सेब की खेती इन महिलाओं में जगा रही जीवन जीने की उम्मीद

Update: 2017-03-05 17:56 GMT
सेब की खेती की मदद से रूपा अब हर मौसम एक लाख रुपए तक की कमाई कर लेती हैं। इस कमाई से वह अपने परिवार का भरण-पोषण करने में सक्षम हैं। फोटो साभार: डब्ल्यूएफपी

लखनऊ। 2001 में पति की मौत के बाद रूपा बोहरा अपने परिवार के लिए अकेले कमानेवाली हैं। बिना मजबूत आर्थिक स्थिति के दो बेटों को अकेले पालना नेपाल जैसे देश में चुनौती से कम नहीं है और रूपा के लिए यह थोड़ा और भी मुश्किल है क्योंकि उनका छोटा बेटा पोलियो से संक्रमित होने के कारण शारीरिक रूप से अक्षम है।

रूपा बताती हैं, ‘वह वक्त मेरे लिए बेहद मुश्किल भरा था। बच्चों को अकेले पालने, उन्हें दो वक्त की रोटी उपलब्ध कराने, स्कूल में पढ़ाने और छोटे बेटे की अतिरिक्त देखभाल करने के लिए पैसों की जरूरत पूरी नहीं हो पा रही थी । रूपा आगे कहती हैं कि पति के जाने के उनकी खुद की खेती से बमुश्किल छह महीने तक ही किसी तरह घर का खर्चा चल पाया। इसके बाद उन्होंने बोझा ढोने का काम भी किया कि किसी तरह बच्चों को दो वक्त की रोटी नसीब हो जाए।

नेपाल में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (डब्ल्यूएफपी) द्वारा चलाए जा रहे सेब की खेती के प्रोजेक्ट ने संघर्षरत महिलाओं का जीवन बदला है। एक विधवा के लिए यह उसके बच्चों को भरण-पोषण और शिक्षा के लिए मदद करता है जबकि उसके समुदाय को नौकरी देकर उसे सम्पूर्ण विश्व से जोड़ता है।  

इसके बाद रूपा के लिए सेब की खेती जीवन में एक अहम पड़ाव साबित हुई। रूपा उन 120 परिवारों में से हैं जिन्हें वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (डब्ल्यूएफपी) के तहत सेब की खेती प्रोजेक्ट के लिए सहायता दी जा रही है। यह प्रोजेक्ट बाजुरा जिले के पांडुसैन गाँव में चलाया जा रहा है। यह प्रोजेक्ट क्विक इंपैक्ट प्रोग्राम यानी त्वरित प्रभाव अभियान के अंतर्गत चलाया गया है जो वहां के स्थानीय संघर्षरत लोगों की आर्थिक व तकनीकी रूप से मदद करता है।

सेब का खेत (फोटो साभार: डब्ल्यूएफपी)

2008 से शुरू हुए इस प्रोग्राम के तहत डब्ल्यूएफपी ने स्थानीय लोगों को एक लाख बीस हजार रुपए के 6000 सेब के पौधे दिए। इसी के साथ प्रत्येक पौधरोपण के साथ सदस्यों को पांच किलो चावल भी दिए। बोहरा परिवार के लिए यह प्रोग्राम अपरिहार्य सहायता थी।

अपने खेत में बैठी रूपा बोहरा। (फोटो साभार: डब्ल्यूएफपी)

रूपा ने बताया कि मैंने शुरुआती वर्षों में 150 सेब के पौधे लगाए और इस साल उनमें 50 और जोड़ दिए। मुफ्त में पौधरोपण और उसके साथ मिलने वाले पांच किलो चावल ने मेरे परिवार का पेट भरने में मदद की।

मैं प्रत्येक सीजन में सेब बेचकर एक लाख रुपए कमा लेती हूं। इस रुपए से मैं अपने बच्चों के लिए भोजन खरीद सकती हूं और उन्हें पढ़ने के लिए भेज सकती हूं। अब मुझे मालवाहक के रूप में काम करने की भी जरूरत नहीं है। पिछले साल सूखा पड़ने से हमारी काफी फसल जरूर खराब हो गई थी लेकिन सेब बेचकर जो पैसे मैंने कमाए उससे मैं भोजन खरीदने में सक्षम हूं।
रूपा बोहरा, सेब किसान

डब्ल्यूएफपी द्वारा मारतड़ी और कोल्टी के बीच 42 किमी सड़क का निर्माण के साथ ही यह प्रोजेक्ट और बढ़ता गया। इससे अब फल विक्रेता खुद किसानों तक पहुंच सकते हैं और उनसे प्रत्यक्ष रूप से फल खरीद सकते हैं। अब किसानों को भी अपनी उपज लेकर बाजार जाने की जरूरत नहीं पड़ती। इस सफल अभियान के तहत अब किसान अपने सेब की खेती का रकबा बढ़ाने के लिए खुद से सेब के पौधे खरीदने लगे हैं। इस तरह मारतड़ी कोल्टी रोड स्टेशन पर अब सात हेक्टेयर तक सेब की खेती होती है।

2013 से रूपा अपने खेत के सेब बेचने में अब सक्षम हैं। रूपा कहती हैं, ‘मैं प्रत्येक सीजन में सेब बेचकर एक लाख रुपए कमा लेती हूं। इस रुपए से मैं अपने बच्चों के लिए भोजन खरीद सकती हूं और उन्हें पढ़ने के लिए भेज सकती हूं। अब मुझे मालवाहक के रूप में काम करने की भी जरूरत नहीं है। पिछले साल सूखा पड़ने से हमारी काफी फसल जरूर खराब हो गई थी लेकिन सेब बेचकर जो पैसे मैंने कमाए उससे मैं भोजन खरीदने में सक्षम हूं।’

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