आंकड़ेबाज़ी में उलझा किसान

Update: 2017-04-10 09:53 GMT
देश में कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या बढ़ रही है।

लखनऊ। लोकसभा में कृषि मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों को पेश करते हुए बताया गया कि जहां देश में कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या बढ़ रही है, वहीं किसानों की औसत आय भी बढ़ रही है। इस आंकड़े के मुताबिक खेती-किसानी में लोगों की संख्या 12 प्रतिशत बढ़ी है और किसानों की मासिक औसत आय 6500 हजार रुपए हो गई है। मगर इन आंकड़ों की हकीकत पर कृषि से जुड़े लोग और किसान संगठन सवाल खड़े कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के क्षेत्र गोरखपुर जिला मुख्यालय से 30 किमी दूरी पर स्थित है डांगीपार गाँव। यहां के किसान रामचंद्र राम अपने दो बेटों विनोद और रामप्रवेश के साथ में इस समय गेहूं मड़ाई कर रहे हैं। एक सप्ताह बाद उनके दोनों बेटे काम करने के लिए दिल्ली चले जाएंगे। ऐसा इसलिए कि दो तीन बीघा वाले इस किसान के खेत से इतनी पैदावार नहीं होती कि पूरे परिवार का गुजारा हो सके।

खेती किसानी से जुड़ी सभी बड़ी खबरों के लिए यहां क्लिक करके इंस्टॉल करें गाँव कनेक्शन एप

खेती से किसानों की आमदनी बढ़ रही है यह पूछने पर रामचंद्र कहते हैं ‘’कौन कहता है? पहले तो खेती से ही परिवार का गुजारा-बसर हो जाता था, लेकिन अब स्थिति यह है कि जितना अनाज पैदा होता है, उससे लागत निकलने के साथ ही कुछ महीने के राशन का इंतजाम हो जाता है। अगर दिल्ली जाकर बेटे काम न करें तो घर नहीं चल पाएगा।’’ इनका कहना है कि इनके दोनों बेटे दिल्ली में जाकर असंगठित मजदूर के रूप में काम करते हैं।

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों पर भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता धर्मेन्द्र मल्लिक ने कहा, ‘’अगर कृषिमंत्री के आंकड़ों पर विश्वास भी किया जाए तो उनके अनुसार एक किसान की औसत आमदनी 6500 हजार रुपए है, जबकि केन्द्र या राज्य सरकार के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को भी महीने में 18 से लेकर 20 हजार रुपए मिलता है। ऐसे में एक चपरासी से भी किसान से तीन गुणा ज्यादा पैसा और सुविधा पा रहा है।’’उन्होंने कहा कि कृषि मंत्रालय का आंकड़ा संदेह के घेरे

में है। क्योंकि पिछले दिनों जारी विभिन्न आंकड़े बता रहे हैं कि 5 से लेकर 6 प्रतिशत किसान खेती छोड़ रहे हैं। कृषि योग्य जमीन हर साल घट रही है। ऐसे में कृषि मंत्रालय का आंकड़ा लोगों के गले नहीं उतर रहा है। बुंदेलखंड क्षेत्र के ललिलपुर जिले के बिरधा ब्लाक के टिकरा तिवारीपुर गाँव के किसान रमेश तिवारी ने बताया,’’पिछले साल सूखा पड़ने से गेहूं और सरसों नहीं पैदा हुआ और साल कचनौंधा बांध के पानी से फसल नहीं हुई। हर साल गाँव नौजवान खेती छोड़कर मजदूरी के लिए शहर जा रहे हैं। वहीं लोग गाँव में मजबूरी में खेती कर रहे हैं, जो शहर नहीं जा पा रहे हैं।’’

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने भी कृषि मंत्रालय के आंकड़ों पर कहा कि इसमें जो बातें कहीं गईं है धरातल पर वैसा नहीं है। केन्द्र सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात करते हैं, लेकिन इसके लिए कृषि क्षेत्र में 15 प्रतिशत की विकास दर होनी चाहिए। जबकि भारत सहित किसी भी देश में कृषि की विकास दर इतनी नहीं है। तमाम सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 83 प्रतिशत किसानों की आय लगातार घट रही है।

सरकार ने किसान आय आयोग के गठन की बात की थी लेकिन उसका गठन नहीं किया गया। अगर यह आयोग बन जाता तो उससे किसान के आय बढ़ाने के तरीके और किसानों की आय सुनिश्चित किए जोन पर प्रभावी कदम उठाया जाता। यह आयोग किसानों की आय का सही आंकड़ा भी देता। उन्होंने कहा कि सरकार आंकड़ों का सहारा लेकर किसानों की स्थिति सुधरी है इसको दिखाने की कोशिश कर रही है लेकिन सच्चाई यह है कि किसान बदहाल हो रहे है।

न्यूनतम मजदूरी से भी कम

किसानों और खेती किसानी पर बारीक नजर रखने वाले योगेन्द्र यादव ने बताया ‘’ सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद सरकारी कर्मचारियों न्यूनतम प्रति माह वेतन 18,000 हो गया है। जिसका लाभ लगभग एक करोड़ सरकारी कर्मचरियों को मिल रहा है। जबकि देश की आबादी के 70 प्रतिशत किसानों की मासिक आय नेशनल सैंपल सर्वे के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर 6426 रुपए है। यानि एक किसान प्रतिदिन 107 रुपए पाता है, जो देश में लागू न्यूनतम मजदूरी 160 रुपया से भी कम है। इस तरह सरकारी कर्मचारी की न्यूनतम आय किसानों की तुलना में 54 गुना अधिक है।

ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।

Similar News