'पेड़ के नीचे से लेकर स्कूल भवन तक 26 साल में बदल गई स्कूल की तस्वीर'
गोपाल कौशल मध्य प्रदेश के प्राथमिक विद्यालय नयापुरा माकनी में शिक्षक हैं, पिछले 26 साल से स्कूल में वो बच्चों को नए तरीके से पढ़ाते हैं।
साल 1997 में मेरी पहली पोस्टिंग प्राथमिक विद्यालय नयापुरा में हुई थी, जब मैं स्कूल पहुँचा तो स्कूल में भवन भी नहीं था। स्कूल में बच्चों की सँख्या 40 से 45 के बीच थी और पेड़ के ही नीचे उन्हें पढ़ाया जाता था। बाद में गाँव के लोगों ने हमें कमरा दे दिया, जिसमें मैं बच्चों को पढ़ाने लगा।
कुछ समय तक दूसरों के कमरों में बच्चों को पढ़ाने के बाद स्कूल का भवन तैयार कराया। स्कूल की बिल्डिंग बनने में तीन साल लग गए, लेकिन अपनी बिल्डिंग बनने से स्कूल में बच्चों की सँख्या बढ़कर 98 हो गई।
स्कूल के बच्चे हमेशा पढ़ने और सीखने के लिए तैयार रहते हैं। अगर शिक्षक बनकर बच्चों को पढ़ाते हैं बच्चे खुलकर नहीं बोलते हैं, इसलिए मैं बच्चों को नए अंदाज़ में पढ़ाता हूँ। क्लास में बच्चों के साथ माहौल ऐसा होता है कि उन्हें किसी भी विषय को पढ़ाने के लिए पुराने तरीके को अपनाते हैं तो शायद वे बोर हो जाएँ। इसलिए मैं बच्चों को गीत के जरिए पढ़ाता हूँ , क्योंकि वो कविता और गीत आसानी से याद कर लेते हैं।
एक बार हमारे स्कूल में पाँचवीं कक्षा में पढ़ने वाली बच्ची अनीशा वर्मा ने पूछा कि सर सूर्यग्रहण कैसे होता है, तो क्लास में सूर्य ग्रहण समझाने के लिए हमने क्लास में सभी बच्चों के साथ मिलकर टीएलएम (टीचिंग लर्निंग मटेरियल यानि समझाने का सामान) बनाया। टीएलएम के ज़रिए बच्चों को सूर्य ग्रहण कैसे लगता और क्या-क्या चीजें होती हैं, जैसी जानकारी बच्चों ने अच्छे से समझ ली और अब भी उन्हें सब याद है।
स्कूल में जब मैं टीएलएम बनाता हूँ तो मुझे देखकर बच्चे कहते हैं कि सर मुझे भी ये बनाना है और बच्चों को टीएलएम बनाने में बहुत अच्छा लगता है। जैसे माचिस की डिब्बी खाली हों गयी तो उसको कुछ ऐसा बनाना, जिससे उसका ऐसा इस्तेमाल हो सके। जो बच्चों की पढ़ाई में काम आ सके।
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