ओबामा सरकार से भारत की गहरी दोस्ती का इस तरह हो रहा है फायदा

गाँव कनेक्शन | Jul 26, 2017, 08:02 IST
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प्रभुनाथ शुक्ल

अमेरिकी सरकार ने पाकिस्तान को दुनियाभर में दहशतगर्दी और आतंक फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए आतंक की फसल उगाने वाले देशों की सूची में डाल दिया है। अमेरिका की इस कार्रवाई के बाद पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बेनकाब हुआ है। अब यह साबित हो गया है कि भारत, अफगानितस्तान और दूसरे देशों में फैला आतंकी जाल उसकी साजिश है। सवाल यह है कि पाकिस्तान पर क्या इस कार्रवाई से कोई फर्क पड़ने वाला है। पड़ोसी मुल्कों में आतंक की आपूर्ति नीति पर क्या वह प्रतिबंध लगाएगा, उसके नजरिए में क्या कोई बदलाव आएगा। लेकिन भारत ने एक बड़ी कूटनीतिक जीत हासिल की है।

पूर्व की ओबामा सरकार से भारत की गहरी दोस्ती का आकार अब बड़ा होने लगा है। जिसकी वजह से चीन और पाकिस्तान की जमीन हिलने लगी है। पाकिस्तान की धरती पर लश्कर, जैश-ए-मोहम्मद और हक्कानी नेटवर्क के दिन लदने वाले हैं, क्योंकि अमेरिकी सीनेट ने पाकिस्तान को मिलने वाली सैन्य मदद पर शर्तों के साथ प्रतिबंध लगा दिया है, वहीं भारत के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए विधेयक पारित किया है। यह दोनों देशों के संबंधों के बीच कूटनीतिक जीत है।

भारत-अमेरिका के बीच मजबूत होते रिश्तों ने एक मिसाल कायम की है। नवाज सरकार को साफ शब्दों में कहा गया है कि आतंक पर दोहरी नीति नहीं चलेगी। पाकिस्तान को अपनी धरती से आतंकी शिविरों को हर हाल में नष्ट करना होगा। अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य मदद पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। ट्रंप सरकार ने साफ कहा है कि आतंक के खात्मे के लिए उससे जो उम्मीद की गई थी, वह पूरी तरफ उस पर खरा नहीं उतरा। हक्कानी नेटवर्क पर वह प्रतिबंध नहीं लगा पाया।

अमेरिका ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के संरक्षण में लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों के शिविरों को भी बंद करने का ऐलान किया है। पाकिस्तान को मिलने वाले करोड़ों के रक्षा बजट में तीन संशोधन किए गए हैं। यह प्रस्ताव 81 के मुकाबले 344 मतों से पारित हुआ। भारत के लिए यह बड़ी जीत है। अमेरिका ने 2571 करोड़ की सैन्य मदद पर शर्तों के साथ रोक लगाई है। यह मदद 2017-18 के लिए दी जानी थी। इसके पहले भी 2016 में 30 करोड़ की सैन्य मदद पर प्रतिबंध लगाने के साथ 8 एफ-16 विमानों की सस्ती खरीद पर भी रोक लगा चुका है। इसके बावजूद पाकिस्तान का आतंक प्रेम कम नहीं हो रहा।

इस वर्ष पाकिस्तान को 90 करोड़ डाॅलर की सहायता मिलनी थी, जिसमें पाकिस्तान 55 करोड़ डाॅलर हासिल कर चुका है, लेकिन प्रतिबंध के बाद बाकी राशि नहीं दी जाएगी। हक्कानी नेटवर्क की स्थापना मौलवी जलालुद्दीन ने की थी। यह पूरी तरफ आतंकी संगठन है, जो अफगानिस्तान और भारत के खिलाफ यह काम करता है। जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, तालिबान जैसे आतंकी संगठनों को पाकिस्तान में खुलेआम ट्रेनिंग दी जाती है। पड़ोसी मुल्कों में हमले करने के लिए आतंकियों को फंड भी उपलब्ध कराया जाता है। अमेरिका ने साफ कहा है कि पाकिस्तान आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह और स्वर्ग साबित हो रहा है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान अपनी आदतों में सुधार लाएगा। आतंकी घोषित होने के बाद भी सैयद सलाहुद्दीन ने पाकिस्तान टेलीविजन पर खुलेआम भारत में आतंकी विस्फोट करने की धमकी दी, जिसके बाद अमरनाथ यात्रियों पर हमला हुआ।

