बावजूद इसके लगातार जिंदगी से जूझते रहना ही 'संघर्ष' कहलाता है।
लखनऊ : कहते हैं, परिस्थितियां अनुकूल नहीं होती उन्हें अनुकूल बनाना पड़ता है मतलब जरुरी नहीं कि जिंदगी में हमेशा वही हो जो हम चाहते हैं कभी-कभी वास्तविकता कल्पना से बेहद परे होती है। बावजूद इसके लगातार जिंदगी से जूझते रहना ही 'संघर्ष' कहलाता है।
आज हम आपके लिए एक ऐसी ही 'संघर्ष की मिसाल' कही जाने वाली 'बेबी हलदर' की कहानी लेकर आएं हैं, जिनको सताने में हालातों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन हलदर मानो जैसे आगे बढ़ने की ठान चुकी थी।
पहले मां ने छोड़ा साथ, फिर पति ने किया रेप -
एक गरीब परिवार में पलीं-बढ़ी 'बेबी' वेस्ट बंगाल के दुर्गापुर की रहने वाली हैं उनकी जिंदगी किसी भयावह फिल्मों की कहानियों से कम नहीं है। जब वह चार साल की थीं तो उनकी मां ने उनका दामन छोड़ दिया। इसके बाद मात्र 12 वर्ष की उम्र में उनका ब्याह करा दिया गया और तो और शादी की रात ही पति ने उनका रेप किया।
शादी के 25 साल हलदर ने पति की गालियां सुनकर ही बिताई थी। आखिरकार दो बच्चों की मां बनने के बाद उन्होनें घर छोड़ने का फैसला किया और ट्रेन से में टॉयलेट के पास बैठकर दिल्ली आ गई, जहां उन्होनें प्रबोध कुमार, जो रिटायर्ड मानव विज्ञान प्रोफेसर और महान लेखक प्रेमचंद के पोते हैं, उनसे घरेलू मदद मांगी। प्रबोध कुमार के घर काम करते हुए उनकी जिंदगी ने मानो जैसे यू-टर्न ले लिया।
किताबों को हमेशा निहारती रहती थी ''हलदर'
प्रबोध के घर साफ-सफाई करते-करते वो अक्सर बुक शेल्फ को निहारती रहती थी। कभी-कभी तो वह बंगाली किताबों को उठाकर पढ़ने भी लगती थी। फिर एक दिन जब प्रबोध ने खुद बेबी का रुझान किताबों की तरफ देखा तो उन्होंने बेबी को बांग्लादेशी ऑथर तसलीमा नसरीन की किताब दी और पढ़ने को कहा। पूरी किताब पढ़ने के बाद प्रबोध ने उनको खाली नोटबुक दी और अपनी कहानी लिखने को कहा।
एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया, पहले बेबी घबरा गई थीं क्योंकि उन्होंने सिर्फ 7वीं क्लास तक ही पढ़ाई की थी, लेकिन जैसे ही वो किताब लिखने बैठीं तो उनमें अलग ही कॉन्फिडेंस आ गया। उन्होंने कहा- 'जब मैंने हाथ में कलम थामा तो घबरा गई थी। मैंने स्कूली दिनों के बाद कभी पेन नहीं थामा था। जैसे ही मैंने लिखना शुरू किया तो मुझमें नई ऊर्जा आ गई। किताब लिखना अच्छा अनुभव रहा।'
'बेबी' की लिखी किताब पढ़ रो पड़े थे प्रबोध
बेबी की लिखी पहली किताब जब प्रबोध ने पहली बार पढ़ी तो वह इतने भावुक हो उठे कि उन्होनें उनकी किताब का हिंदी में अनुवाद किया। इसके बाद किताब का प्रकाशन हुआ और धीरे-धीरे यह किताब लोगों की जुबां पर छा गई।
बेबी हलदर : साहित्य की पहचान
2002 में उनकी पहली किताब 'आलो आंधारी' नाम से आई। पिछले ही साल उनकी ये किताब अंग्रेजी में पब्लिश हुई थी। 'बेबी हलदर' आज साहित्य की दुनिया का जाना-माना चेहरा हैं। पेरिस, हॉन्ग कॉन्ग जैसे देशों में वो टूर कर चुकी हैं। 24 भाषाओं में उनकी किताबों अनुवाद हो चुका है। दुनिया के कई हिस्सों में वो लिट्रेचर फेस्टिवल में हिस्सा ले चुकी हैं। 2002 से अब तक बेबी हलदर ने चार किताबें लिखी हैं।
नहीं छोड़ी 'बाई' की नौकरी
बेबी को लेकर सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि, एक मशहूर लेखिका हो जाने के बावजूद वो अब तक बाई का काम करती हैं आज भी जब लोग उनसे इसकी वजह पूछते हैं तो वह मुस्कुराकर जवाब देती हैं कि जिन्होंने मुझे काम दिया और लेखन के लिए प्रेरित किया मैं उन्हें छोड़कर नहीं जाऊंगी।