ग्रामीण महिलाओं तक नहीं पहुंच रहीं योजनाएं

Update: 2017-06-16 19:50 GMT
जानकारी और जागरुकता की कमी से नहीं अधिकतर महिलाएं नहीं उठा पातीं योजनाओं का लाभ

गोसाईंगंज। महिलाओं के आर्थिक स्वालम्बन के लिए सरकार लगातार योजनाएं चला रही है, लेकिन फिर भी वो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं बन पा रही। क्योंकि शिक्षा की कमी और जागरूकता न होने के कारण वो इन योजनाओं का स्वयं इस्तेमाल भी नहीं कर पाती।

लखनऊ के गोसाईंगंज ब्लॉक से लगभग 15 किमी दूर सलौली गाँव की रहने वाली रामरती देवी (36) ने लगभग दो साल पहले जननी सुरक्षा योजना के तहत खाता खुलवाया था और उसके बाद वो केवल दो बार बैंक गई हैं, वो भी अपने पति के साथ। रामरती बताती हैं, ‘’सरकारी पैसा आना था इसलिए खाता खुलवा लिया था। उसके बाद से पति ही ज्यादातर इस्तेमाल करते हैं।” वो आगे बताती हैं, ‘’मैं पढ़ी लिखी तो हूं नहीं, वहां कोई भी काम करवाने के लिए फार्म भरना पड़ता है इसलिए कभी अकेले नहीं जाती।”

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से जारी बेसिक स्टेटिस्टिक रिटर्न, मार्च 2012 की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों के बचत खाते 58 प्रतिशत खुले हैं जबकि महिलाओं के मात्र 25 प्रतिशत ही हैं। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के ग्रामीण क्षेत्रों में 14,475 शाखाएं हैं, जिनमें से 2,126 दुर्गम गाँवों में स्थित है।

सरकार महिलाओं को आर्थिक रुप से सशक्त बनाने के लिए समाजवादी पेंशन, विधवा पेंशन, किशोरी सशक्तीकरण जैसी कई योजनाएं चला रही है और इसके चलते ज्यादातर महिलाओं ने अपने खाते तो लेकिन इन खातों का इस्तेमाल ज्यादातर उनके पति या बेटे करते हैं।

हमारे यहां लगभग 1000 महिलाओं के बचत खाते खुले हैं लेकिन पुरुषों के मुकाबले ये अनुपात कम है। केवल 25 प्रतिशत महिलाएं ही अकेले बैंक आती हैं बाकी सभी अपने बेटे या पति के साथ आती हैं।
संदीप टण्डन, मैनेजर, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, शाखा, गोसाईंगंज

संदीप टण्डन आगे बताते हैं, “कई बार ग्रामीण नहीं समझ पाते कि कौन सा फार्म भरना है कैसे भरा जायेगा लेकिन स्टॉफ उनकी मदद कर देता है। ये बात तो सही है कि बैंकिग प्रक्रिया कम पढ़े लिखे लोगों के लिए थोड़ी मुश्किल होती है।”

जानकारी और जागरुकता की कमी से नहीं उठा पातीं योजनाओं का लाभ

“ग्रामीण क्षेत्र के महिलाओं में अशिक्षा एक बहुत बड़ी समस्या है। हमारे यहां बैंक की प्रक्रिया अशिक्षित लोगों के लिए थोड़ी मुश्किल है, खासकर महिलाएं ज्यादा घबरा जाती हैं। सरकार जो योजनाएं भी चला रही हैं उनका पैसा भी महिलाओं को न मिलकर पति के हाथ में ही चला जाता है क्योंकि पैसे निकालने वही जाते हैं।” लखनऊ विश्वविद्यालय की अर्थशास्त्री डॉ. एमके अग्रवाल बताते हैं। वो आगे बताते हैं, “इसलिए अगर बैंक प्रक्रिया को आसान कर दिया जाये तो महिलाएं स्वयं भी बैंक जाने लगेंगी और अपने हित में चलाई जा रही योजनाओं का स्वयं उठा पायेगीं।

आरबीआई की सलाह

भारत के केंद्रीय बैंक रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया यानि आरबीआई ने बैंकों को सलाह दी थी कि वो अपने 25 फीसदी शाखाएं उन ग्रामीण इलाकों में खोलें जहां बैंक की सुविधा नहीं है आरबीआई की नजऱ उन गाँवों पर खास है जिनकी जनसंख्या 2000 से ज़्यादा है। देशभर में ऐसे चुने गए गाँवों की संख्या 72, 800 है।

रोज़गार के लिए लोन भी

महिलाओं के आर्थिक रूप से पीछे रह जाने का कारण बताते हुए लखनऊ महिला सेवा ट्रस्ट की संचालिका फरीदा जलीस बताती हैं, ‘’महिलाएं भावुक होती हैं, वो अपने फै सले स्वयं न लेकर पति के कहने पर लेती हैं। कई ऐसी महिलाएं हैं, जिन्हें रोजगार दिलाने के लिए हम उन्हें लोन दिलाते हैं और उन पैसों को वो बच्चों की शादी, घर के अन्य खर्चों में खर्च कर देती हैं। वो आगे बताती हैं, ‘’शिक्षित होना इसीलिए जरूरी है। कई बार घर के लोग ही बहला फुसला कर उनके पैसे ले लेते हैं।”

Similar News