विश्व एड्स दिवस : माँ-बाप और बच्चों को भी अपनी बीमारी के बारे में नहीं बताया

"इसी बात का डर है कि लोगों को पता चलेगा तो कोई बाल-बच्चों से शादी नहीं करेगा, किसी का आना-जाना नहीं होगा (घर में), इसलिए किसी को नहीं बताते। अपने अम्मी-अब्बू, बाल-बच्चों को भी नहीं बताया। बस हम दोनों ही जानते हैं अपनी तक़लीफ़ के बारे में," रेशमा बताती है।

Update: 2018-12-01 07:29 GMT

घरवालों से पेट में पथरी होने का बहाना बनाकर पिछले आठ महीनों से रेशमा और उनके पति, अली (बदले हुए नाम) डॉक्टर की परामर्श और दवा के लिए अस्पताल आ रहे हैं।

महीनों पहले जब अली की लगातार तबियत नासाज़ होने के कारण एक दिन जब दोनों जांच कराने अस्पताल पहुंचे तो पता चला उन्हें एड्स है। डॉक्टर की सलाह से रेशमा ने भी अपना चेकअप कराया और वो भी एचआईवी पॉज़िटिव निकली। इस बात को अब छः महीने बीत चुके हैं, लेकिन बदनामी और दोस्त-रिश्तेदारों से अलगाव के डर से दोनों पति-पत्नी ने अभी तक इसके बारे में घर में किसी को नहीं बताया।

"इसी बात का डर है कि लोगों को पता चलेगा तो कोई बाल-बच्चों से शादी नहीं करेगा, किसी का आना-जाना नहीं होगा (घर में), इसलिए किसी को नहीं बताते। अपने अम्मी-अब्बू, बाल-बच्चों को भी नहीं बताया। बस हम दोनों ही जानते हैं अपनी तक़लीफ़ के बारे में," रेशमा बताती है।

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राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले साल 21.4 लाख लोग एचआईवी से ग्रस्त थे। हालांकि रिपोर्ट में भी बताया गया है कि मामलों में थोड़ी गिरावट आयी है।

अली, लखनऊ के अलीगंज इलाके में सब्ज़ी बेचने का काम करते हैं और दोनों के तीन बच्चे हैं। "हमें नहीं पता कब, कैसे हमको ये बीमारी हो गयी और हमसे से हमारी बीवी को भी हो गयी। तीनों बच्चे सही हैं हमारे, पढ़ने जाते हैं। हम तो उन्हें कभी नहीं बताएंगे नहीं तो उनकी ज़िंदगी भी ख़राब हो जायेगी, सब मज़ाक उड़ाएंगे," अली बताते हैं।

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"एड्स के प्रति समाज में बड़ी हीन भावनाएं हैं। खासतौर पर लोग अपने बच्चों को लेकर बड़े ही सेलेक्टिव होते हैं की 'हम खुद तो एआरटी सेंटर आ जायेंगे लेकिन हमारे बच्चों को नहीं पता चलना चाहिये या उन्हें नहीं लाएंगे नहीं तो उनके स्कूल से निकाला जा सकता है या शादी में दिक्कत होगी, ऐसे कई केसेस होते हैं। तो अब एचआईवी पॉजीटिव लोगों में ऐसा डर बस चुका है, समाज से बहिष्कार होने का," किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मेडिसिन विभाग के सहायक प्रो. डी. हिमांशु रेड्डी ने बताया।

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