खतरे में अटल का ‘राष्ट्रधर्म’, खत्म हुई मान्यता

Update: 2017-04-10 14:32 GMT
प्रदेश में बीजेपी की सरकार होने के बाद भी पत्रिका को बंद होने से नहीं बचाया जा सका

लखनऊ। कभी प्रधानमंत्री मोदी ने ही कहा था कि राष्ट्रधर्म हर धर्म से ऊपर होता है लेकिन आज प्रदेश में बीजेपी की सरकार होने के बाद भी वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई का राष्ट्रधर्म बंद होने के कगार पर है।

लखनऊ से छपने वाली इस पत्रिका के संस्थापक अटल बिहारी बाजपेई ही थे। अब खबर है कि केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय ने राष्ट्रधर्म पत्रिका की डायरेक्टेट ऑफ एडवरटाइजिंग एंड विजुअल पब्लिसिटी की मान्यता रद्द कर दी है, जिसके बाद यह केंद्र के विज्ञापन लिस्ट से बाहर हो गई है। राष्‍ट्रधर्म लखनऊ के संस्कृति भवन से प्रकाशित होती है।

राष्ट्रधर्म पत्रिका को आरएसएस ने राष्ट्र के प्रति लोगों को जागरूक करने के मकसद से अगस्त 1947 में शुरू किया था। उस वक्त अटल बिहारी वाजपेई इसके संस्थापक संपादक बने तो जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय इसके संस्थापक प्रबंधक रहे।

राष्ट्रधर्म के बारे में बताया जाता है कि इंदिरा गांधी ने जब 1975 में देश में आपातकाल लगाया था तो इसके कार्यालय को भी सील कर दिया गया था लेकिन पत्रिका प्रकाशित होनी बंद नहीं हुई थी।

छह अप्रैल को सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से एक पत्र जारी किया गया है, जिसमें कुल 804 पत्र-पत्रिकाओं की डीएवीपी मान्यता को रद्द किया गया है, इस लिस्ट में यूपी से भी 165 पत्रिकायें शामिल हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि अक्टूबर 2016 के बाद से इन पत्रिकाओं की कॉपी पीआईबी और डीएवीपी के ऑफिस में जमा नहीं कराई गई है।

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