राजस्थान के जीरा किसानों का संकट, लॉकडाउन में कैसे बेचे अपनी फसल?

टिड्डियों के हमले और बेमौसम बारिश के कारण फसल के नुकसान का सामना करने के बाद राजस्थान के जीरा किसानों को अब लॉकडाउन के मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। उनकी शिकायत है कि वे लॉकडाउन के कारण अपनी फसल को गुजरात की ऊंझा मंडी में बेच नहीं पा रहे हैं।

Update: 2020-04-24 10:56 GMT

राजस्थान के जालोर जिले के गुड़ाहेमा गांव के किसान लाला सारण रोजाना असहाय होकर अपने घर में पड़ी जीरे की 180 बोरियों को देखते हैं, जो उनकी रबी (सर्दियों) की फसल है। ऐसा करते-करते उन्हें लगभग एक महीना हो गया है।

अगर कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन नहीं होता, तो सारण एक टेम्पो को किराए पर लेकर इसे उत्तरी गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थित ऊंझा मंडी में बेच आते, जो मसालों की एक प्रसिद्ध मंडी है। 65 किलो वजन वाले जीरे की एक बोरी की कीमत लगभग 10,000 रुपए से 12,000 रुपए तक होती है। इस प्रकार लगभग 18 लाख रुपये का जीरा सारण के घर में पड़ा हुआ है।

हालांकि अब सारण को लग रहा है कि उन्हें लॉकडाउन की वजह से भारी नुकसान हो सकता है। "मैंने अपनी जीरे की फसल लगभग एक महीने पहले ही काट ली थी और इसे 180 बोरियों में पैक किया था। लेकिन लॉकडाउन के कारण मैं अपनी उपज को ऊंझा मंडी में भेजने में असमर्थ हूं, जहां मैं हर साल अपनी फसल बेचता हूं," सारण गाँव कनेक्शन को बताते हैं।

राजस्थान में जीरा बिक्री के लिए उचित मंडी नहीं हैं। इसलिए किसान गुजरात की ऊंझा मंडी में अपनी उपज बेचना पसंद करते हैं, जो एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र है। सारण अकेले नहीं हैं, उनके जैसे राजस्थान के सैकड़ों जीरा किसान लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि वे अपनी फसल को मंडी में बेच सकें।

राजस्थान के जालोर जिले के गुड़ाहेमा गांव के लाला सारण अपने घर में 180 बोरे जीरा उत्पादन के साथ, जो उन्होंने रबी की फसल के दौरान उपजाया था। साभार: शैतान सिंह विश्नोई

जालोर जिले के मनोहर गांव के एक अन्य जीरा किसान गंगाराम बिश्नोई ने अपने छह हेक्टेयर जमीन से 45 क्विंटल जीरा उपजाया है। वह पिछले दो सप्ताह से उसे पैक कर उसे बेचे जाने का इंतजार कर रहे हैं।

"मंडी बंद हैं और राज्य की सारी सीमाएं सील हैं। हम अपनी उपज को ऊंझा कैसे ले जाएं?" बिश्नोई सवाल करते हैं। "हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि वे हम किसानों से यह जीरा खरीद लें, नहीं तो हम बर्बाद हो जाएंगे।"

विश्नोई ने बताया कि उनके पास 2 लाख रुपये का कर्ज है जो उन्होंने पिछले साल की रबी फसल को उपजाने के लिए बैंक से लिया था। "पहले टिड्डियों का हमला, फिर बेमौसम बरसात और अब यह लॉकडाउन, सब मिलकर हमारी परेशानियों को और बढ़ा रहे हैं," उन्होंने कहा।

जालोर जिले के मनोहर गाँव के गंगाराम बिश्नोई के पास 45 कुंतल जीरा है, जिसे अभी कोई खरीदने वाला नहीं है। वह अपने गेहूं, अरंडी और ईसबगोल की फसल भी नहीं बेच पाए हैं। साभार: शैतान सिंह विश्नोई

