तमिलनाडु में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से भीतरी इलाक़ों में कम और तटीय ज़िलों में वर्षा की बढ़ोत्तरी होने के आसार

"अनुमान है कि शताब्दी के अंत तक तमिलनाडु का तापमान 3.1 डिग्री सेल्शियस तक बढ़ जाएगा जबकि वर्षा में औसतन 4% कमी आयेगी"

Update: 2018-11-24 07:53 GMT

चिदंबरम। 16 नवंबर को सायक्लोन गाजा तमिलनाडु के दक्षिणी तटीय इलाक़ों को पार कर गया और पीछे छोड़ गया मौत और तबाही। मृतकों की संख्या 46 पहुँच गयी और प्रशासन अब भी प्रभावित क्षेत्रों में बिजली और रहवासियों को ज़रूरी सामग्री मुहैया कराने की कोशिश में है। गुस्साए गाँव वालों ने रास्ता रोक कर खाने और पीने के पानी की मांगें रखीं। इसी दौरान फसलों के नुकसान का आकलन चालू है|

भारतीय मौसम विभाग के डेटा के आंकलन के हिसाब से बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में 13 दबाव के क्षेत्र बन चुके हैं जो पिछले 26 सालों में सबसे ज़्यादा हैं। विशेषज्ञों के हिसाब से इसकी वजह जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्री तापमान में होने वाली बढ़ोत्तरी है। 

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शोधकर्ताओं के मुताबिक़ जलवायु परिवर्तन का प्रभाव चक्रवाती गतिविधियों का बढ़ने में ही नहीं बल्कि तापमान में बढ़ोत्तरी और वर्षा में कमी के रूप में भी दिख रहा है। "अनुमान है कि शताब्दी के अंत तक तमिलनाडु का तापमान 3.1 डिग्री सेल्शियस तक बढ़ जाएगा जबकि वर्षा में औसतन 4% कमी आयेगी (1970-2000 की तुलना में)" जलवायु परिवर्तन अनुसंधान केंद्र अन्ना यूनिवर्सिटी के ए रामचंद्रन ने चेताया। जबकि दक्षिणी जिलों के  अंदरूनी इलाके बारिश में गिरावट और तटीय इलाक़े बढ़ोत्तरी का सामना करेंगे जिसमें कन्याकुमारी सबसे अधिक प्रभावित होगा।

रामाचंद्रन ने बताया कि तापमान में और वर्षा में बदलाव के अलावा समुद्री स्तर में बढ़ोत्तरी भी प्रदेश के लिए ख़तरा है। रामचंद्रन, थर्ड पोल और इंटेरन्यूज़ द्वारा आयोजित 'बंगाल की खाड़ी में जलवायु परिवर्तन, न्याय और तन्यकता' की मीडिया वर्कशॉप को संबोधित कर रहे थे।

तटीय इलाक़े ख़तरे में-

भारत में तटीय इलाक़ा 7516 किलोमीटर तक फैला है जिसमें 5,422 मुख्य भू-भाग है और 2,094 किलोमीटर द्वीप क्षेत्र हैं। यहाँ 3600 गाँव मछुआरों के है। ये कोस्टलाइन महत्त्वपूर्ण है क्यूंकि यहाँ चालीस लाख लोग मछली पालन पर निर्भर हैं और ये भारत की अर्थव्यवस्था को 65000 करोड़ याने 3% योगदान देता है। 

जलवायु को प्रभावित करने वाले, याने तापमान, वर्षा, समुद्री स्तर का बढ़ना, चक्रवात, समुद्री सतह के तापमान में बढ़ोत्तरी तटीय व्यवस्था/प्रणाली पर असर डाल रहे हैं जो की मछुआरों के साथ लाखों एनी लोगों की जीविका पर असर डाल रहा है।

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तमिलनाडु का तटीय इलाक़ा हमारे देश का दूसरा सबसे लंबा है| देश की कुल कोस्ट लाइन का 15%, तमिलनाडु के 13 तटीय ज़िलों में फ़ैला है।

अन्ना यूनिवर्सिटी में ए रामाचंद्रन और उनके सहयोगियों द्वारा 2016 के एक मूल्यांकन- क्लाइमेट चेंज प्रोजेक्शन्स फॉर तमिल नाडू, इंडिया- ने तमिलनाडु में जलवायु के क्षेत्रीय बदलाव को तापमान की बढ़ोत्तरी और अनियमित और अनिश्चित वर्षा के सापेक्ष बताया।

राज्य सात एग्रोक्लाइमेटिक ज़ोन में बंटा है - पूर्वोत्तर, पश्चिमोत्तर, कावेरी डेल्टा, पश्चिमी, ऊंचे इलाक़े, दक्षिणी और बारिश बहुल इलाक़ा। रामाचंद्रन की 2016 की शोध के अनुसार इन ज़ोन्स में खतरे की आशंका है। 

Source: A. Ramachandranet al 2016, 'Climate change projections for Tamil Nadu, India: deriving high-resolution climate data by a downscaling approach using PRECIS', https://link.springer.com/article/10.1007/s00704-014-1367-9

अगर भारतीय मौसम विभाग के बेसलाइन डेटा(1970-2000 के बीच) के आधार की गणना देखें तो तमिलनाडु में तापमान में बढ़त और वार्षिक वर्षा में गिरावट हुई है।

