खेती-किसानी से भी प्रभावित होती है हमारी जैव विविधता, अभी से है ध्यान देने की जरूरत

खेती-किसानी से भी हमारी जैव विविधता प्रभावित होती है। फसलों का उगाना और जानवरों को पालना जैव विविधता के लिए अच्छा और बुरा दोनों ही हो सकता है। कहने का तात्यर्प यह है कि यदि सावधानी पूर्वक खेती की जाए तो उससे फायदा और यदि सावधानी नहीं बरती गई तो नुकसान भी हो सकता है।

Update: 2022-05-25 07:31 GMT

आधुनिक कृषि में किसानों द्वारा अंधाधुध रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है। यह रसायन किसानों के मित्र कीटों, सूक्ष्मजीवों से लेकर स्वयं मानव के जीवन पर बहुत बुरा असर डाल रहे हैं। अत्यंत हानिकारक कीटनाशक जिसमें, खरपतवारनाशी, कीटनाशी और फंफूदनाशी रसायन आते हैं वह खेती में जैव विविधता बनाये रखने में सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं। सभी फोटो: पिक्साबे

पेड़-पौधे, फसलें, पशु-पक्षी, छोटे-छोटे जीव, फूल-पत्ती, कवक-एल्गी, केंचुए, दीमक, शेर, ऊंट, हिरण, गाय-भैंस, भेड़-बकरी, घास-फूंस, जलकुंभी, समुद्री जीव आदि सभी जैव विविधता का ही अंग हैं। जैव विविधता के कारण ही खाना-पानी, चारा-दाना, कपड़ा, दवाई, वायु आदि के अलावा आपदाओं से निपटने की ताकत मिलती है।

पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीव और पेड़-पौधे जिनमें जीवन है अर्थात जो जीवित हैं वह सभी जैव विविधता के अंतर्गत आते हैं। पृथ्वी पर जहां भी नजर जाएगी जैव विविधता के अनेकों उदाहरण मिल जाएंगे। लेकिन हमारी यह सतरंगी जैव विविधता नष्ट होती जा रही है। इसके कारण अनेकों पक्षियों की नस्लों से लेकर फसलों तक की प्रजातियां या तो विलुप्त हो गई हैं या फिर विलुप्ति के कगार पर हैं।

जिस किसी में जीवन हैं वह सभी जैविक है और इनमें आपस में जो विभिन्नता अथवा विविधता है, उसे ही जैव विविधता कहा जाता है। जैव विविधता जीवन का मूल आधार है। इससे ही पृथ्वी पर जीवन चक्र चलता है और बिना इसके जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। जैव विविधता पृथ्वी ग्रह पर सभी जीवित प्राणियों को बनाती है, जिसमें सभी जानवर पौधे और सूक्ष्मजीव शामिल हैं।


जैव विविधता हमारे ग्रह के पारिस्थितकीय संतुलन को बनाए रखती है। आज जैव विविधता कई गंभीर चुनौतियों से गुजर रही है। जैव विविधता का सबसे बड़ा कोई दुश्मन है तो वह मनुष्य ही हैं। मनुष्य अपने क्रिया-कलापों में बदलाव लाकर जैव विविधता को सहजने और संवारने में योगदान दे सकता है।

विकास और पूंजीवाद से पर्यावरण और जैव विविधता को काफी नुकसान हो रहा है। इसके चलते कई स्थानीय प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। सत्रहवीं शताब्दी से लेकर अब तक विश्व की 700 से अधिक प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। आज हम फसलों की 75 प्रतिशत आनुवांशिक विविधता को नष्ट कर चुके हैं।

जैव विविधता को नुकसान पहुंचाने के पीछे जीव-जंतुओं के प्राकृतिक आवास का विनाश, शिकार जैसी क्रियाएं और बढ़ता प्रदूषण प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं। अन्य प्राकृतिक कारणों में भूमंडलीय तापमान में वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, ओजोन परत का ह्रॉस और अम्लीय वर्षा भी प्रमुखता से जैव विविधता को नुकसान पहुंचा रही हैं।

जैव विविधता खेती और किसानी में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। जैव विविधता फसलों और पालतू पशुओं की सभी प्रजातियों/नस्लों और उनके भीतर की विविधता का भी मूल आधार है। जैव विविधता और कृषि का परस्पर संबंध है। जैव विविधता कृषि के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं कृषि जैव विविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग में योगदान देती है। कृषि में जैव विविधता मृदा और जल संरक्षण, मृदा उर्वरता और परागण जैसी पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाएं भी करती है। जैव विविधता के कारण ही उच्च तापमान, ठंड, सूखा, रोगों और कीटों और परजीवियों के प्रति सहनशीलता बढ़ाकर बदलते पर्यावरण के अनुकूल विकसित करने की क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलती है। पृथ्वी पर मानव जीवन में कृषि जैव विविधता का महत्व सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय तत्वों को शामिल करता है।

 यदि सावधानी पूर्वक खेती की जाए तो उससे फायदा और यदि सावधानी नहीं बरती गई तो नुकसान भी हो सकता है।

