वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करना , हकीकत या परीकथा ?

Update: 2018-02-04 11:05 GMT
छोटे और सीमांत किसानों से मिलकर ही भारत जैसे कृषि प्रधान देश की नींव बनी है

एक कहावत है, जहां चाह वहां राह। इस नजरिए से देखें तो 5 साल की अवधि में किसानों की आमदनी दोगुनी होना कोई बड़ी बात नहीं लगती। वैसे भी राजनीति में देखा गया है कि लोगों की निजी चल-अचल संपत्ति इतने ही समय में 1000 गुना तक बढ़ गई। बस यहां थोड़ा भेदभाव हो गया, किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी केवल 100 फीसदी तक ही सीमित रखी गई, जबकि सांसदों के लिए इसकी कोई सीमा नहीं है। हालांकि, इस मामले में एक बात साफ नहीं हो पाई, यहां किसान की शुद्ध आय (सारे खर्च वगैरह निकालकर बचने वाली राशि) दोगुनी करने की चर्चा हो रही है या फिर कुल आय दोगुनी करने की। चूंकि, यह अभी तक साफ नहीं हो पाया, इसका मतलब है समस्या जस की तस है।

छोटे और सीमांत किसानों से मिलकर ही भारत जैसे कृषि प्रधान देश की नींव बनी है। भारत के एक करोड़ बीस लाख कृषक परिवारों में से 98 लाख छोटे और सीमांत किसान ही हैं। इसके अलावा, छोटे और सीमांत किसानों की जोत वाला क्षेत्रफल पिछले एक दशक में 19 फीसदी से बढ़कर 44 फीसदी हुआ है। सीमांत किसानों में महिलाओं की 39 फीसदी भागीदारी बढ़ी है। इस तस्वीर से यह भी पता चलता है कि महिलाओं की सहभागिता कृषि में खेतों में काम करने से लेकर उपज को बाजारों में बेचने तक बढ़ गई है, दूसरे शब्दों में उनकी भूमिका में 360 डिग्री का बदलाव आया है। इस लिहाज से हम सभी का पेट भरने वाली इन माताओं के प्रति हमें ईमानदार रवैया रखना चाहिए।

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उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, छोटे और सीमांत किसान के महीने भर के खर्च (2482 रु) और मासिक आमदनी (1659 रु) ‍के बीच 823 रु का फासला है, जो उधार लेकर ही पूरा होता है। इसलिए अगर किसानों की आमदनी दोगुनी करनी है तो वह कम से कम इतनी तो हो कि उनके महीने का खर्चा निकल जाए और उन्हें उधार भी न लेना पड़े। भारतीय कृषि के साथ चार दशकों से भी अधिक समय से जुड़े रहने के कारण यह मेरी समझ से बाहर है कि बिना पर्याप्त सिंचाई व्यवस्था, असमय मौसमी बदलावों से होने वाली परेशानियों, खाद, बीज, और पैदावार को बढ़ाने वाले जरुरी रसायनों की कमी या आसमान छूती कीमतों के बीच किसानों की आय दोगुनी करने की परिकल्पना कैसे की गई। विडंबना यह है कि अगर अच्छी पैदावार हो जाए तो किसानों की मुसीबतें बढ़ जाती हैं। उचित समर्थन मूल्य की कमी, विनियमित बाजार के अभाव, उचित भंडारण व्यवस्था और कोल्ड चेन की उपलब्धता न होने से उनकी उपज के दाम गिर जाते हैं। इस वजह से उन्हें अपनी फसल औने-पौने दाम में बेचनी पड़ती है, नहीं तो उनकी उपज सड़ जाती है। अक्सर इसका नतीजा आत्महत्या होता है।

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इसलिए, यह शक बना ही रहता है कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने वाला वादा एक सुनियोजित चुनावी नारा तो नहीं है जिसे अनपढ़ किसानों की भावनाओं से खिलवाड़ करने और राजनीतिक लाभ पाने के लिए लगाया जा रहा है या फिर वाकई इससे किसानों का सशक्तिकरण होगा।

(डॉ. एम. एस. बसु आईसीएआर गुजरात के निदेशक रह चुके हैं। ये उनके अपने विचार हैं।)

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