पश्चिमी घाट से आती हवाओं के कारण तमिलनाडु दक्षिण पश्चिमी मानसून के समय मात्र 32% वर्षा प्राप्त होती है। यहाँ का मुख्य मौसम उत्तर-पूर्व मानसून (अक्टूबर-दिसम्बर) है, जब यहाँ कुल वर्षा की 48% बरसात होती है।  

तापमान में बढ़ोत्तरी और वर्षा में गिरावट-

जर्नल ऑफ़ थ्योरेटिकल एंड अप्लाइड क्लाईमेटोलोजी में प्रकाशित 2016 के शोध के मुताबिक़ तमिल नाडू के अधिकतम तापमान के प्रोजेक्शन में 2005-2035 में 1.0 डिग्री सेल्शियस, 2035-2065 में 2.2 डिग्री सेल्शियस, 2065-2095 में 3.1 डिग्री सेल्शियस का अधिकतम तापमान में इज़ाफा हुआ है। और वैसे ही न्यूनतम तापमान में क्रमशः 1.1 डिग्री सेल्शियस ,2.4 डिग्री सेल्शियस और 3.5 डिग्री सेल्शियस का।

1970-2000 के बीच के आंकड़ों के अध्ययन बताते है कि 2020s (2005-2035), 2050s(2035-2065) and 2080 (2065-2095) के बीच वर्षा में कमी क्रमशः -2 से -7%, -1से-4 %, -4 से -9% है। पश्चिमीपहाड़ी क्षेत्र अपवाद हैं जहाँ वर्षा में बढ़ोत्तरी की उम्मीद है। कहा गया है कि उत्तरपूर्व मानसून सीज़न में वर्षा में भारी बढ़ोत्तरी, और दक्षिण पश्चिमी मानसून के समय कमी होगी। कन्याकुमारी ज़िले में बढ़ोत्तरी महत्त्वपूर्ण है। 

Source: P K Bal et al 2016, Climate change projections for Tamil Nadu, India: derivinghigh-resolution climate data by a downscaling approach usingPRECIS, https://link.springer.com/article/10.1007/s00704-014-1367-9

टेम्पेरचर रैन्फौल प्रोजेक्शन -2016 के अध्ययन के हिसाब से कहा गया है कि ये तापमान में बढ़ोत्तरी लोगों की सेहत के लिए नुकसानदायक साबित होगी। वहीं वर्षा में कमी तमिलनाडु की कृषि, उपज, पानी की कमी,प्रजातियों के विलुप्त होने आदि में असर डालेगी- जैसे कवेरी डेल्टा में। यही पानी की कमी तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कवेरी जलविवाद का रूप ले चुका है।

समुद्र तल में बढ़ोत्तरी-

तापमान में बढ़त और वर्षा में कमी के अलावा समुद्र तल में बढ़त भी तमिलनाडु के लिए ख़तरा है जो सीधे तटीय क्षेत्र में रहने वाले लोगों, मछुआरों पर असर डालेगा और वहां के गाँव विलुप्त होने और खारापन बढ़ने से तटीय इलाक़े बंजर होने के आसार हैं।

1993-2012 के बीच भारत के चार बंदरगाहों में समुद्र तल 4.8 सेंटीमीटर बढ़ा हुआ पाया गया। वी सेलवम, एम.एस.स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन के ,कोस्टल सिस्टम रिसर्च प्रोग्राम के एक्सिक्युटिव डायरेक्टर ने 2050 में 16 सेंटीमीटर और 2100 तक 32 सेंटीमीटर बढ़त की आशंका जताई गयी और बताया कि समुद्र तल बढ़ने से निचले तटीय इलाक़े डूब में आयेंगे और ज्वार के कारण समुद्र का पानी तटों को खारा कर देगा। 1981 के डेटा के हिसाब से 12 लाख हेक्टेयर तटीय इलाका खारा हो चुका है।

कड्डलोर ज़िला सबसे ज़्यादा ख़तरे में है। तिरुवल्लुर, चेन्नई,नागापट्टिनम,तिरुवारुर,तंजावुर और पुदुकोट्टई भी इसकी चपेट में हो सकते हैं।

Source: Dr A Ramachandran 2018, Climate change and sea level rise, Presentation during 'Media Workshop on Climate Change, Climate Justice and Resilience in the Bay of Bengal Region', Chidambaram, Nov 1

तमिलनाडु के तटीय इलाक़ों में बसे क़रीब 591 गांवों के मछुआरे पहले ही जलवायु परिवर्तन का आघात झेल रहे हैं। धान फाउंडेशन के कोस्टल कांसेर्वेशन एंड लाइवलीहुड प्रोग्राम के टी.इस आई तम्बी ने बताया कि तापमान में बढ़त ने मछलियों के आकार-प्रकार में भी बदलाव किया है| कई प्रजातियाँ विलुप्त हुई हैं, कई दूसरी जगह माइग्रेट हो गयी हैं।

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समुद्र तल और सांद्रता बढ़ने के कारण कड्डलोर ज़िले के दक्षिण पचवरम के गाँव एलंदरमेड में किसान अपनी फसल चक्र को बदलने पर मजबूर हुए। वहां की रहवासी अन्नादुराई ने बताया कि पहले हम साल में तीन बार धान रोपते थे पर अब गाँव में समंदर का पानी आने के कारण साल में एक बार (जनवरी-मार्च) रोप पाते हैं।





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