हरित क्रांति के जनक को भारत रत्न सम्मान

आज डॉ. स्वामीनाथन हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनके द्वारा जो कार्य देश के लिए किया गया है: निश्चित तौर से भारत की जनता और किसानों के लिए इससे बड़ा वरदान कोई और दूसरा हो नहीं सकता। भारत सरकार द्वारा उन्हें भारत रत्न देने पर भारत के संपूर्ण कृषि वैज्ञानिकों से लेकर देश के किसान अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।

Update: 2024-03-30 12:15 GMT

1968 में देश में गेहूँ के उत्पादन में 50 लाख टन की वृद्धि हुई। इसके बाद इन बीजों का व्यापक इस्तेमाल शुरू हुआ और देश में भुखमरी की स्थिति खत्म हो गई।

देश की आज़ादी के बाद भी 1960 के दशक तक भारत में भुखमरी के हालात थे। देश अनाज के लिए दुनिया के सामने हाथ फैलाने को मजबूर था। वर्ष 1965 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को देशवासियों से एक समय का खाना छोड़ने तक की अपील करनी पड़ी थी। इसी समय भारत का एक लाल जिसे हरित क्रांति के जनक मनु कोम्बु सबासिवन यानी एमएस स्वामीनाथन के नाम से जाना जाता है, ने भारत की भुखमरी मिटाने का दृढ़ निश्चय कर लिया गया था। तब स्वामीनाथन ने उन्नत अनुवांशिक बीजों के जरिए गेहूँ और चावल का उत्पादन बढ़ाकर देश को न सिर्फ भयावय हालात से बाहर निकाला, बल्कि देश को अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की बुनियाद रख दी गई।

7 अगस्त 1925 को तमिलनाडु के कुंभकोणम में सर्जन एमके सम्बासिवान और पार्वती थंगम्माल के घर जन्मे स्वामीनाथन के दिलों दिमाग पर 1943 में बंगाल में पड़े भीषण अकाल का गहरा प्रभाव पड़ा था। इस अकाल के चलते उस समय करीब 40 लाख लोग मारे गए थे। इसी का प्रभाव था कि स्वामीनाथन ने अन्न की कमी कैसे दूर की जाए इस पर गंभीरता से विचार किया और कृषि विज्ञान से स्नातक करने के बाद 1947 में आनुवंशिकी और पादप प्रजनन के अध्ययन के लिए दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से साइटोजेनेटिक्स में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद वह अनुवांशिकी में शोध के लिए यूनेस्को फेलोशिप में चयन होने के बाद नीदरलैंड चले गए। इसके बाद में उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से 1952 में पीएचडी की उपाधि पूरी की। वर्ष 1954 मैं स्वामीनाथन भारत लौट आए और केंद्रीय धान अनुसंधान संस्थान में काम करने लगे।

डॉ. एमएस स्वामीनाथन ने अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बारलॉग के साथ गेहूँ की आनुवंशिक रूप से उन्नत प्रजातियों पर काम किया। उन्होंने भारत में मेक्सिको के बोनी गेहूँ की प्रजातियां को जापानी गेहूँ की प्रजातियों के साथ मिलाकर मिश्रित बीज तैयार किया गया। क्षेत्र परीक्षणों के दौरान इस बीज से उत्पादकता में अच्छी खासी बढ़ोतरी प्राप्त हुई। लेकिन इस अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए उनके सामने बजट की कमी आ रही थी। देश में जब 1964 में अकाल की स्थिति बनी तो सरकार द्वारा उन्हें फंड दिया गया। इसके बाद प्राप्त नतीजों को जब सरकार और किसानों ने देखा तो सब की आँखे खुली की खुली रह गई। इसके बाद स्वामीनाथन ने इन बीजों में भारत की परिस्थितियों के लिहाज से और कई बदलाव किए गए। इन बीजों की बदौलत 1968 में देश में गेहूँ के उत्पादन में 50 लाख टन की वृद्धि हुई। इसके बाद इन बीजों का व्यापक इस्तेमाल शुरू हुआ और देश में भुखमरी की स्थिति खत्म हो गई।


