शहीदों की शहादत का गवाह इमली का यह पेड़, अंग्रेजों ने यहीं पर दी थी क्रांतिकारियों को कच्ची फांसी

Update: 2017-04-18 17:15 GMT
इमली का पेड़

लखनऊ। हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई के गवाह लखनऊ में केवल गुंबद और इमारतें ही नहीं, बल्कि इमली का यह पेड़ भी रहा है। जो गवाह है क्रांतिकारियों की फांसी का।

भारत को अंग्रेजों की कैद की जंजीरों से आजाद कराने के लिए सबने अपने-अपने तरीके से आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी। लखनऊ की फिजाओं में आज़ादी की खुशबू फैले इसके लिए क्रांतिकारियों ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था।

शहर की टीले वाली मस्ज़िद के परिसर में पीछे की तरफ एक इमली का पेड़ है। वक्त के साथ बूढ़े हो चले इस पेड़ ने कई बसंत देखे हैं। साथ ही देखा है क्रांतिकारियों का वो लाल रंग जो ब्रिटिश हुकूमत में उबाल मारता था। इसी पेड़ पर अंग्रेजों ने कई क्रांतिकारियों को फांसी दी थी।

क्यों है इस पेड़ का महत्व

साल 1857 में आजादी की चिंगारी मेरठ से लखनऊ तक पहुंच गई। रेजीडेंसी में मौजूद सर हेनरी लॉरेंस ने क्रांतिकारियों से लोहा लिया, लेकिन उनके तेवर देखकर उन्होंने अपने पैर पीछे खींच लिए। ब्रिटिश हुकूमत बुरी तरह हिल गई। इसके बाद सर हेनरी हैवलॉक और जेम्स आउट्रम कानपुर से लखनऊ के ब्रिटिश अधिकारियों के लिए राहत सेना लेकर आए।

सेना रेजीडेंसी के साथ लखनऊ के पक्का पुल के पास बनी शाह पीर मोहम्मद की दरगाह में घुस गई। इसे टीले वाली मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। वहां उन्होंने आज़ादी के दीवानों को मस्जिद के पीछे लगे इसी इमली के पेड़ पर कच्ची फांसी पर लटका दिया था।

क्या होती है कच्ची फांसी

कच्ची फांसी को सबसे दर्दनाक फांसी की कैटेगरी में रखा गया है। इसमें अभियुक्त को रस्सी के सहारे तब तक लटकाया जाता है जब तक उसका शरीर खुद गल कर नष्ट न हो जाए।

किन लोगों को हुई थी फांसी

1857 की क्रांति के शहीदों की लिस्ट वैसे तो काफी लंबी है। इनमें कुछ के नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं, तो कुछ गुमनामी के अंधेरे में शहीद हो गए। कच्ची फांसी से शहीद होने वालों में मौलवी रसूल बख्श, हाफिज अब्दुल समद, मीर अब्बास, मीर कासिम अली और मम्मू खान के नाम प्रमुख हैं। इनके अलावा आजादी के 35 और क्रांतिकारियों को यहां फांसी दी गई थी।

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