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माँ की याद में शुरू हुई केले की खेती, 400+ किस्मों तक पहुँचा सपना
माँ की याद में शुरू हुई केले की खेती, 400+ किस्मों तक पहुँचा सपना

By Gaon Connection

केरल के तिरुवनंतपुरम ज़िले के परसाला गाँव में एक ऐसा खेत है, जहाँ केला सिर्फ फसल नहीं बल्कि संस्कृति, स्मृति और संरक्षण का प्रतीक है। कभी कोच्चि में वेब डिजाइनिंग कंपनी चलाने वाले विनोद सहदेवन नायर ने माँ के निधन के बाद कॉर्पोरेट दुनिया छोड़कर खेती को अपनाया। आज उनके खेत में भारत ही नहीं, दुनिया भर से लाई गई 400 से ज़्यादा केले की दुर्लभ किस्में उग रही हैं।

केरल के तिरुवनंतपुरम ज़िले के परसाला गाँव में एक ऐसा खेत है, जहाँ केला सिर्फ फसल नहीं बल्कि संस्कृति, स्मृति और संरक्षण का प्रतीक है। कभी कोच्चि में वेब डिजाइनिंग कंपनी चलाने वाले विनोद सहदेवन नायर ने माँ के निधन के बाद कॉर्पोरेट दुनिया छोड़कर खेती को अपनाया। आज उनके खेत में भारत ही नहीं, दुनिया भर से लाई गई 400 से ज़्यादा केले की दुर्लभ किस्में उग रही हैं।

जहाँ लोग रिटायर होकर आराम ढूंढते हैं, वहाँ जगत सिंह ने जंगल उगा दिया
जहाँ लोग रिटायर होकर आराम ढूंढते हैं, वहाँ जगत सिंह ने जंगल उगा दिया

By Gaon Connection

रुद्रप्रयाग के एक छोटे से गाँव में, एक BSF जवान ने एक महिला की दर्दनाक मौत को सिर्फ याद नहीं रखा, उसने उसे बदलाव की जड़ बना दिया। सेवानिवृत्ति के बाद जहाँ लोग आराम की तलाश करते हैं, वहीं जगत सिंह चौधरी, जिन्हें लोग प्यार से ‘जंगली दादा’ कहते हैं, ने अपनी बंजर ज़मीन पर जंगल उगा दिया।

रुद्रप्रयाग के एक छोटे से गाँव में, एक BSF जवान ने एक महिला की दर्दनाक मौत को सिर्फ याद नहीं रखा, उसने उसे बदलाव की जड़ बना दिया। सेवानिवृत्ति के बाद जहाँ लोग आराम की तलाश करते हैं, वहीं जगत सिंह चौधरी, जिन्हें लोग प्यार से ‘जंगली दादा’ कहते हैं, ने अपनी बंजर ज़मीन पर जंगल उगा दिया।

छुप-छुप कर भजन सुनने वाली गीता पराग, आज तीन पीढ़ियों के साथ गाती हैं कबीर वाणी
छुप-छुप कर भजन सुनने वाली गीता पराग, आज तीन पीढ़ियों के साथ गाती हैं कबीर वाणी

मध्य प्रदेश के देवास ज़िले के एक छोटे से गाँव बिसलखेड़ी में रहने वाली गीता पराग की ज़िंदगी कभी घूंघट, डर और बंदिशों में सिमटी थी। छुप-छुप कर भजन सुनने वाली यह महिला आज निर्गुण संत कबीर की वाणी को खड़ताल और तम्बूर के साथ दुनिया के सामने गा रही हैं।

मध्य प्रदेश के देवास ज़िले के एक छोटे से गाँव बिसलखेड़ी में रहने वाली गीता पराग की ज़िंदगी कभी घूंघट, डर और बंदिशों में सिमटी थी। छुप-छुप कर भजन सुनने वाली यह महिला आज निर्गुण संत कबीर की वाणी को खड़ताल और तम्बूर के साथ दुनिया के सामने गा रही हैं।

