'स्कूल में 230 बच्चों के साथ शुरूआत की थी, आज 600 से ज़्यादा पढ़ते हैं'

राखी अग्रवाल, यूपी के संभल ज़िले के प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापिका हैं, पिछले कुछ साल से उनके प्रयासों से स्कूल की तस्वीर बदल गई है। टीचर्स डायरी में वो अपनी उसी यात्रा की कहानी साझा कर रहीं हैं।

Update: 2023-06-15 12:11 GMT

मेरी पहली नियुक्ति जब प्राथमिक विद्यालय भगतपुर में हुई तो मेरे लिए सब कुछ नया था। इससे पहले मैंने कभी गाँव नहीं देखा था और न ही मुझे यहाँ की परेशानियों के बारे में पता था। स्कूल मेरे घर से काफी दूर था आने जाने की कोई सुविधा भी नहीं थी, उस समय तो काफी परेशानी होती थी, एक समय तो ऐसा विचार आया कि स्कूल छोड़ दूँ, लेकिन काफी कुछ सोचने-समझने के बाद मैंने अपना ये निर्णय बदला।

इस स्कूल में 120 से ज़्यादा बच्चों का दाख़िला था और यहाँ पढ़ाने वाले दो अध्यापक थे। अच्छी शिक्षा न होने के कारण बच्चे अपने गाँव के स्कूल को छोड़कर लगभग चार किमी दूर भोजपुर गाँव के प्राइवेट स्कूल में पढ़ने जाते थे।

ये साल 2009 की बात है, तब मैंने अपने पढ़ाने का तरीका प्राइवेट स्कूल की तरह रखा, क्योंकि यहाँ से पहले प्राइवेट स्कूल में भी पढ़ाया था। बच्चे बहुत गरीब परिवार से थे, इसलिए कई बच्चों के पास ड्रेस भी नहीं हुआ करती था। धीरे-धीरे बच्चों के अभिभावक भरोसा करने लगे और वे अपने बच्चे को मुझसे पढ़ने को भेजा करते और कुछ दिनों बाद उनके बच्चों में भी कई बदलाव आने लगे। सवा साल बाद यानी 2013 को मेरा संभल जिले के प्राइमरी स्कूल जेनेटा में ट्रांसफर कर दिया गया।

इस स्कूल में मेरी बतौर प्रधानाध्यापक नियुक्त हुई, यहाँ के विद्यालय पिछले कई साल से कई तरह की समस्याएँ आ रही थीं। लेकिन अगर मन में लगन और कर्तव्यों के प्रति सच्ची निष्ठा होती है तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता।


जहाँ विद्यालय में शिक्षा का सही माहौल नहीं था ऐसे में मैंने अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ करते हुए जन समुदाय पर अपना विश्वास बनाया और जन समुदाय मेरी कार्यशैली और व्यवहार से प्रभावित होकर एक ही इमारत में प्राथमिक विद्यालय और एक जूनियर विद्यालय होने पर भी मेरे पास अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए नामांकन कराने का फैसला किया।

यहाँ मुस्लिम समुदाय की लड़कियों को स्कूल आने के लिए प्रोत्साहित किया। लड़कियों की शिक्षा के लिए मैंने घर-घर जाकर और समय-समय पर विद्यालय में बच्चियों की माँओं को बुलाकर शिक्षा का महत्व बताते हुए उनकी बालिकाओं की शिक्षा की जिम्मेदारी ली। मेरे द्वारा बच्चों को नई-नई गतिविधियाँ, नवाचार और अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा दी जाती रहीं।

क्योंकि मैं पहले से ही एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में शिक्षिका भी रही थी, प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे भी मेरे विद्यालय में नामांकन कराने लगे। नतीजा ये हुआ कि दाखिले का ग्राफ हर साल बढ़ता गया, जहाँ पहले 2016-17 में 257, बच्चे थे वो 2021-22 में  603 हो गए। बालक बालिका अनुपात बराबर हो गया और परिणामस्वरूप जनपद संभल में मैंने रिकॉर्ड नामांकन वृद्धि और ठहराव में अपने विद्यालय का अव्वल स्थान दर्ज कराया।

घर से विद्यालय की दूरी मुझे अपने कर्तव्यों के प्रति रोक नहीं पाती। मैं हर रोज 60 किलोमीटर का सफर तय कर नियमित रूप से विद्यालय में उपस्थित रहती हूँ। प्रधानाध्यापक के पद पर रहते हुए भी 14 आकस्मिक अवकाश पूरे नहीं लिए।

अभिभावक अपने बच्चों को विद्यालय भेजकर सुरक्षित महसूस करते हैं। वर्तमान में विद्यालय कम्पोजिट होने के कारण मुझे एक ही कक्षा के बच्चों को निपुण बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। मेरे प्रयासों और नवाचारों से मेरी कक्षा की उपस्थिति 80 प्रतिशत से अधिक रहती है और कक्षा के 50 प्रतिशत से अधिक छात्र निपुण भी बन चुके हैं।

मुझे अपनी कक्षा में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है, मेरे ज़्यादातर बच्चे बहुत ही प्रतिभाशाली, ध्यान आकर्षित करने वाले और लगातार विकास लक्ष्यों पर भी काम करने वाले जिम्मेदार नागरिक बन रहे हैं। मुझे अपनी कक्षा पर गर्व है।

राखी अग्रवाल ने जैसा गाँव कनेक्शन के इंटर्न दानिश इकबाल से बताया

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