संसद में धींगामुश्ती नई नहीं, राष्ट्रपति की लताड़ नई है

Update: 2016-12-10 18:18 GMT
फोटो साभार: पीटीआई

महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने हफ्तों से दोनों सदनों में बंद कार्यवाही पर अपनी कड़ी आपत्ति जताई है। वह बहुत लम्बे समय तक सांसद रहे और वर्ष के श्रेष्ठ सांसद के सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं, उन्हें संसदीय परम्पराओं और मर्यादाओं का पूरा ज्ञान है। नोटबन्दी का बहाना लेकर संसद में विपक्ष के सांसद जिस स्तर का व्यवहार कर रहे हैं उसे एक मजदूर भी अनुचित मानेगा। महामहिम ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जनता ने इस काम के लिए आपको यहां नहीं भेजा है, इसी बात को गाँव का अनपढ़ कहेगा ये काम नहीं करते तो कामचोर हैं।

संसद में बहस इस बात पर हुआ करती थी कि जांच कमेटी बिठाई जाए या फिर बहस के बाद वोटिंग हो। संसद की जांच समितियां जैसे सीएजी और पीएसी जब अनियमितता और भ्रष्टाचार पकड़ती थीं तो सम्बन्धित मंत्रियों के त्यागपत्र की बात भी उठती थी लेकिन अब एक नया तरीका आरम्भ हुआ है कि विपक्ष जितनी देर बोले प्रधानमंत्री सदन में बैठकर उसे सुनते रहें, जबकि प्रधानमंत्री स्वयं उत्तर देने को तैयार हैं लेकिन यदि सदन में बैठे ही रहेंगे तो देश-विदेश के लोगों के साथ नहीं मिल पाएंगे। यदि एनडीए ने ऐसा किया था तो यूपीए भी करेगा, इसे न्यायोचित नहीं माना जा सकता। एनडीए के कारण और उस समय की परिस्थितियां अलग थीं तब सत्तापक्ष चर्चा से कतरा रहा था और अब विपक्ष।

सत्र आरम्भ होते ही कांग्रेस पार्टी ने भाजपा के साथ हिसाब बराबर करने का निश्चय किया। इस बार पूरे विपक्ष ने सदन नहीं चलने दिया यह कहकर कि नोटबन्दी से देश बर्बाद हो जाएगा, जनता में त्राहि-त्राहि मची है और यह एक घोटाला है। पूरी ताकत से नारे लगाना, काली पट्टी बांधना, वेल में घुसना, प्लेकार्ड दिखाना और स्पीकर की अवज्ञा करना और कहना कि यह सब पहली बार थोड़े ही हो रहा है। विपक्ष चर्चा के लिए अपनी शर्तें मनवाना चाहता है तब राजी होगा। आजाद भारत में कई बार सरकार की किरकिरी हुई फिर भी बहस तथ्यों पर आधारित होती थी कभी भी संसद में मजदूर संगठनों की तरह नारे बाजी नहीं हुई।

ऐसा नहीं लगता कि विपक्ष को जनता की तकलीफों की चिन्ता है, लगता है उन्हें अपनी फिक्र है। उन्हें अन्दाज़ हो गया है कि मोदी केवल नोटबन्दी पर रुकने वाले नहीं हैं और अगली बार राजनेता चपेट में आएंगे। जनता को कष्ट तो है व्यापारी परेशान हैं इसमें सन्देह नहीं लेकिन उन्हें सुनहरे भविष्य का सपना दिखाई दे रहा था। महात्मा गांधी ने आजादी का सपना दिखाया था तब देश के लोगों ने लाठी डंडा सहर्ष झेले थे। पता नहीं आज की जनता कितने दिन तक सपने के सहारे प्रसन्न रहेगी और कष्ट झेलेगी। यदि विपक्ष को अपनी चिन्ता नहीं तो राजनेताओं और पार्टियों को सूचना के अधिकार 2005 के दायरे में लाएं और संसद से त्यागपत्र देकर सड़कों पर चिल्लाएं न कि संसद के भीतर। पांच साल बाद सरकार से जनता हिसाब पूछेगी।

विपक्ष के लोग यदि इसी तरह मोदी की अति आलोचना करते रहेंगे तो मोदी को अधिनायकवादी बना देंगे। मैं सत्तर के दशक का नज़ारा देख पा रहा हूं जब इन्दिरा गांधी के पीछे पूरा विपक्ष पड़ गया था। इन्दिरा गांधी के पास भी पूर्ण बहुमत था और मोदी के पास भी है। देश और प्रजातंत्र के हित में होगा सांसद लोग राष्ट्रपति की सलाह को गम्भीरता से लेंगे क्योंकि उन्होंने उस घटनाक्रम को बहुत नजदीक से देखा था।

sbmisra@gaonconnection.com

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