महिलाओं की परेशानी से शुरू हुई जंगल उगाने की यात्रा
4:35
महिलाओं की परेशानी से शुरू हुई जंगल उगाने की यात्रा

By Gaon Connection

40 साल पहले रुद्रप्रयाग के कोटमल्ला गाँव में एक दर्दनाक घटना हुई, एक महिला घने जंगल से लकड़ी और चारा लाते हुए फिसलकर गिर गई और उसकी मौत हो गई। तभी BSF जवान जगत सिंह के मन में एक संकल्प जन्मा- "अगर जंगल गाँव के पास होगा, तो किसी महिला को चारा और लकड़ी के लिए दूर नहीं जाना पड़ेगा। दर्द, डर और जान का खतरा - सब खत्म हो जाएगा।" यही सोच लेकर रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपनी 1.5 हेक्टेयर बंजर ज़मीन को जंगल में बदलने की कसम खाई।

40 साल पहले रुद्रप्रयाग के कोटमल्ला गाँव में एक दर्दनाक घटना हुई, एक महिला घने जंगल से लकड़ी और चारा लाते हुए फिसलकर गिर गई और उसकी मौत हो गई। तभी BSF जवान जगत सिंह के मन में एक संकल्प जन्मा- "अगर जंगल गाँव के पास होगा, तो किसी महिला को चारा और लकड़ी के लिए दूर नहीं जाना पड़ेगा। दर्द, डर और जान का खतरा - सब खत्म हो जाएगा।" यही सोच लेकर रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपनी 1.5 हेक्टेयर बंजर ज़मीन को जंगल में बदलने की कसम खाई।

बिना बिजली-बिना गैस; जनक पलटा का प्रकृति वाला घर
4:48
बिना बिजली-बिना गैस; जनक पलटा का प्रकृति वाला घर

मध्य प्रदेश में एक ऐसा घर है जहाँ ना बिजली का बिल लगता है, न गैस सिलिंडर आता है, ना कोई प्रदूषण होता है। ये है जनक पलटा मैकगिलिगन का ‘सस्टेनेबल होम’ ।

मध्य प्रदेश में एक ऐसा घर है जहाँ ना बिजली का बिल लगता है, न गैस सिलिंडर आता है, ना कोई प्रदूषण होता है। ये है जनक पलटा मैकगिलिगन का ‘सस्टेनेबल होम’ ।

समाज की बंदिशों को तोड़ आगे बढ़ रहे पंजाब के लड़के
समाज की बंदिशों को तोड़ आगे बढ़ रहे पंजाब के लड़के

By Divendra Singh

कला को जेंडर में बाँटने का काम समाज सदियों से करता आया है, लेकिन पंजाब के कुछ लड़कों ने इन बंदिशों को तोड़कर दिखा दिया, कला की कोई सीमा नहीं होती, बस साहस होना चाहिए।

कला को जेंडर में बाँटने का काम समाज सदियों से करता आया है, लेकिन पंजाब के कुछ लड़कों ने इन बंदिशों को तोड़कर दिखा दिया, कला की कोई सीमा नहीं होती, बस साहस होना चाहिए।

कहानी बीजों की, मिट्टी की और एक किसान की जिसने भविष्य को बचाने की ठान ली
कहानी बीजों की, मिट्टी की और एक किसान की जिसने भविष्य को बचाने की ठान ली

By Gaon Connection

जब सिक्कों के बजाए “बीजों की गुल्लक” भरने वाला किसान बने देश की असली धरोहर। मध्य प्रदेश के गाँव में बाबूलाल दहिया ने जो दास्तान लिखी है, वो सिर्फ कृषि की नहीं, पहचान, संस्कृति और भविष्य की है। जानिए कैसे एक छोटे से सीड बैंक ने हज़ारों बीजों, बीत चुके वक़्त और आने वाली पीढ़ियों की ज़रूरतों को संजो रखा है।