हालांकि सरकारी अधिकारियों का दावा है कि किसानों को उनकी उपज को बेचने में किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है। जालोर के जिला कलेक्टर हिमांशु गुप्ता ने कहा कि जीरा की खरीद में सरकार की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं है, क्योंकि जीरा के लिए सरकार कोई एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) निर्धारित नहीं करती है।

"शुरुआत में कुछ समस्याएं थीं लेकिन अब किसान अपनी उपज को दूसरे राज्यों या राज्य के अन्य हिस्सों में ले जाने के लिए स्वतंत्र हैं। जीरा भी आवश्यक वस्तुओं का एक हिस्सा है," उन्होंने कहा।

गुप्ता के अनुसार राज्य की कुछ एपीएमसी मंडियों ने पहले ही किसानों से अन्य रबी फसलों की खरीद शुरू कर दी है। उन्होंने कहा, "जालोर में हम 1 मई से एमएसपी पर किसानों से सरसों और चना खरीदना भी शुरू करेंगे।"

कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी को रोकने के लिए 24 मार्च को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की, जो कि 14 अप्रैल को समाप्त होना था। लेकिन बाद में इसे 3 मई तक बढ़ा दिया गया।

यह साल का वह समय है जब किसान अपनी रबी फसलों की कटाई करते हैं और अपनी उपज को बेचने के लिए कृषि मंडियों में जाते हैं। लॉकडाउन के कारण वे अपनी उपज को बेचने में असमर्थ हैं क्योंकि बड़ी संख्या में मंडियां अभी भी पूरी तरह से चालू नहीं हैं।

किसानों का आरोप है कि वे अपनी रबी फसलों को बेचने में असमर्थ हैं। वहीं सरकारी अधिकारियों का दावा है कि किसानों द्वारा अपनी उपज बेचने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। साभार: प्रदीप खुजा

15 अप्रैल को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लॉकडाउन संबंधी कुछ दिशानिर्देश जारी किए। इन दिशानिर्देशों के तहत कुछ गतिविधियों को छूट दी गई, जिसमें कृषि और बागवानी, फसलों के खरीद-बिक्री संबंधी गतिविधियां भी शामिल हैं। हालांकि, किसानों की शिकायत है कि वे अभी भी अपनी उपज को बेचने में असमर्थ हैं।

पंजाब और हरियाणा में किसानों के साथ मिलकर काम करने वाले कृषि कार्यकर्ता रमनदीप सिंह मान कहते हैं, "24 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी किए गए लॉकडाउन दिशानिर्देशों के पहले सेट में न तो कृषि और न ही किसानों का कोई जिक्र था। तीन दिन बाद मंत्रालय द्वारा जारी दूसरे गाइडलाइन में मंडियों और खेती के संचालन की छूट का उल्लेख किया गया और अब 15 अप्रैल के संशोधित दिशा-निर्देश भी वही बात कर रहे हैं। लेकिन इन आदेशों का जमीन पर पालन उचित ढंग से कहां हो पा रहा है? परिवहन साधनों की अनुपलब्धता और अन्य पाबंदियों के कारण किसान अपनी उपज का बिक्री करने में असमर्थ हैं।"

लॉकडाउन के कारण किसानों के घरों पर ही उनकी रबी की फसलें पड़ी हुई हैं। साभार: प्रदीप खुजा

भारत दुनिया में जीरे का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है। यह अनुमान लगाया जाता है कि भारत वैश्विक जीरे के 70 प्रतिशत हिस्से का उत्पादन करता है। गुजरात और राजस्थान भारत के दो प्रमुख जीरा उत्पादक राज्य हैं, जो राष्ट्रीय उत्पादन का 90 प्रतिशत हिस्सा उपजाते हैं।

(तालिका में देखें: गुजरात और राजस्थान में जीरा का वार्षिक उत्पादन)


डाटा स्त्रोत- https://www.indianspices.com/sites/default/files/Major%20spice%20state%20wise%20area%20production%20web%203072018_1.pdf

