सरकारी स्कूलों में घटती जा रही बच्चों की संख्या

Update: 2017-04-27 14:24 GMT
सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या में कमी आ रही है।

मीनल टिंगल, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। सरकारी स्कूलों में ड्रेस, भोजन, किताबें और बस्तों के मुफ्त दिये जाने के बावजूद सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या में कमी आ रही है। वहीं छोटे से छोटे स्तर पर गली-मोहल्लों में खोले गये निजी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ रही है। संसाधन और पढ़ाई की गुणवत्ता की वजह से यह बड़ा अंतर देखा जा रहा है।

मेरिटोरियस पब्लिक स्कूल की प्रधानाचार्या रेनू सक्सेना कहती हैं, “मेरे स्कूल में बहुत कम फीस ली जाती है। यही कोई दो से ढाई सौ रुपये महीना। बच्चों के अभिभावकों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है इसलिए अक्सर इतनी फीस देने में भी परेशानी व्यक्त करते हैं और कई-कई महीने तक फीस नहीं देते हैं। लेकिन इसके बावजूद वह बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना नहीं चाहते। मेरे स्कूल में लगभग दो सौ बच्चे हैं, वहीं कुछ ही दूर सरकारी प्राथमिक स्कूल में सौ बच्चे भी नहीं हैं क्योंकि वहां पर्याप्त संसाधन नहीं हैं और पढ़ाई भी अच्छी नहीं होती है।”

देश-दुनिया से जुड़ी सभी बड़ी खबरों के लिए यहां क्लिक करके इंस्टॉल करें गाँव कनेक्शन एप

उत्तर प्रदेश में लगभग 80 हजार रजिस्टर्ड प्राइवेट स्कूल हैं। अकेले लखनऊ में लगभग 30 हजार प्राइवेट स्कूल संचालित हो रहे हैं। इन निजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने की अभिभावकों की चाहत ऐसी है कि आरटीई के तहत निजी स्कूलों में दाखिले के पहले चरण के लिए वर्ष 2017 में अब तक लगभग 8831 आवेदन लॉटरी के लिए जिलाधिकारी के पास पहुंचे। अगले दो चरणों में इनकी संख्या लगभग 35-40 हजार तक पहुंचने की संभावना है। वर्ष 2016 में भी लगभग 17 हजार आवेदन दाखिलों के लिए आये थे। यह वह बच्चे हैं जो निर्धन वर्ग के हैं और इनमें से अधिकतर के अभिभावक मजदूर, मिस्त्री, सब्जी बेचने जैसे कार्य कर रहे हैं।

सरकारी स्कूलों में बच्चों की घट रही संख्या और कम हो रही पढ़ाई की गुणवत्ता को ध्यान में रखकर 18 अगस्त, 2015 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल का आदेश आया था, जिसके तहत छह माह की अवधि में ऐसी व्यवस्था बनानी थी कि सभी सरकारी तनख्वाह पाने वाले लोगों व जन प्रतिनिधियों के बच्चों को सरकारी विद्यालयों में दाखिला लेना था। लेकिन कई समाज सेवियों द्वारा अनशन, धरने और प्रदर्शन करने के बावजूद इस व्यवस्था को सरकारी स्कूलों में लागू नहीं करवाया जा सका।

बक्शी का तालाब ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय खानपुर में प्रधानाध्यापक देवेन्द्र मिश्रा कहते हैं, “सरकारी स्कूलों से बच्चों का निजी स्कूलों में पलायन का कारण सरकारी स्कूलों में संसाधनों और शिक्षकों की कमी है। प्राइवेट स्कूलों में हर कक्षा में शिक्षक होते हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों में कई कक्षाओं को एक शिक्षक पढ़ाता है। बच्चों को सरकारी स्कूलों में रोकने के लिए सबसे पहले शिक्षकों की कमी दूर होनी चाहिये, जिससे अभिभावकों को स्कूल में बच्चों की पढ़ाई का महत्व समझ में आये।”

ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।

बच्चों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में स्कूलों तक लाया जाये इसके लिए विभाग हर संभव प्रयास कर रहा है। शिक्षकों को भी यह सुझाव दिये गये हैं कि वह बच्चों के अभिभावकों को कन्वेंस करें कि वह बच्चों को स्कूल भेजें।
महेन्द्र सिंह राणा, सहायक निदेशक मण्डलीय, बेसिक शिक्षा विभाग

‘स्कूल भेजने के नाम पर दिखावा होगा’

आरटीई के तहत अपने बच्ची आसना फरहद का दाखिला प्राइवेट स्कूल में करवाने के इच्छुक आसना के पिता कहते हैं, “मैं कपड़े की दुकान लगाता हूं। इतना पैसा नहीं है कि अपनी बच्ची को किसी अच्छे प्राइवेट स्कूल में पढ़ा सकूं। इसलिए निर्धन बच्चों के दाखिले जो सरकार प्राइवेट स्कूलों में करवा रही है, उसके लिए प्रयासरत हूं। सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने से बेहतर है कि न ही पढ़ाया जाये, क्योंकि वहां भेजने का मतलब स्कूल जाने के नाम पर दिखावा करना होगा। प्राइवेट स्कूल में कम से कम कुछ और मिले न मिले, पढ़ाई तो होगी।”

‘कई बार प्रयासों के बावजूद नहीं हुआ लागू’

समाजसेवी शरद पटेल कहते हैं, “सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर बेहद खराब है। इसी कारण कोर्ट ने सरकारी स्कूलों में सरकारी अधिकारियों के बच्चों को पढ़ाये जाने के आदेश दिये थे, जिससे स्कूलों का स्तर और पढ़ाई की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सके। लेकिन कई बार प्रयास किये जाने के बावजूद इसको लागू नहीं करवाया जा सका। जब तक यह व्यवस्था लागू नहीं होगी सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के स्तर और संसाधनों की कमी को पूरा नहीं किया जा सकेगा जो सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या कम होने की सबसे बड़ी वजह है।”

एक लाख से ऊपर ऐसे स्कूल जहां सिर्फ एक शिक्षक

लोकसभा के इस सत्र में प्रस्तुत की गयी संयुक्त जिला सूचना पद्धति की रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में 1,05,630 स्कूल ऐसे हैं, जहां केवल एक ही शिक्षक है। वर्ष 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार, 18,190 स्कूल मध्य प्रदेश, 15,669 उत्तर प्रदेश और 12,029 राजस्थान के हैं, जो पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं, जहां स्कूल में केवल एक शिक्षक है। इन स्कूलों में बच्चों की संख्या बेहद कम है।

Similar News