खेती-किसानी से भी हमारी जैव विविधता प्रभावित होती है। फसलों का उगाना और जानवरों को पालना जैव विविधता के लिए अच्छा और बुरा दोनों ही हो सकता है। कहने का तात्यर्प यह है कि यदि सावधानी पूर्वक खेती की जाए तो उससे फायदा और यदि सावधानी नहीं बरती गई तो नुकसान भी हो सकता है। मिट्टी में असंख्य सूक्ष्मजीव रहते हैं- जो खेती के लिए लाभदायक और नुकसानदायक दोनों हो सकते हैं। जैसे- केंचुआ लाभदायक तो दीमक हानिकारक होती है। मित्र कीट और शत्रु कीट खेती को प्रभावित करते हैं। जिस प्रकार से मधुमक्खी किसान की सबसे बड़ी मित्र कीट है, क्योंकि इसके बिना खेती और मानव जीवन संभव नहीं हैं। मधुमक्खी जैसे मित्र कीट खेती में सहायता करते हैं, वहीं शत्रु कीट हानि पहुंचाते हैं।

आधुनिक कृषि यंत्रों और कीटनाशकों के अंधाधुध प्रयोग से भी खेती के मित्र कीट खत्म हो रहे हैं। आधुनिक कृषि में किसानों द्वारा अंधाधुध रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है। यह रसायन किसानों के मित्र कीटों, सूक्ष्मजीवों से लेकर स्वयं मानव के जीवन पर बहुत बुरा असर डाल रहे हैं। अत्यंत हानिकारक कीटनाशक जिसमें, खरपतवारनाशी, कीटनाशी और फंफूदनाशी रसायन आते हैं वह खेती में जैव विविधता बनाये रखने में सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं। आधुनिक कृषि में मशीनीकरण के आ जाने के बाद किसानों द्वारा खेती में अत्यंत गहरी और बार-बार जुताई की जाती हैं। इससे जमीन के अंदर पाये जाने वाले लाभदायक सूक्ष्मजीवों के अलावा केंचुआ जैसे किसान के मित्र नष्ट हो रहे हैं।

अधिक उपज देने वाली हाइब्रिड फसलें के कारण पंरपरागत फसलें और प्रजातियां पूरी तरह से खत्म होने के कगार पर पहुंच गई हैं। पशुओं खासकर गायों में क्रॉस ब्रीडिंग को बढ़ावा दिये जाने के कारण भारतीय नस्ल की गायें आज अपना अस्तित्व बचा पाने को विवश हैं। भारत में पायी जाने वाली गायों की नस्लें जैव विविधता का एक अनूठा उदाहरण हैं।

 पशुओं खासकर गायों में क्रॉस ब्रीडिंग को बढ़ावा दिये जाने के कारण भारतीय नस्ल की गायें आज अपना अस्तित्व बचा पाने को विवश हैं। भारत में पायी जाने वाली गायों की नस्लें जैव विविधता का एक अनूठा उदाहरण हैं। फोटो: पिक्साबे

आम किसान खेती किसानी के माध्यम से जैव विविधता को बचाने में मदद् कर सकता है। खेती में फसल विविधीकरण अपनाकर प्राकृतिक आपदाआंे से होने वाले कुप्रभावों को कम किया जा सकता है। अतः फसल विविधीकरण के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और संर्वधन संभव है। इसके लिए किसानों को क्षेत्र विशेष की जलवायु, मिट्टी, पानी आदि को ध्यान में रखकर ही फसलें-पशु उनकी प्रजातियों और नस्लों का चयन करना होगा। बदलते जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में हो रही बढ़ोत्तरी, सूखा, बाढ़, अतिवृष्टि जैसी आपदाओं से निपटने के लिए अधिक से अधिक वृक्षारोपण के लिए आगे आना होगा।

रासायनिक और कीटनाशकों युक्त खेती की दिशा बदलकर जैविक खेती, रसायनमुक्त खेती और गौ-आधारित खेती को अपनाना होगा। प्राकृतिक खेती की अवधारणा को आत्मसात करते हुये जीवामृत, बीजामृत, आच्छादन और वाफसा (नमी का संचारण) जैसे घटकों को अपनाकर खेती को पूर्णतः जहर से मुक्त करने की दिशा में ले जाना होगा। पुरानी किस्मों के बीज और प्रजातियों को सहेजने के लिए आगे आना होगा। एकल फसल प्रणाली के स्थान पर बहु फसली प˜ति/प्रणाली को अपनाना होगा। खेती में हर हाल में फसल चक्र को अपनाना होगा। अधिक से अधिक जैविक और हरी खाद का प्रयोग करना होगा। महानगरों, शहरों से लेकर गांव-किसान को पालीथीन का प्रयोग पूरी तरह से बंद करना होगा।

पुरातन ग्रामीण भारतीय जीवनशैली जैव विविधता की पोषक रही है। भारतीय ग्रामीण जीवन शैली से ही जैव विविधता बचेगी। इसलिए आज फिर उसे वापस अपनाने की जरूरत है। प्राकृतिक संसाधनों और भौतिक साधनों का कम से कम उपयोग और भारतीय भोजन की खान-पान संबंधी विविधता को बचाकर हम अभी भी जैव विविधता को बचाने और सहेजने में अपना योगदान देकर आने वाली भावी पीढ़ीयों के लिए पृथ्वी को छोड़कर जा सकते हैं।

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