टेंट हाउस चलाकर खुद को सशक्त बना रहीं यहां की महिलाएं 

Update: 2017-05-30 13:58 GMT
ग्रामीण महिलाएं जागरूक होकर खुद का रोजगार कर रही हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

गोरखपुर। ग्रामीण महिलाएं जागरूक होकर खुद का रोजगार कर रही हैं। इन महिलाओं ने अपने बचत समूह से पैसे लेकर सामूहिक रूप से टेंट हाउस का कारोबार शुरू किया और इससे होने वाली आमदनी से अपने घरेलू खर्चे चला रही हैं।

“छह साल पहले 18 महिलाओं ने मिलकर टेंट हाउस का रोजगार 15 हजार रुपए से शुरू किया था। गोरखपुर जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर ब्रहमपुर ब्लॉक के करहीं गाँव में रहने वाली सुमित्रा देवी (45 वर्ष) बताती हैं, "आस-पास के ग्रामीणों को जब किसी समारोह के लिए बर्तन आदि की जरूरत पड़ती है तो वे हमारे टेंट हाउस से जरूरत के सामान ले जाते हैं। इससे हमें जो आमदनी होती है वो पैसा आपस में बांट लेते हैं।”

वो आगे बताती हैं, “ये हमारा खुद का काम है। अब कोई भी छोटा कार्यक्रम करना होना है तो सामान लेने के लिए दूसरे गाँव के चक्कर नहीं लगाने पड़ते हैं। अकेले पूरा सामान खरीदना मुश्किल होता है ऐसे में समूह ने मिलकर खरीदा तो आसान हो गया।” महिला समाख्या की क्लस्टर रिसोर्स पर्सन नंदनी देवी का कहना है, “जिले की कई महिलाएं सामूहिक और व्यकितगत रोजगार कर रही हैं। किसी ने परचून की दुकान खोल ली है तो किसी ने सिलाई मशीन, कोई मछली पालन तो कुछ सामूहिक जड़ी-बूटी बना रही हैं।”

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महिला समाख्या कार्यक्रम की शुरुआत गोरखपुर जिले में वर्ष 1996 में हुई

महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए महिला समाख्या कार्यक्रम की शुरुआत गोरखपुर जिले में वर्ष 1996 में हुई। महिलाओं द्वारा संघ बचत समूह की शुरुआत 1999-2000 में की गई। जिसमें महिलाओं ने मजदूरी करके बचत समूह में दो रुपए महीने में जमा करना शुरू किया। आज ये महिलाएं 50-100 रुपए महीने जमा करती हैं। एक समूह में 20 महिलाएं होती हैं। गोरखपुर जिले में 118 बचत संघ चलते हैं, जबकि प्रदेश के 16 जिलों में 1109 बचत संघ चल रहे हैं, जिसमें 12,972 महिलाएं जुड़ी हैं।

इसमें सैकड़ों महिलाएं सामूहिक रूप से बचत के पैसे से रोजगार कर आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं और अपने खर्चे खुद चला रही हैं। समूह से जुड़ी भानवती देवी (52 वर्ष) का कहना है, “पहले गाँव के लोग कहते थे दूसरों के यहां मजदूरी करती हैं अब ये टेंट का काम शुरू करेंगी, जब हमने मिलकर काम शुरू कर दिया तो उनकी बोलती बंद हो गई। गाँव में कोई कार्यक्रम होता है अगर पैसे उनके पास नहीं होते हैं तो हम उधारी भी दे देते हैं। इससे गाँव के लोगों की मुश्किलें आसान हुईं, अगर दूसरे गाँव का टेंट होता तो उन्हें तुरंत नकद देना पड़ता, जैसे-जैसे पैसा आता जाता है, हम सामान बढ़ाते जाते हैं।”

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