निश्चित तौर पर डॉक्टर स्वामीनाथन को भारत रत्न सम्मान उनके द्वारा देश मैं हरित क्रांति जैसे अभूतपूर्व कार्य को अंजाम देने के लिए दिया गया है। यह सम्मान भारत में खाद्य संकट को खत्म करने के लिए सन 1960 के दशक में देश में हरित क्रांति लाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देता है। यह स्वामीनाथन की ही रणनीति थी कि जिसकी बदौलत भारत में कृषि उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई। अमेरिकी कृषि वैज्ञानिक नॉर्मन बारलॉग के सहयोग से बतौर वैज्ञानिक उनके काम के परिणाम स्वरूप पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को उच्च उपज की किस्म वाले बीज, पर्याप्त सिंचाई सुविधा और उर्वरक उपलब्ध कराए गए। परिणाम स्वरूप आज देश खाद्यान्न के मामले में पूर्णतया आत्मनिर्भर ही नहीं बल्कि सर प्लस की श्रेणी में आ गया है।

डॉक्टर स्वामीनाथन देश के कई प्रतिष्ठित संस्थानों में भी कार्यरत रहे हैं। वर्ष 1961-72 के दौरान वह भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के निदेशक वह महानिदेशक भी रह चुके हैं। इसके बाद वह 1972-79 तक कृषि अनुसंधान संस्थान व शिक्षा विभाग के सचिव रहे हैं। वर्ष 1979-80 तक कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव के पद पर कार्य कर चुके हैं। इसके साथ ही वह 2004 से 2006 के बीच राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष के रूप में भी कार्यरत रहे हैं। किसान आयोग के अध्यक्ष के रूप में रहते हुए उन्होंने सिफारिश की थी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) फसल पर आने वाली लागत से कम से कम 50 फीसदी ज्यादा मिलना चाहिए। डॉ. स्वामीनाथन को अपने जीवनकाल में डॉक्टरेट की 84 मानद उपाधियां मिली है। जिसमें 25 अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की तरफ से दी गई।

डॉ.स्वामीनाथन को भारत रत्न से पहले 1989 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 1971 में मैग्सेसे, 1986 मैं अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस पुरस्कार,1987 में पहला विश्व खाद्य पुरस्कार, 1991 मैं अमेरिका में टायलर पुरस्कार, 1994 मैं पर्यावरण तकनीकी के लिए जापान का होंडा पुरस्कार, 1997 मैं फ्रांस का ऑर्डर दु मेरिट एग्री कॉल, 1998 में मिसुरी बाटेनिकल गार्डन का हेनरी शां पदक, 1999 में वाल्वो इंटरनेशनल एनवायरनमेंट पुरस्कार और यूनेस्को गांधी स्वर्ण पदक से नवाजा जा चुका है।

अमेरिका के विश्व प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक नॉर्मन बारलॉग ने 1970 में शांति का नोबेल पुरस्कार जीतने से पहले स्वामीनाथन को एक पत्र लिखा था। जिसमें उन्होंने कहा था कि हरित क्रांति एक सामूहिक प्रयास का ही परिणाम थी। क्योंकि मैक्सिकन बीजों के संभावित मूल्य को सबसे पहले पहचानने का श्रेय आपको ही जाना चाहिए डॉ. स्वामीनाथन। अगर आप ऐसा नहीं करते तो शायद एशिया में कभी भी हरित क्रांति हो ही नहीं पाती। इससे यह सिद्ध होता है कि डॉ. स्वामीनाथन जैसा व्यक्तित्व भारत के कृषि जगत में युगो युगांतर तक याद रखा जाएगा। आज डॉ. स्वामीनाथन जी हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनके द्वारा जो कार्य देश के लिए किया गया है निश्चित तौर से भारत की जनता और किसानों के लिए इससे बड़ा वरदान कोई और दूसरा हो नहीं सकता। भारत सरकार द्वारा उन्हें भारत रत्न देने पर भारत के संपूर्ण कृषि वैज्ञानिकों से लेकर देश के किसान अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।

(डॉ. सत्येन्द्र पाल सिंह कृषि विज्ञान केंद्र, लहार (भिंड) मध्य प्रदेश में प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख हैं)

Full View

Similar News