शराबियों पर शिकंजा कसेगा 'सोंटा दल'

Update: 2015-11-06 05:30 GMT

पोया (लखीमपुर)। लखीमपुर जि़ले में थारू परिवारों के कई गाँव ऐसे हैं जहां की अधिकांश महिलाएं अपने घर पर शराब बनाती हैं। उन्हीं गाँव में से एक गाँव पोया की कुछ महिलाएं अब शराब के खिलाफ उठ खड़ी हैं और उन्होंने ठान लिया है कि अब वो अपने गाँव को शराब मुक्त करके ही मानेंगी।

पोया गाँव लखीमपुर खीरी से करीब 120 किमी दूर भारत-नेपाल सीमा से सटे पलिया ब्लॉक में आता है। इस गाँव से पहली आवाज जनुका देवी (37 वर्ष) ने उठाई है। जनुका ने गाँव की ही कुछ महिलाओं को इकट्ठा करके एक दल बनाया है, जिसका नाम 'सोंटा दल' रखा गया है। 

यह दल अब गाँव में नशा करने वाले पुरुष व महिलाओं को चुनकर कर उनके खिलाफ  आवाज उठा रहा है। इस दल की सारी महिलाएं हाथ में डण्डा लेकर गाँव में सुबह शाम चक्कर लगाती हैं।

दल की मुख्य सदस्या जनुका बताती हैं, ''हम लोग सुबह आठ बजे और शाम को सात बजे डण्डा लेकर गाँव में घूमते है, जहां पर हमें दारू बनती दिख जाती है हम लोग दारू बनाने को मना करते हैं और जो दारू पीता है उसको समझाते हैं कि आप लोग अब दारू नहीं पिएंगे और अगर नहीं मानेंगे तो हम आकर आपकी पिटाई करेंगे। अगर फिर भी नहीं मानोंगे तो डीएम साहब के पास ले जाकर हाजिर कर देंगे।" 

टीम की सभी महिलाओं का कहना है कि अब न तो वो शराब बनाएंगी और न ही गाँव में बनने देंगी। सोटा दल करीब एक महीना पहले बनाया गया था।

जनुका बताती हैं, ''पहले जब सोंटा दल नहीं था तो दारू पी कर लोग इधर उधर घूमते थे, लड़ाई-झगड़ा करते थे लेकिन जबसे ये दल बना है तबसे ये सब नहीं होता है और लोग दारू भी अब धीरे-धीरे पीना कम कर रहे हैं।"

इस गाँव के साथ ही अन्य थारू गाँव जैसे धुसकिया, रामनगर, फुरैना, टूढ़ा गाँव में भी लगभग हर घर में महिलाएं चावल से शराब बनाती हैं और गाँव के पुरुषों के साथ-साथ काफी महिलाएं भी शराब पीती हैं।

इस मुहिम में जनुका देवी के साथ-साथ पोया गाँव की सहबनिया, बन्दो देवी, गुडिय़ा, रत्तो, गोमती, संजो देवी और रेखा भी साथ दे रही हैं।

उसी दल की महिला गोमती (35 वर्ष) बताती हैं, ''पहले दारू पीते थे तो बहुत परेशानी होती थी। दारू पीकर आते थे तो घर में लड़ाई करते थे बच्चों को मारते थे और अगर पीने के लिये पैसे नहीं होते थे तो घर का कोई सामान बेच देते थे। लेकिन जबसे ये दल बना है तबसे ये सब कम हो रहा है।"

संजो देवी (40 वर्ष), दल की एक और सदस्य बताती हैं, ''अब इससे कम से कम इतना असर तो पड़ा है कि अब भी कुछ लोग पीते हैं पर डर की वजह से वो हंगामा नहीं करते हैं पहले तो पीते थे तो पूरे गाँव में हंगामा करते थे।"

दरअसल थारू गाँवों में शराब बनाने की जानकारी जब लखमीमपुर खीरी की जिलाधिकारी किंजल को मिली तो उन्होंने थारू महिलाओं के साथ चौपाल लगाई, जिसमें वहां के लोगों को विशेषकर महिलाओं को नशे की लत से बचने और परिवार को बचाने के लिए प्रेरित किया, जिसका पहला असर पोया गाँव पर पड़ा और इस गाँव की महिलाओं ने एक दल बना लिया। इस दल का नाम सोटा दल इसलिए रखा गया क्योंकि ये महिलाएं डण्डा लेकर गाँव में चक्कर लगाती हैं।

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