बच्चियों के संकोच को दूर करेगा ‘ऐप’

Update: 2017-03-02 15:39 GMT
प्रतीकात्मक फोटो

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

बरेली। युवावस्था में कदम रखने वाली बच्चियां अक्सर अपने शरीर में हो रहे बदलाव के चलते परेशान रहती हैं। इस बारे में वो संकोचवश किसी से कह भी नहीं पाती। लेकिन अब युवा अवस्था में कदम रख रहीं इन बच्चियों की जिज्ञासाओं और समस्याओं का समाधान मोबाइल ऐप करेगा

बरेली के कई गाँव की लड़कियों से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने भी अपनी समस्याओं को हमारे सामने रखा।

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“मेरा मन कहीं भी जाने का नहीं करता है। मुझे शर्म आती है। पता नहीं क्यों अजीब सा लगता है। बहुत घबराहट होती है और डर भी लगता है। किसी से बात करने में भी शर्म आती है।” कक्षा 7 की छात्रा पूनम (14 वर्ष) ने बताया। पूनम बरेली के भोजीपुरा ब्लॉक के गाँव प्रहलादपुर में रहती हैं, जो बरेली मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व दिशा में स्थित है। पूनम बताती हैं, “ घर में मां हर समय दुपट्टा ओढे रहने को कहती हैं। वह कहती है कि, बड़ी हो रही हो, सलीके से रहा करो। अजीब सा लगता है, लेकिन समझ नहीं आता क्या करूं। इसीलिए मैं अक्सर स्कूल भी नहीं जाती हूं।” यह हाल केवल पूनम का नहीं है बल्कि, युवावस्था में कदम रख रही लगभग हर लड़की का है।

युवावस्था में कदम रख रहीं बच्चियों से यदि उनकी माताएं बात नहीं कर पा रहीं हैं या बच्चियां अपनी समस्याओं को किसी से साझा नहीं कर पा रही हैं तो अब एक ऐप के जरिये भी उनकी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके) के एक हिस्से के रूप में किशोरावस्था में कदम रख रहे लड़कियों एवं लड़कों के लिए ‘साथिया’ रिसोर्स किट एवं ‘ साथिया सलाह ’ मोबाइल ऐप लांच किया गया है।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के सचिव सीके मिश्रा के ने बताया कि, “इस ऐप के जरिये बच्चियां अपनी समस्याओं और जिज्ञासाओं का समाधान पा सकेंगी। इसके बाद उनकी घबराहट और हिचकिचाहट काफी हद तक कम होगी।”

समाजशास्त्री रीता सिंह जो कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की प्रोफेसर हैं कहती हैं “बच्चियों की युवावस्था शुरू होने से पहले ही उनको यौन शिक्षा देना माँ के साथ स्कूल की शिक्षिका की भी जिम्मेदारी है। माँ अपने बच्ची से इस बारे में बात करने में हिचकती हैं और हर स्कूल में यौन शिक्षा दी नहीं जाती है। इसलिए बच्चियां युवावस्था के दौरान शरीर में हो रहे बदलावों को समझ नहीं पाती हैं और कुछ अजीब सा महसूस करती हैं।”

युवावस्था में शरीर में हार्मोन्स में बदलाव होता है जिससे बच्चियों में अजीब सी फीलिंग होना लाजमी है। खास कर जिस समय माहवारी की शुरुआत होती है तब और जब शरीर के ऊपरी हिस्से में उभार शुरू होता है। इस बदलाव से हर महिला अपनी युवावस्था के दौरान गुजरती है। बच्चियों को दुपट्टा डालने, घर में रहने, सही से उठने-बैठने के कायदे तो मां, बहनें सिखाती हैं, लेकिन वे ऐसा क्यों कह रही इसके बारे में नहीं बताती हैं। बच्चियों के लिए यह एक सामान्य सी बात है और इसको सामान्य तरीके से ही लेना चाहिए। 
डॉ. रेखा सचान, स्त्री रोग विशेषज्ञ, किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी  

बच्चियों व महिलाओं के हित के लिए काम कर रही गैर सरकारी संस्था साकार की संस्थापक नितिका कहती हैं “वह बच्चियां जो युवावस्था में कदम रख रही हैं उनके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि उनमें सुरक्षा की भावना पैदा की जाए। उनको समझाया जाए और बताया जाए कि, जो बदलाव वह अपने शरीर में महसूस कर रही हैं वह सामान्य बात है।”

नितिका आगे बताती हैं कि “मेरी संस्था की कार्यकत्रियां गाँवों में घर की महिलाओं से बात करती हैं। अब इंटरनेट का जमाना है, वो ऐप के माध्यम से अपनी जिज्ञासाओं और समस्याओं का समाधान पा सकती हैं।”

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