तरकश में अच्छे तीर नहीं, संधान बदलते रहिए

Update: 2016-07-11 05:30 GMT
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले दो साल में कई बार अपनी कैबिनेट को फेंटा है और पिछले सप्ताह का बदलाव शायद सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण है। जिन मंत्रियों की छुट्टी की गई है उनकी क्षमता योग्यता तो एक डेढ़ साल में पता लग गई होगी तो पिछले बदलाव में ही ऑपरेशन पूरा क्यों नहीं किया। हटाए गए मंत्री मीडिया में कहते सुने गए हैं कि कार्य कुशलता या जातीय गणित ही बदलाव का एक मात्र आधार नहीं है। वैसे इसका आधार जो भी हो, परिणाम बताएंगे कि परिवर्तन की कसरत सार्थक थी या केवल संधान बदलने जैसी।

मोदी ने 78 मंत्रियों की भारी भरकम कैबिनेट बनाई है जो मैक्सिमम गवर्नेंस विद मिनिमम गवर्नमेन्ट के सूत्र से बहुत दूर है लेकिन यदि मैक्सिमम गवर्नेंस विद मैक्सिमम गवर्नमेन्ट भी हो जाए तो भी बुरा नहीं है क्योंकि औरों की कैबिनेट इससे भी जम्बो रही है। अन्तर इस बात से नहीं पड़ेगा कि संसदीय कार्य वेंकैया नायडू देख रहे हैं या कोई दूसरा, अन्तर इससे पड़ेगा कि कांग्रेस का अड़ियल रवैया समाप्त होगा या नहीं। अन्तर इससे नहीं पड़ेगा कि कानून मंत्री कौन है, अन्तर इससे पड़ेगा कि समान नागरिक संहिता लागू कर पाते हैं या नहीं।

एफडीआई जैसी बहुत सी बातें जो कांग्रेसी वित्त मंत्री चिदम्बरम करना चाहते थे परन्तु कर नहीं पाए, मोदी सरकार ने लागू कराया है लेकिन एफडीआई यदि स्वदेशी कम्पनियों के पैर उखाड़ दे तो अंजाम बुरा होगा। उधर जीएसटी पर बात अभी भी अटकी है। अब अरुण जेटली का बोझ कम किया गया है, क्या अब लागू करवा पाएंगे? जेटली ने शुरू में संकेत दिया था कि ज्वाइंट सेशन का विकल्प है तो फिर वह विकल्प अभी तक अजमाया क्यों नहीं। बचा हुआ तीन साल का समय बहुत नहीं है।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय जिसे एक जमाने में शिक्षा विभाग कहते थे, उसका परिवर्तन सबके ध्यान में आ रहा है। प्रथम तो इसलिए कि जिस विभाग को प्रोफेसर मुरली मनोहर जोशी जैसा व्यक्ति चला रहा था, अटल जी के जमाने में वह विभाग किसी अनुभवविहीन व्यक्ति को देकर मोदी ने सबको चौंकाया था। अब उन्हीं स्मृति ईरानी को हटाकर मोदी ने उतना ही चौंकाया है लोगों को। 

कई लोगों की अटकलें है कि प्रियंका वाड्रा और अखिलेश यादव जैसे ऊर्जावान नेताओं के सामने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर स्मृति ईरानी को उतारने का इरादा है। जो व्यक्ति एक विभाग संभालने की क्षमता नहीं दिखा पाया वह उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रदेश का दायित्व कैसे संभाल सकेगा और याद रखना चाहिए कि अखिलेश यादव अब नौसिखिए नहीं हैं और माया को माया समझना भूल होगी। इसमें सन्देह है कि ईरानी चुनाव में भाजपा की नैया पार करा पाएंगी।

स्मृति ईरानी कला स्नातक के साथ मानव संसाधन विभाग संभालती थीं और प्रकाश जावड़ेकर वाणिज्य स्नातक के साथ संभालेंगे, इससे विशेष अन्तर नहीं पड़ेगा। अन्तर तब पड़ेगा जब एक मंजे हुए राजनेता के रूप में जावड़ेकर के फैसलों की समीक्षा होगी। सभी जानते हैं कि वह जोशी की तरह एकेडेमीशियन नही हैं इसलिए एकेडेमिक बिरादरी अधिक प्रभावित तो नहीं होगी। इस विभाग को पीवी नरसिंह राव और अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री रहते हुए अपने पास रखा था और बहुत पहले मौलाना अबुल कलाम आजाद और अली करीम छागला ने संभाला था। 

मोदी सरकार में अनेक ऐसे मंत्री हैं जो भारत को रातोंरात हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं और बात-बात में लोगों को पाकिस्तान भेजने की बात करते हैं। ऐसे लोगों को पार्टी काम के लिए भूजकर सरकार का सर्वस्वीकार्य स्वरूप बनाना चाहिए था। ऐसे लोगों को अभी तक समझ में नहीं आया है कि मोदी का लक्ष्य वही है जो उनका है परन्तु मार्ग अलग है। उस मार्ग में कांटे बिछाते रहने से लक्ष्य की प्राप्ति कभी नहीं होगी।

मोदी कैबिनेट की एक विशेषता को स्वीकार करना होगा कि इसमें अपने विषय के जानने वाले लोग हैं लेकिन पुरानी लकीर पीटने वाले भी हैं। देखना होगा कि प्रभावी कौन होता है हिन्दुत्व की ढफली बजाने वाले या मोदी पथ पर धीरे और स्थिर गति से भारतीयता को पुनरस्थापित करने वाले।     

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