भारत के मसाला बोर्ड के अनुसार, केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत 2017-18 में गुजरात में 278,750 हेक्टेयर क्षेत्र में 291,490 टन जीरा का उत्पादन हुआ। वहीं राजस्थान में 500,140 हेक्टेयर क्षेत्र में 206,940 टन जीरे का उत्पादन हुआ। उस वर्ष देश का कुल जीरा उत्पादन 500,380 टन था।

भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार, 2018-19 में देश ने 180,300 टन जीरा का निर्यात किया, जिसका दाम करीब 288,480 लाख रूपये के बराबर है। यह 2017-18 और 2016-17 में भारत द्वारा निर्यात किए गए मूल्य से कहीं अधिक है। 2017-18 में यह 241,798 लाख रुपये और 2016-17 में यह 196,320 लाख रुपये के कीमत के बराबर थी।

(ग्राफ़ देखें: भारत से जीरे का वार्षिक निर्यात (टन में))

डाटा स्त्रोत-  https://www.indianspices.com/sites/default/files/Major%20Item%20wise%20Export%202019.pdf

कोराना की वजह से वैश्विक व्यापार पर लगे अस्थायी प्रतिबंध के कारण जीरा के निर्यात पर भी असर पड़ सकता है। इस साल की शुरुआत में चीन में कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण जीरा की कीमतों में गिरावट की खबरें मीडिया में आई थीं, जो भारत से जीरा के सबसे बड़े खरीदार देशों में से एक है।

इस महामारी के बीच राजस्थान के जीरा किसानों का आरोप है कि उनके पास कोई खरीदार नहीं है। जीरा साढ़े चार महीनों में उगने वाली फसल होती है, सर्दियों के मौसम में उगाई जाती है। "हमें जीरे की खेती में बहुत कुछ निवेश करना होता है। बीज खरीदना, ट्रैक्टर से तीन बार खेतों की जुताई करना, सिंचाई लागत और यूरिया, डीएपी और अन्य उर्वरकों की लागत इसे एक महंगी फसल बनाते हैं," सारण ने बताया।

"मैंने एक ट्रैक्टर किराए पर लिया था, जिसका किराया प्रति घंटे 100 रुपये था। इसके अलावा कटाई के लिए लगे मजदूरों को हर दिन 300 रुपए की लागत से मजदूरी देना होता है। इस सारे निवेश के बाद अब मेरी फसल को कोई खरीदने वाला नहीं है, जिसकी लागत लगभग 18 लाख है, " सारण आगे बताते हैं। बिश्नोई की तरह उन पर भी 2 लाख रुपये का कर्ज है।

कोरोना वायरस राजस्थान के किसानों के लिए एकमात्र आपदा नहीं है, जिसका वे सामना कर रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में इन किसानों को टिड्डियों के हमलों का सामना करना पड़ा है, जिन्होंने पश्चिमी राजस्थान के कई गांवों में खड़ी फसलों को ही तबाह कर दिया।

राजस्थान के पाली के प्रदीप खुजा के पास 130 क्विंटल जीरा है, जिसके घर पर कोई खरीदार नहीं है।

प्रदीप खोजा राजस्थान के पाली जिले के एक जीरा और सौंफ़ किसान है। अपनी 8 हेक्टेयर भूमि पर उन्होंने जीरा उगाया और 130 क्विंटल जीरे का उत्पादन किया। जीरा बेचने के लिए उनके लिए निकटतम कृषि मंडी जोधपुर जिले का बिलारा है, जहां वे 15,000 रुपये प्रति क्विंटल जीरा कमाने की उम्मीद कर रहे थे।

"लॉकडाउन के कारण, बिलारा मंडी लगभग एक महीने के लिए बंद थी। 17-18 अप्रैल को इसे खोला गया था, लेकिन अत्यधिक भीड़ और सोशल डिस्टेंसिंग के प्रतिबंधों के कारण यह बंद हो गया, "खोजा ने गाँव कनेक्शन को बताया। उन्होंने कहा कि हमें नहीं पता कि हम अपनी फसल का उत्पादन कब बेच पाएंगे?

