घाघरा की कटान में बहे घर, पानी के बीच झोपड़ी में गुजर-बसर कर रहे लोग

Update: 2017-08-03 12:32 GMT
फोटो- विनय गुप्ता

बहराइच। “पंछी का घोंसला टूट जाए तो उसको कितना दर्द होता है, मेरा घर तो तीन बार घाघरा के कटान में चला गया। सब कुछ बह गया, क्या करें, कहां जाएं समझ नहीं आता। अपनी जमीन जननी की तरह है इसलिए छोड़ें किस तरह।”

घाघरा नदी में पिछले दिनों आई बाढ़ में अपना घर खोने के बाद यह दर्द बयां किया है, बहराइच जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित गोलागंज गाँव के अर्जुन (35 वर्ष) ने। यह हाल किसी एक गाँव का नहीं है। बाढ़ से महसी, कायमपुर, कोरीपुरवा, जरमापुर, चिरयीपुरवा औरबांसगढ़ी गाँव के लगभग 1500 आशियाने घाघरा की भेंट चढ़ गए, जिसके चलते लगभग पांच हजार लोग नदी किनारे और तटबंध पर अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं।

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अर्जुन आगे बताते हैं, “सरकार ने कोई मदद नहीं की। केवल 4100 रुपए, पांच किलो चावल और दस किलो आटा दिया है, इससे इतने बड़े परिवार का पेट कब तक भर सकेगा।” हर वर्ष बारिश के मौसम में घाघरा का कहर कई घरों को तबाह कर देता है। इस वर्ष भी घाघरा ने कई घरों को तबाह किया है। छोटे-छोटे बच्चे दूध और खाने के लिए तरस रहे हैं।

कायमपुर गाँव के आसाराम (48 वर्ष) कहते हैं, “इतनी सी उम्र में बहुत बार यही सब देखने को मिला है। चार बार घाघरा ने घर काटा है। पहली बार बारह साल पहले मेरा घर मगरबर में था जो बाढ़ की कटान में समा गया। फिर कपरवल में घर बनाया तो फिर बाढ़ की कटान में बह गया। फिर सुकईपुर में बनाया तो वह भी बह गया। अब इस बार जब कायमपुर में बनाया था तो इस बार घाघरा ने वो भी काट दिया। छह बीघा जमीन थी वो भी समा गई।”

‘तीन बार कट चुका है मेरा मकान’

बहुरीलाल (42 वर्ष) कहते हैं, “गोलागंज में ही रहते हुए मेरा मकान तीन बार कट चुका है। यहां से दूर जाने की सोचते नहीं हैं, क्योंकि मेरी जो जमीन अभी घाघरा में समाई हुई है। उस पर पानी उतरने के बाद एक फसल तो हो ही जाएगी। इसी लालच में घर कटान में जाने के बाद भी झोपड़ी बनाकर तटबंध पर बस जीवन काट रहे हैं। हमने सुना है कि उन्नीस करोड़ का बजट पास है गोलागंज के लिए पर हालात बद्तर हैं। लोग कहते हैं कि सिंचाई विभाग लापरवाही कर रहा है कहता है कि धन आवंटित नहीं हुआ है। बस सुनते रहते हैं, कुछ होना नहीं है।”

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