गाना सुनकर ज्यादा दूध देगी आपकी गाय

अब यहां पर रोज सुबह और शाम गायों को सुनाने के लिए संगीत और भजन की धुन बजाई जाती है।

Update: 2018-06-21 07:26 GMT

मिश्रिख (सीतापुर)। सुधा की डेयरी वैसे तो दूसरी डेयरियों की तरह ही है, लेकिन एक बात यहां पर अलग है जो इसे दूसरी डेयरियों से अलग करती है। यहां पर गाय-भैसों के लिए गाने सुनने का बंदोबस्त किया गया है।

सीतापुर जिले के मिश्रिख ब्लॉक के कुंवरापुर गाँव की सुधा पांडेय ने कई साल पहले डेयरी शुरू की थी। आज उनके पास 50 से अधिक गाय-भैस हैं। आज अपने क्षेत्र में एक सफल डेयरी संचालक के नाम से मशहूर हैं, यही नहीं आज सैकड़ों महिलाओं को डेयरी पालन भी सिखा रही हैं।

संगीत किसे नहीं अच्छा लगता। यही पशुओं के साथ भी होता है, अभी एक शोध में भी आया है कि जैसे गाय को अपने बच्चे को दूध पिलाते समय महसूस होता है, वैसे ही संगीत सुनते समय भी होता है। कामधेनु और मिनी कामधेनु की कई डेयरियों में हमने देखा है, लोग अपनी गाय भैसों को संगीत सुनाते हैं, जिसके पॉजिटिव प्रभाव भी देखे जा रहे हैं। 
डॉ. बलभद्र सिंह यादव, कार्यकारी अधिकारी, पशुधन विभाग, उत्तर प्रदेश  

सुधा पांडेय बताती हैं, "मेरे यहां कई साल से डेयरी चल रही है, गाय के लिए पंखा और गर्मियों के लिए फुव्वारा भी लगाया है, जिससे उन्हें गर्मी में परेशानी न हो।" अब यहां पर रोज सुबह और शाम गायों को सुनाने के लिए संगीत और भजन की धुन बजाई जाती है। इस बारे वो कहती हैं, "काफी समय पहले सुना था कि गायों को संगीत एवं भजन काफी पसंद होते हैं। जब यह विधि को अपनाई तो उसका परिणाम काफी अच्छा निकला है।"

एक शोध के अनुसार विदेशी गायों के मुकाबले देसी गायों में मातृत्व की भावना अधिक होती है। यही कारण है कि बच्चा मरने के बाद वह दूध नहीं देती। विदेशी गाय ऐसी परिस्थिति में भी दूध दे देती हैं। संगीत की तरंगें गाय के मस्तिष्क में ऑक्सीटोसिन हार्मोंस को सक्रिय करेंगी और गाय को दूध देने के लिए प्रेरित करेंगी। बिना ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन के भी बच्चा मरने पर गाय से दूध लिया जा सकता है।

मिल चुका है गोकुल पुरस्कार

सुधा को गोकुल पुरस्कार भी मिल चुका है। आज वो अपने साथ ही दूसरी महिलाओं की जिंदगी बदल रही हैं। सुधा बताती हैं, "मैंने अब तक 13 बीघे जमींन भी खरीद ली है जिसमें मैं अपने पशुओं के मल मूत्र से निर्मित केंचुएं की खाद जिसको मैंने 500 वर्ग फिट क्षेत्र में बनाया है प्रयोग करती हूं। मुझे खुशी है कि गाँव वाले अब मेरी तरह ही अपनी औरतों और बेटियों को बनने की सलाह देते हैं।

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