महाराष्ट्र की राजनीति पर चहुंदिश कालिख

यह भी महत्वपूर्ण है कि भविष्य में वर्तमान प्रकरण और उच्चतम न्यायालय के निर्देशों को किस सीमा तक नजीर माना जाएगा। जो भी हो नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के मार्ग में स्पीड ब्रेकर आने आरम्भ हो गए हैं।

Update: 2019-11-27 12:15 GMT

महाराष्ट्र की राजनीति में आजादी के बाद सबसे गन्दा खेल खेला गया जिसमें निश्चित करना कठिन है कि सबसे बड़ा खलनायक कौन है। आरम्भ में सभी ने आदर्श दिखाए जब शरद पवार ने कहा हमें जनादेश से विपक्ष में बैठने के लिए मत मिला है और भाजपा ने सरकार बनाने से यह कह कर इनकार किया कि हमारे पास बहुमत नहीं है, शिवसेना ने भी इसी आधार पर 24 घन्टे में सरकार बनाने का राज्यपाल का न्योता नामंजूर किया। लगा सतयुग आ गया है। अब सभी के पास बहुमत जुट गया और शुरू हुआ नया खेल।

राजनीति का गन्दा अध्याय तब शुरू हुआ जब शिव सेना ने ऐलान कर दिया कि मुख्यमंत्री उसका ही होगा भले ही उसके पास 56 विधायक थे और उसके सहयोगी के पास 105 विधायक। अब दूसरों में भी सरकार बनाने की भूख बढ़ी और शिवसेना यह भी भूल गई कि उसने जन्म से ही कांग्रेस से लड़ा है और शरद पवार भूल गए कि उन्होंने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के कारण कांग्रेस पार्टी छोड़ी थी। अब सोनिया गांधी में विदेशी मूल नहीं दिखाई दिया। शिव सेना भूल गई कि जनता ने उसे कांग्रेस और एनसीपी की नीतियों को त्यागने के लिए मत दिया है। जनता तो अनेक बार ठगी गई है और इस बार भी ठगी गई।

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राज्यपाल ने विवादित निर्णय दिए इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि पहले भी ऐसा होता रहा है। लेकिन भाजपा ने रातों-रात बहुमत जुटा लिया, सरकार बनाने का दावा पेश किया, राज्यपाल ने सन्तुष्ट होकर भाजपा को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया और भाजपा ने सरकार बनाली और मुख्यमंत्री तथा एक उपमुख्यमंत्री को शपथ ग्रहण भी करवा दिया। यह सब हुआ रात के अंधेरे में।

आश्चर्य तब हुआ जब इस तरह भोंडे तरीके से चुने गए मुख्यमंत्री को मोदी जी ने बधाई दे डाली। बहुतों को झटका लगा होगा। कम से कम भाजपा का गणित तो फेल ही हो गया। भाजपा ने कभी नहीं सोचा होगा कि अजित पवार फुस्सी बम निकलेंगे और उच्चतम न्यायालय इतना कड़ा निर्णय देगा।

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माननीय उच्चतम न्यायालय ने कई नई परम्पराओं को जन्म दिया है जिनका दूरगामी परिणाम होगा। संसद में गुप्त मतदान के बजाय पुरानी गाँव पंचायतों की तरह खुला मतदान और वीडियो रिकार्डिंग आदि केवल 24 घन्टे में पूरी करके सरकार गठन और बहुमत सिद्ध करना यह भाजपा स्टाइल खतरनाक परम्परा की शुरुआत होगी। शायद गम्भीर मर्ज का इलाज भी गम्भीर होना चाहिए ऐसा सोचा होगा अदालत ने। लेकिन वर्तमान प्रकरण में बहुमत सिद्ध कौन करेगा और विश्वास मत किसे हासिल करना है यह पहेली है।

आगे की राजनीति और भी नाटकीय रहने की आशा है। देखने लायक होगा कि शिव सेना संसद में समान नागरिक संहिता, वीर सावरकर को भारत रत्न, पाकिस्तान विरोध, राम मन्दिर जैसे विषयों पर क्या रुख अपनाएगी और इन्हीं विषयों पर एनसीपी और कांग्रेस का क्या रुख होगा। इस सब के साथ ही मुस्लिम समाज शिवसेना के साथ कांग्रेस के मेल मिलाप को अखिल भारतीय स्तर पर कितना स्वीकार करेगी। यह भी महत्वपूर्ण है कि भविष्य में वर्तमान प्रकरण और उच्चतम न्यायालय के निर्देशों को किस सीमा तक नजीर माना जाएगा। जो भी हो नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के मार्ग में स्पीड ब्रेकर आने आरम्भ हो गए हैं। 

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