सारण और बिश्नोई से उलट खोजा जीरे को स्थानीय बाजार में बेचते हैं। "ऊँझा मंडी निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन और बेहतर कीमत के साथ बहुत बड़ी है। लेकिन पाली के किसानों के लिए यह लगभग 300 किलोमीटर दूर है, इसलिए परिवहन लागत बहुत अधिक आता है। बिलाड़ा मंडी हमारे गांव से सिर्फ 25 किलोमीटर है, इसलिए हम वहां जाते हैं," खोजा बताते हैं।

जीरे के अलावा खोजा ने 6 हेक्टेयर जमीन पर सौंफ और गेहूं का उत्पादन भी किया था। "मेरे पास पहले से ही मेरे घर पर 200 बोरी जीरा पड़ा हुआ है। अब मैं गेहूं और सौंफ कहां जमा करूँ?" खोजा खुद से ही सवाल करते हैं।

टिड्डियों के हमले और बेमौसम बारिश के कारण भारी फसल के नुकसान के बाद राजस्थान के किसान अब अपनी रबी की फसल को बेचने में असमर्थ हैं। साभार: प्रदीप खोजा

बिश्नोई और उनके सभी चार भाई किसान हैं। 6 हेक्टेयर भूमि पर जीरे के अलावा उन्होंने 4 हेक्टेयर जमीन पर अरंडी, 3 हेक्टेयर जमीन पर गेहूं और 6 हेक्टेयर जमीन में ईसबगोल (साइलियम) बोया हुआ है। "मेरे पास 45 क्विंटल जीरा, 70 क्विंटल गेहूं, 55 क्विंटल अरंडी और 50 क्विंटल इसबगोल पड़ा हुआ है। कोई खरीदार नहीं हैं। मै कहाँ जाऊँ?" बिश्नोई सवाल करते हैं।

एक अनुमान के अनुसार, उन्हें इससे भारी नुकसान पहुंचने की संभावना है। 15,000 रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से 45 कुंतल जीरे का हिसाब लगभग 6.75 लाख रुपये होता है। इसी तरह 12,000 रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से इसबगोल के लिए उन्हें 6 लाख रुपये कमाने की उम्मीद है। इसके अलावा अरंडी (6,000 रुपये प्रति क्विंटल) और गेहूं (2,200 रुपये प्रति क्विंटल) से भी उन्हें क्रमशः 3.3 लाख रुपये और 1.54 लाख रुपये की अतिरिक्त कमाई की उम्मीद है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय के 15 अप्रैल के संशोधित दिशानिर्देशों के आधार पर राजस्थान सरकार ने एक आदेश जारी किया, जिसमें कृषि वस्तुओं की दुकानों और मंडियों को चालू करने का आदेश दिया गया था।

"आदेश जारी किए गए हैं, लेकिन इसका जमीन पर क्रियान्वयन बहुत कमजोर है। किसान अभी भी अपनी रबी फसल नहीं बेच पा रहे हैं। सरकार को उनके बचाव में आना चाहिए, क्योंकि टिड्डियों के हमले और बेमौसम बारिश के कारण उन्हें पहले ही काफी नुकसान हो चुका है," जालोर के चितलवाना ब्लॉक के डीएस ढाणी गांव के शैतान सिंह विश्नोई गांव कनेक्शन को बताते हैं।

स्वास्थ्य संकट होने के अलावा कोरोना आजीविका, खेती और मानवीय संकट के रूप में तेजी से उभरा है। राज्य मशीनरी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसान अपनी सभी उपज को उचित मूल्य पर बेच सकें ताकि उनके पास खरीफ की खेती करने के लिए पर्याप्त धन हो। दक्षिण-पश्चिम मानसून इस साल सामान्य रहने का अनुमान है, जिसमें सिर्फ एक महीने का समय बाकी है। 

अनुवाद- दया सागर

Read this Story in English: Rajasthan farmers are the world's second-largest producers of cumin seed. But they are locked out and unable to sell their harvested produce

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