पाकिस्तान की अंधी नवाज शरीफ सरकार को यह साफ क्यों नहीं दिखाई देता? फिर यह कैसे मान लिया जाए कि अमेरिका द्वारा आतंकी देश घोषित किए जाने के बाद पाकिस्तान की धरती से चलाए जा रहे सीमा पार आतंकवाद पर रोक लगेगी? अमेरिकी कांग्रेस की सालाना रिपोर्ट ‘कंट्री रिपोर्ट ऑन टेररिज्म’ में कहा गया है कि पाकिस्तान ने तालिबान या हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। 2016 में पठानकोट हमले के बाद पाकिस्तानी टीम भारत गई थी। इस हमले में जैश-ए-मोहम्मद का हाथ था, लेकिन पाकिस्तान ने कोई कार्रवाई नहीं की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के बाद दोनों महाशक्तियों के बीच कूटनीतिक रिश्तों में अहम बदलाव आए हैं। पाकिस्तान में पनाह लिए सैयद सलाहुद्दीन को आतंकी घोषित करना भारत के संबंधों में विश्वास की पहली सीढ़ी साबित हुई। दूसरी तरफ चीन को बड़ा झटका भी लगा है, क्योंकि हाफिज सईद के मसले पर वह वीटो का प्रयोग करता रहा है। जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने बिल्कुल साफ कहा है कि कश्मीर में अलगाववादी ताकतों को बढ़ावा देने में चीन का हाथ साफ नजर आ रहा है, क्योंकि आतंकी हमलों के बाद मिलने वाले आधुनिक हथियार चीन के बने होते हैं। कश्मीर को अस्थिर करने की एक सोची समझी रणनीति है, इसे भारत विरोधी ताकतें मंजिल तक पहुंचा रही हैं।

पत्थरबाज वही हैं, जिन्हें पाकिस्तान और आतंकी संगठनों की तरफ से कुछ कागज के टुकड़े दिए जाते हैं और उसी की बिसात पर सैनिकों पर हमले किए जाते हैं। एक तरफ अमेरिका ने पाकिस्तान को सैन्य मदद देने पर जहां शर्ते लगा दी है, वहीं दूसरी तरफ भारत के साथ रक्षा बजट बढ़ाने के लिए सीनेट ने 621.5 अरब डालर का रक्षा विधेयक पास किया है। उपलब्ध कराई गई इस राशि के जरिए भारत और अमेरिका सुरक्षा मसलों पर एक साथ मिलकर काम करेंगे।

ट्रंप और मोदी की यह नीति दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते दबदबे पर लगाम लगाने में कामयाब होगी। इन्हीं सब कारणों से चीन घबराया हुआ है और वह कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान के साथ खड़ा है। कश्मीर पर पंचायत करने की बात भी उसकी नीति का हिस्सा थी। वह अलगाववादियों को मदद पहुंचा रहा है और भारत, तिब्बत की सीमा पर सड़क बनाने की जिद पर अड़ा है। लेकिन भारत की तरफ से कड़ा प्रतिरोध जताया गया है। हाल में मालबार तट पर अमेरिका, जापान और भारत की तरफ से किया गया संयुक्त सैन्य अभ्यास पाकिस्तान और पड़ोसी चीन के लिए कड़ा संदेश है।

आतंकवाद भारत के लिए बड़ी चुनौती है। भारत पूरी मजबूती से आतंक के खिलाफ लड़ रहा है, लेकिन जब तब वैश्वि स्तर पर एंटी टेररिज्म नीति नहीं बनेगी, तब तक आतंकवाद पर लगाम लगाना बेहद मुश्किल है। वैश्विक स्तर पर अलग से एंटी टेररिज्म सेल गठित होने चाहिए और देशों को आपस में खुफिया जानकारी हासिल करनी चाहिए। सिर्फ प्रतिबंध लगाने से कुछ होने वाला नहीं है, क्योंकि दुनिया में इस्लाम के नाम पर जेहादी तैयार किए जा रहे हैं। जहां युवाओं को धर्म की घुट्टी पिलाकर आतंकी बनाया जा रहा है।

इस मिथक को तोड़ना होगा। आतंक के खिलाफ जब पूरी दुनिया एक साथ खड़ी होगी तभी बात बनेगी। आतंकवाद ने एक-एक कर दुनिया के सभी बड़े मुल्कों को निशाना बनाया है। इस्लामिक देशों में इसका हाल किसी से छुपा नहीं है। इराक ने मोसुल को आईएस के चंगुल से कैसे मुक्त कराया, यह किसी से छिपा नहीं है। दुनिया को अपनी नीति में बदलाव लाना होगा। तभी इस समस्या का हल निकल सकता है। हलांकि अमेरिका ने भारत के साथ मिलकर यह शुरुआत कर दी है और यह शुभ संकेत है। अमेरिका और भारत के साथ दुनिया के मुल्कों को एक मंच पर आना चाहिए, क्योंकि आतंकवाद से सभी देश पीड़ित हैं।

( यह लेखक के निजी विचार हैं।)



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