जब सिक्कों के बजाए “बीजों की गुल्लक” भरने वाला किसान बने देश की असली धरोहर। मध्य प्रदेश के गाँव में बाबूलाल दहिया ने जो दास्तान लिखी है, वो सिर्फ कृषि की नहीं, पहचान, संस्कृति और भविष्य की है। जानिए कैसे एक छोटे से सीड बैंक ने हज़ारों बीजों, बीत चुके वक़्त और आने वाली पीढ़ियों की ज़रूरतों को संजो रखा है।

जंगल जैसा खेत: 1000 पेड़-पौधों के साथ खेती का नया मॉडल
जंगल जैसा खेत: 1000 पेड़-पौधों के साथ खेती का नया मॉडल

By Gaon Connection

मेहसाणा के लुनासन गाँव में एक किसान ने खेती को जंगल में बदल दिया और जंगल की तरह खेती को। अमोल खडसरे ने पर्माकल्चर मॉडल अपनाते हुए 1000 से अधिक पेड़-पौधों, औषधियों, सब्जियों और जंगली घासों को एक साथ उगाया, बिना केमिकल, बिना तनाव और बिना अत्यधिक पानी के। आज उनका खेत सिर्फ कृषि उत्पादन नहीं, बल्कि एक जीवित इकोसिस्टम है

मेहसाणा के लुनासन गाँव में एक किसान ने खेती को जंगल में बदल दिया और जंगल की तरह खेती को। अमोल खडसरे ने पर्माकल्चर मॉडल अपनाते हुए 1000 से अधिक पेड़-पौधों, औषधियों, सब्जियों और जंगली घासों को एक साथ उगाया, बिना केमिकल, बिना तनाव और बिना अत्यधिक पानी के। आज उनका खेत सिर्फ कृषि उत्पादन नहीं, बल्कि एक जीवित इकोसिस्टम है

कुड़ुख भाषा को गीतों में बुनकर बचा रहीं दो आदिवासी बहनें
कुड़ुख भाषा को गीतों में बुनकर बचा रहीं दो आदिवासी बहनें

By Divendra Singh

दो आदिवासी बहनें जब मंच पर गाती हैं, तो उनकी आवाज़ सिर्फ संगीत नहीं, संस्कृति की पुकार बन जाती है। उनके गीत पूरे आदिवासी समाज से पूछते हैं कि क्या हम अपनी जड़ों, अपनी पहचान और अपनी कुड़ुख भाषा से दूर जाते जा रहे हैं?

दो आदिवासी बहनें जब मंच पर गाती हैं, तो उनकी आवाज़ सिर्फ संगीत नहीं, संस्कृति की पुकार बन जाती है। उनके गीत पूरे आदिवासी समाज से पूछते हैं कि क्या हम अपनी जड़ों, अपनी पहचान और अपनी कुड़ुख भाषा से दूर जाते जा रहे हैं?

63,000 महिलाओं की कमाई, आत्मनिर्भरता और सम्मान: बलिनी का जादू
63,000 महिलाओं की कमाई, आत्मनिर्भरता और सम्मान: बलिनी का जादू

By Gaon Connection

बुंदेलखंड की सूखी ज़मीन से उगी है एक ऐसी कहानी जिसने हजारों महिलाओं की ज़िंदगी बदल दी। 2019 में शुरू हुई बलिनी मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी आज 63,000 से ज़्यादा महिलाओं को रोज़गार, आत्मनिर्भरता और सम्मान दे रही है और पूरे क्षेत्र की आर्थिक तस्वीर बदल रही है।

बुंदेलखंड की सूखी ज़मीन से उगी है एक ऐसी कहानी जिसने हजारों महिलाओं की ज़िंदगी बदल दी। 2019 में शुरू हुई बलिनी मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी आज 63,000 से ज़्यादा महिलाओं को रोज़गार, आत्मनिर्भरता और सम्मान दे रही है और पूरे क्षेत्र की आर्थिक तस्वीर बदल रही है।

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