फिल्म और अभिनय के ज़रिए अब स्कूल के बच्चे निकालते हैं हर समस्या का समाधान

शिवम सिंह यूपी के जौनपुर के प्राथमिक विद्यालय लखेसर, सिकरारा में सहायक अध्यापक हैं। डॉक्यूमेंट्री फिल्मों के ज़रिए वो समाज के मुद्दों को न केवल उठाते हैं, बल्कि उनका हल भी निकालते हैं। टीचर्स डायरी में शिवम अपना अनुभव साझा कर रहे हैं।

Update: 2023-05-31 05:48 GMT

सिनेमा न केवल समाज का दर्पण होता है बल्कि समाज को दर्पण भी दिखाता है। समाज में जागरूकता लाने का एक सशक्त माध्यम है 'सिनेमा'। आज महानगरों के बच्चों में आत्मविश्वास और व्यक्तित्व निर्माण के लिए ऐसे कई एक्टिंग क्लासेस खुले हैं, जहाँ बच्चे अभिनय, गायन और डांस सीखते हैं। ये एक तरह से नई शिक्षा नीति 2020 के कौशल विकास का एक ऐसा हिस्सा है जिससे बच्चों में छिपी प्रतिभा बाहर निकलती है।

लेकिन ग्रामीण और गरीब बच्चों के लिए क्या व्यवस्था है? इसका न कोई उत्तर है न ही संसाधन। ऐसे में अगर इन बच्चों के लिए कोई कुछ कर सकता है तो वह है 'शिक्षक'। कुछ ऐसा ही अभिनव प्रयास हुआ उत्तर प्रदेश के जौनपुर जनपद में। कोरोना काल में किताबों से बाहर एक वास्तविक दुनिया से रूबरू कराया गया परिषदीय विद्यालयों के बच्चों को, जिसका माध्यम था - फ़िल्म निर्माण।


इसका जिम्मा मैंने उठाया। विद्यालय वन्य क्षेत्र में होने से आये दिन रास्ते में जंगली जीव-जंतु पड़ जाते थे जिसके डर से बच्चे घर रुक जाते थे। इस डर को दूर करने के लिए मैंने आदिमानव नामक पाठ को बच्चों को उसी जँगल में उसी वेशभूषा में कराया। बच्चों को पाठ भी याद हो गया और डर भी दूर हो गया। इस नवाचार को टीचर्स ऑफ़ इंडिया नामक वेब पोर्टल पर स्थान मिला। यह किसी भी परिषदीय विद्यालय द्वारा तैयार पहली डॉक्यूमेंट्री थी।

अपने ही विद्यालय के बच्चों, अभिभावकों और अन्य शिक्षकों को लेकर मोबाइल से एक ऐसे मुद्दे को उठाया जो विद्यालय के एक छात्रा की समस्या थी - "लिंगभेद"। ;हमार बिटिया हमार मान' नाम की फ़िल्म से समाज को यह संदेश दिया गया कि चाहे लड़का हो या लड़की, दोनों में कोई अँतर नहीं होना चाहिए। माता-पिता का नाम रोशन करने के लिए किसी उम्र की ज़रूरत नहीं होती बस एक लक्ष्य और जुनून की ज़रूरत होती है। इस फ़िल्म का नतीजा ये हुआ कि स्थानीय इंटरमीडिएट कॉलेज ने इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाली बेटियाँ दिव्या और निधि के इंटर तक की फीस माफ़ कर दी।

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साल 1956 में बने विद्यालय तक सड़क नही पहुँच पा रही थी , हर बार चकबन्दी में विवाद उत्त्पन कर दिया जाता था। इस बार इसी मुद्दे को लेकर "बालसेना" नामक फ़िल्म बनाई गई। लोकतंत्र और शिक्षा की ताकत को दर्शाते इस फ़िल्म से प्रभावित होकर ग्राम प्रधान निशा तिवारी के मार्गदर्शन में विद्यालय तक सड़क पहुँची।

इस फ़िल्म को मुम्बई के वीनस ब्राइट इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में चुना गया। इस फ़िल्म ने B4U भोजपुरी के फिल्मी जगत का ध्यान आकर्षित किया और बच्चों को विद्या नाम की फ़िल्म में काम करने का मौका मिला।


बच्चों में गज़ब का आत्मविश्वास है, वे अब किसी भी समस्या का रोना नहीं रोते बल्कि उसका समाधान खोजते हैं। हमने शिवम फिल्म के नाम से अपनी पूरी टीम बनाई है, जिसमें शिक्षक अपने कौशलों और गुणों का भी विकास कर रहे हैं।

शिक्षकों के समूह मिशन शिक्षण संवाद के माध्यम से इन्हें तकनीकी सहयोग प्राप्त होता है। जिसके माध्यम से इन्होंने अपने शिक्षक साथियों को साथ लेते हुए परिषदीय विद्यालयों के हिंदी पाठ्य पुस्तक के सभी कविताओं को फिल्मी गीतों के तर्ज पर सजाया है, जिसे नाम दिया गया है – स्वरांजलि

इस गर्मी की छुट्टी में बच्चों ने फिर एक नई फ़िल्म के लिए कमर कस ली है और बहुत जल्द आपके सामने प्रस्तुत होगी।

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