सफाईकर्मी जीवों के बिना हम स्वच्छ नहीं रख सकते गाँवों को

Update: 2016-06-02 05:30 GMT
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गाँवों के वातावरण को स्वच्छ रखने वाले जानवर विलुप्त हो रहे हैं। कुछ साल पहले प्रयाग और वाराणसी में पितृपक्ष मे लोगों ने गिद्ध, कौवे, कुत्ते और अन्य जानवरों को भोजन कराना चाहा तो उनकी कमी पाई गई। बात अखबारों में भी छपी परन्तु आई-गई हो गई। आज हालत यह है कि खाल के ठेकेदार गाँवों में मरे हुए जानवरों की खाल निकालकर उनका बाकी शरीर खुले में छोड़ देते हैं। पहले यह पशुमांस गिद्ध खा जाते थे अब गिद्ध नहीं बचे, कौवे और कुत्ते उस मांस को निपटाने की कोशिश करते हैं। कुछ समय बाद ये कौवे और कुत्ते भी विलुप्त हो चुके होंगे और कंकाल सड़ेंगे, जानलेवा बीमारियां फैलाएंगे।

स्केवेंजर यानी सफाईकर्मी प्रजातियों पर संकट पैदा किया है, दूध के लालच में दूधियों ने आक्सिटोसीन नामक जहरीला इंजेक्शन लगाकर। इससे जानवरों का मांस भी जहरीला हो जाता है जिसे खाकर गिद्ध लगभग समाप्त हो गए हैं। मरे जानवर की खाल निकाले जाने के बाद खुले मैदान में पड़े जहरीले मांस को खाकर जब कौवे और कुत्ते भी नहीं बचेंगे और यह मांस खुले में सड़ता रहेगा, तो नई-नई बीमारियों फैलेंगी। मनुष्य अपने स्वार्थवश अपने ही विनाश को दावत दे रहा है।

हमारे किसान खेतों से फसल काटने के बाद खेतों में आग लगा देते हैं जिससे मिट्टी में मौजूद उपयोगी बैक्टीरिया मर जाते हैं। इनमें वे जीवाणु भी होते हैं जो फसल का उत्पादन बढ़ाने में सहायक होते हैं और वे भी होते हैं जो पौधों के रोगों से लड़ने की क्षमता रखते हैं। हमें ध्यान रखना होगा कि सांप भी उपयोगी हैं चूहों को नियंत्रित करने के लिए और मोर भी उपयोगी हैं सांपों को नियंत्रित करने के लिए। वास्तव में विविध जीव एक-दूसरे के लिए भोजन श्रृंखला बनाते हैं जैसे घास और वनस्पति को हिरन खाते हैं और उन्हें शेर खाता है। परन्तु जब वन्य जीवों को मनुष्य खाने लगेगा और शेर का भोजन छिन जाएगा तो शेर मनुष्य को खाएगा। इसलिए पशु पक्षियों, कीट पतंगों तथा वनस्पति को जीवित रखकर भोजन श्रृंखला को बचाए रखना और पेड़ों के अधाधुन्ध कटान को रोक कर पक्षियों और कीट पतंगों का संसार भी उजड़ने से बचाना है। 

हम घरों में देखते हैं कि छिपकली किस तरह कीड़ों को खाती रहती है, बिल्ली और कुत्ते गन्दगी को खाकर हमारे लिए सफाई करते है, सियार और लोमड़ी भी अपना काम करते हैं लेकिन जरा-सोचकर देखिए यदि जानवरों का गोबर और मनुष्य का मल वर्षों तक जैसा का तैसा पड़ा रहे तो क्या होगा। ऐसी तमाम गन्दगी को विघटित करके खाद में बदलने का काम जो जीवाणु करते हैं उन्हें हम देख नहीं सकते परन्तु जब तेज दवाओं का प्रयोग करते है या खेतों को जलाते हैं तो ये उपयोगी जीव जन्तु नष्ट हो जाते हैं। तालाबों, नदियों और झीलों का पानी प्रदूषित हो रहा है क्योंकि इसे साफ रखने वाले जीव मछलियां, कछुए आदि नष्ट हो रहे हैं।       

केवल जीव जन्तु ही नहीं बल्कि पेड़ पौधे भी हमारे रक्षक हैं लेकिन हम उनके अहसान को नहीं मानते। नीम, तुलसी, हल्दी, आंवला आदि के गुण हमारे गाँवों के लोगों को मालूम थे। घर के सामने लगे नीम के पेड़, घर में तुलसी का पौधा और पीपल-बरगद जैसे पेड़ वायु को शुद्ध करके वायु में पाए जाने वाले हानिकारक जीवाणुओं और विषाणुओं को नष्ट करते है, हमें बीमारियों से बचाते हैं और प्राणवायु देते हैं। पश्चिमी देश कभी नीम, कभी हल्दी, आंवला, जामुन और कभी तुलसी का पेटेन्ट कराते रहते हैं जिससे हम इनसे औषधियां आदि न बना सकें। 

विदेशियों का कुचक्र चल रहा है। उन्होंने एक अद्भुत तरीका निकाला है जिससे वे विलुप्त हो रही प्रजातियों के ‘जीन्स’ निकाल कर जीन्स बैंक बना रहे हैं। इस प्रकार जब सारे विश्व में जन्तुओं और पौधों की अनेक प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी तब भी पश्चिमी देशों के जीन्स बैंकों में वे प्रजातियां विद्यमान रहेंगी। वे जब चाहेंगे उन्हीं जीन्स की मदद से फिर से अपने देश में जानवर और अनाज की वही प्रजातियां उत्पन्न कर लेंगे। गरीब देश देखते रह जाएंगे। समय रहते हमें इन उपयोगी जैव विविधता की रक्षा करनी चाहिए। 

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