गुमसुम चेहरों पर खिल रही मुस्कान

लखनऊ के गोसाईंगंज ब्लॉक के महमूदपुर प्राथमिक विद्यालय में शिक्षकों के प्रयास से टूट रही बच्चों की झिझक

Update: 2018-10-01 09:41 GMT

महमूदपुर (लखनऊ)। श्रद्धा को बचपन से बोलने में मुश्किल होती थी... हकलाने की वजह से वह गुमसुम सी रहती, किसी से बात करने में भी झिझकती... लेकिन जब से उसने स्कूल जाना शुरू किया, हम उम्र बच्चों के साथ और शिक्षकों के प्रयास से उसमें बदलाव दिखने लगा है।

तीसरी कक्षा की श्रद्धा साहू (8 वर्ष) लखनऊ जिले के गोसाईंगंज ब्लॉक के महमूदपुर प्राथमिक विद्यालय में पढ़ती है। यहां 230 बच्चों का नामांकन है। यह विद्यालय दूसरे विद्यालयों से अलग है, क्योंकि यहां मानसिक व शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

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विद्यालय की प्रधानाध्यापिका मधु यादव बताती हैं, "कक्षा 3 में पढ़ने वाली श्रद्धा साहू कोई भी वाक्य हकलाते हुए पूरा करती थी। हमारे शिक्षामित्र ने जब इस बात पर गौर किया तो सब शिक्षकों ने मिल कर एक निर्णय लिया। श्रद्धा और उसके जैसे तमाम बच्चे जिन्हें समझने में थोड़ा वक्त लगता है या वो बच्चे जो चुपचाप रहते हैं उन पर हम शिक्षक खास ध्यान देंगे।"

श्रद्धा अब कक्षा में सबसे आगे बैठती है और शिक्षकों द्वारा सवाल पूछे जाने पर, थोड़ा समय लेकर ही सही, पर जवाब देने की कोशिश करती है। थोड़े स्पेशल इन बच्चों को लेकर की जा रही शिक्षकों की कोशिशें अभिभावकों तक पहुंचाई विद्यालय प्रबंधन समिति की सदस्य ममता ने। इसका फायदा यह हुआ कि ऐसे कई बच्चों का नामांकन विद्यालय में हुआ।

कक्षा एक में पढ़ने वाले समर की माँ बताती है, "हमारा लड़का तो स्कूल ही नहीं जाता था और जब भी भेजने की कोशिश करते तो रोने लगता था। फिर जब ममता ने बताया कि स्कूल में मैडम जी इसका ध्यान रखेंगी तो भेजना शुरू किया। अब तो समर रोज स्कूल जाता है और साथ ही क..ख...ग...घ भी सीख गया है।"

छोटी कोशिश से दिखता है बड़ा बदलाव

शिक्षा मित्र सृष्टि यादव बताती हैं, "इसी साल दीपाली और रोहित का कक्षा एक में नामांकन हुआ। ये दोनों बच्चे किसी भी शिक्षक या सहपाठी से बात नहीं करते थे, फिर हम लोगों ने खेल-खेल में पढ़ाना शुरू किया। कक्षा में पाठ की नियमित रूप से रीडिंग करवाई जिसका धीरे-धीरे असर दिखने लगा है। अब तो दोनों कविता सुनाने के लिए अपने हाथ खड़े करते हैं। खेल-कूद में भी भाग लेने लगे हैं। ऐसे कई बच्चे हैं, जिन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है।"

"अगर हम सरकारी विद्यालयों में बेहतर माहौल और वातावरण बनाकर बच्चों को शिक्षित करें तो हर बच्चे को बराबर का मौका मिलेगा। हर बच्चे का भविष्य उज्ज्वल होगा। हर साल तमाम बच्चे पहली बार विद्यालय आना शुरू करते हैं। लेकिन हर बच्चे की सीखने-समझने की क्षमता एक समान नहीं होती है, जिससे वो दूसरों से पीछे रह जाते हैं। इनपर अलग से ध्यान देने की जरूरत है," नीता यादव, सदस्य, न्याय पंचायत रिर्सोस सेंटर बताती हैं।


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