स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में योग की शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया है। उपमुख्यमंत्री व माध्यमिक शिक्षा मंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा कि अब प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में योग सिखाया जायेगा। शारीरिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में अनिवार्य है। इस पर अभिभावकों ने अलग-अलग प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं।
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सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले एक बच्चे की आपा तरन्नुम (46 वर्ष) जो बच्चों को पढ़ाने का काम करती हैं। वह कहती हैं, “योग के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन केवल सरकारी स्कूलों में ही योग क्यों अनिवार्य किया गया है। इन स्कूलों में गरीब लोगों के बच्चे पढ़ते हैं वह चाहें या न चाहें उनको योग करना ही पड़ेगा। प्राइवेट स्कूलों में बड़े-बड़े लोगों के बच्चे पढ़ते हैं जो योग करना नहीं चाहते और उन पर कोई दबाव भी नहीं डाल सकता इसलिए प्राइवेट स्कूलों में योग को अनिवार्य नहीं किया गया है। सरकार को चाहिए कि सभी के साथ एक सा व्यवहार करे।
मोहम्मद कौसर अब्बास (48 वर्ष) जो कि साहू हाउसिंग में काम करते हैं। वह कहते हैं, “बच्चे योग करें इसमें मुझे कोई दिक्कत नहीं है। योग से शरीर स्वस्थ होता है और यह बच्चों के लिए हितकर होगा क्योंकि बच्चे यदि बचपन से ही योग करने लगें तो वह हमेशा स्वस्थ रहेंगे। लेकिन हमारे धर्म में नमस्कार करना मना है इसलिए सूर्य नमस्कार जैसी चीजों के लिए हर बच्चे को बाध्य न किया जाए।”
अपनी राय देते हुए मोहम्मद फहीम (49 वर्ष) जो कि एक प्राइवेट कंपनी में स्टेनो हैं। वह कहते हैं, “सरकार स्कूलों में शारीरिक शिक्षा के तहत बच्चों से योग करवाया जाएगा। प्राइवेट स्कूलों के बच्चों के लिए यह अनिवार्य नहीं है। इसके चलते बच्चों में ही नहीं बल्कि अभिभावकों के बीच भी मन-मुटाव पैदा होगा।”
गृहणी फिरोजा (38 वर्ष) कहती हैं, “स्कूलों में योग को अनिवार्य करना सही नहीं लग रहा है। योग की कक्षाएं स्कूलों में शुरू करवायी जाएं नियमित तौर पर लेकिन यह बच्चों के ऊपर छोड़ देना चाहिए कि कौन बच्चा योग करना चाह रहा है कौन नहीं। जो मुस्लिम बच्चे स्वेच्छा से योग करना चाहें या उनके अभिभावक इसके लिए तैयार हों तब ही इसके लिए बच्चों को बाध्य किया जाये वरना बच्चों का मन पढ़ाई से भी उचटने लगेगा और कई बार वह स्कूल भी नहीं जाना चाहेंगे।”
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