#TripleTalaq : मौलवियों से फतवा लाकर महिलाओं पर थोप दिया जाता था

Update: 2017-08-22 11:26 GMT
तलाक के बाद पति से दोबारा शादी करने के लिए महिला को हलाला से गुजरना पड़ता था

लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट ने आज तीन तलाक के मुद्दे पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इसे आज से खत्म कर दिया है। फैसले में तीन जजों ने तीन तलाक को असंवैधानिक बताया है। ये तीन जज जस्टिस नरीमन, जस्टिस ललित और जस्टिस कुरियन हैं। वहीं, चीफ जस्टिस खेहर और जस्टिस नजीर ने संवैधानिक बताया है। तीन तलाक के कई पहलू थे जिन पर मौलवियों का ही एकाधिकार होता था।

तलाक के बाद पति से दोबारा शादी करने के लिए महिला को हलाला से गुजरना पड़ता था। इस प्रक्रिया का मुस्लिम महिलाएं विरोध करती थीं। इसे मौलवियों द्वारा गढ़ा गया बताती हैं।

“तीन तलाक आज से नहीं, काफी समय से चल रहा है। अगर हम कुरान की बात करते हैं तो उसमें भी ये बहुत टाइम से चल रहा है, इसका भी एक तरीका है, अगर तलाक फ़ोन पर या व्हाट्सऐप के जरिए शौहर बोल देता है तो यह सही नहीं हैं, इसलिए वो सहारा लेता है मौलवी का। इसे सही साबित करने के लिए तलाक हो गया है।” ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की राबिया कहती हैं, “हलाला समाज और मौलवियों का बनाया हुआ नियम है जिसे फतवा जारी कर करा दिया जाता था।”

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तीन तलाक आज से नहीं, काफी समय से चल रहा है। अगर हम कुरान की बात करते हैं तो उसमें भी ये बहुत टाइम से चल रहा है, इसका भी एक तरीका है, अगर तलाक फ़ोन पर या व्हाट्सऐप के जरिए शौहर बोल देता है तो यह सही नहीं हैं, इसलिए वो सहारा लेता है मौलवी का। इसे सही साबित करने के लिए तलाक हो गया है।” ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की राबिया कहती हैं, “हलाला समाज और मौलवियों का बनाया हुआ नियम था।”

तलाक के बाद महिलाओं को अपने पूर्व शौहर से शादी के लिए किसी दूसरे आदमी से शादी करनी होती है। उससे शारीरिक संबंध बनाकर फिर तलाक देने को ही हलाला कहते हैं। इसके बाद ही व पूर्व पति से शादी कर सकती है।

हमारे पास तलाक के 10 मामले हैं। तीन तलाक जैसा कानून हमारे धर्म में नहीं है, इस्लाम में तलाक तीन महीने में होता है। हर महीने पति को पत्नी से तलाक बोलना पड़ता है। तब जाकर तलाक पूरा होता है। 
कुरेशा खातून, एडवोकेट

तीन तलाक के ज्यादातर मामलों मे पहले मौलाना रजामंदी कराने की कोशिश ही करते हैं, अगर कोई पक्ष नहीं राजी होता है, तभी तलाक होता है। वही जायज भी है।
सबीहा बानो , शिक्षिका

वहीं, बाराबंकी में मुस्लिम महिलाओं के हक के लिए लड़ाई लड़ने वाली एडवोकेट कुरेशा खातून (40 वर्ष) बताती हैं, “हमारे पास तलाक के 10 मामले हैं। तीन तलाक जैसा कानून हमारे धर्म में नहीं है, इस्लाम में तलाक तीन महीने में होता है। हर महीने पति को पत्नी से तलाक बोलना पड़ता है। तब जाकर तलाक पूरा होता है।” रायबरेली में रहने वाली शिक्षिका सबीहा बानो ने कहा, “तीन तलाक के ज्यादातर मामलों मे पहले मौलाना रजामंदी कराने की कोशिश ही करते हैं, अगर कोई पक्ष नहीं राजी होता है, तभी तलाक होता है। वही जायज भी है।”

मेरा तलाक 12 साल पहले हुआ था। हमारी आपस मे रोज -रोज लड़ाई मारपीट होने के कारण पति ने मौलवी और चार लोगों के सामने तलाक दे दिया और घर से बच्चे के साथ निकाल दिया, तब से आज तक मायके में ही हैं । 
शाहीन, ग्रामीण

वहीं, रायबरेली के मदुरी ग्राम सभा निवासी सलमा (29 वर्ष) कहती हैं, “बिना दोनों पक्षों की बात सुने कोई मौलाना तलाक दिलाते हैं, तो वो किसी भी सूरत से जायज नहीं है। रायबरेली से 22 किमी दूर राजपुर ब्लॉक के कांधी गाँव में रहने वाली शाहीन (34 वर्ष) बताती हैं, “मेरा तलाक 12 साल पहले हुआ था। हमारी आपस मे रोज -रोज लड़ाई मारपीट होने के कारण पति ने मौलवी और चार लोगों के सामने तलाक दे दिया और घर से बच्चे के साथ निकाल दिया, तब से आज तक मायके में ही हैं । तलाक के बाद मेरा शौहर आज दूसरी शादी कर के अपनी ज़िंदगी आराम से गुजार रहा है।”

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