दिल्ली की देहरी : कपूर खानदान का दिल्ली से नाता

Nalin Chauhan | Oct 04, 2017, 14:05 IST
Delhi
देश में संविधान के लागू होने के बाद जब दिल्ली के संसद भवन से दो सदनीय संसदीय प्रणाली लागू हुई तो वर्ष 1952 में रंगमंच-सिने अभिनेता पृथ्वीराज कपूर सहित शिक्षाविद डॉ. जाकिर हुसैन, वैज्ञानिक डॉ. सत्येंद नाथ बोस, कवि मैथिलीशरण गुप्त को पहली बार राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया।

पृथ्वीराज कपूर उच्च सदन के लिए मनोनीत होने वाले पहले अभिनेता थे। इतना ही नहीं, वे दो बार (वर्ष 1952 में दो साल के लिए और फिर वर्ष 1954 में पूर्ण काल के लिए) राज्यसभा के सदस्य रहे। पृथ्वीराज ने पहली बार सदन में पहुँचने पर कहा, "हम बेशक आसमान में उड़ रहे हो पर हमारा जमीन से नाता नहीं टूटना चाहिए। पर अगर हम अर्थशास्त्र और राजनीति की जरूरत से ज्यादा पढ़ाई करते हैं तो जमीन से हमारा नाता टूटने लग जाता है, हमारी आत्मा प्यासी होकर तन्हां हो जाती है। हमारे राजनीतिक मित्रों को उसी प्यासी आत्मा की स्थिति से सुरक्षित रखने और बचाने की जरूरत है और इस उद्देश्य के लिए शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, कवियों, लेखकों और कलाकारों के रूप में नामित सदस्य यहाँ (राज्यसभा) उपस्थित हैं।''

राज्यसभा सचिवालय की ओर से प्रकाशित "राज्य सभा के नामांकित सदस्य पुस्तिका'' के अनुसार, एक थिएटर कलाकार और सिने अभिनेता के रूप में अपने उत्कृष्ट योगदान के लिए राज्यसभा के सदस्य के रूप में नामित पृथ्वीराज कपूर ने सदन के पटल पर नामजद सदस्यों (जिसका संदर्भ मैथिलीशरण गुप्त का था) के अपने आकाओं के विचारों को व्यक्त करने के आरोप का खंडन करते हुए कहा, "जब यहां अंग्रेजों का राज था और जनता पर दमिश्क की तलवार लटक रही थी तब मैथिलीशरण गुप्त जैसे क्रांतिकारी थे, जिनमें भारत भारती लिखने का साहस था। ऐसे में, उस समय हिम्मत करने वाले निश्चित रूप से आज अपने मालिकों के समक्ष नहीं नत मस्तक होंगे। वे (नामजद सदस्य) तर्क और प्रेम के सामने झुकेंगे और न कि किसी और के सामने।"

इस तरह, पृथ्वीराज कपूर ने देश की राजधानी दिल्ली में संसद के उच्च सदन में एक कलाकार की ओर से नामित सदस्यों की भूमिका के बारे में दी गई बेहतरीन दार्शनिक व्याख्या न केवल अपने नामांकन बल्कि इस विषय में हमारे गणराज्य के संस्थापक सदस्यों के दृष्टिकोण को भी न्यायसंगत साबित कर दिया।

उनके साथ कंस्टीट्यूशन हाउस में रहे वीएन कक्कड़ आत्म-संस्मरणों वाली पुस्तक "ओवर ए कप ऑफ कॉफ़ी'' में बताते हैं, पृथ्वीराज ने उन्हें एक बार कहा कि, "मुझे वास्तव में नहीं पता कि मुझे राज्यसभा में क्या करना चाहिए। मेरे लिए मुगल-ए-आजम फिल्म में अभिनय करना राज्यसभा में एक सांसद की भूमिका निभाने से आसान था। भगवान जाने पंडित जी (जवाहर लाल नेहरु) ने मुझमें क्या देखा। लेकिन जब भी मैं दिल्ली में रहूंगा और राज्यसभा का सत्र होगा तो मैं निश्चय ही उसमें भाग लूंगा।''

नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के प्रकाशन "थिएटर के सरताज पृथ्वीराज'' में योगराज लिखते है कि जब पृथ्वीराज राज्यसभा में अपने नामांकन को लेकर दो-मन थे। बकौल पृथ्वीराज, "थिएटर की भलाई और राज्यसभा की व्यस्तताएं, पर क्या किया जाए! मुझे इन परिस्थितियों का मुकाबला तो करना होगा। थिएटर को भी जिंदा रखना है और सरकार के इस सम्मान को भी निभाना है। दूसरा कोई चारा नहीं है चलो थिएटर की सलामती के लिए और बेहतर लड़ाई लड़नी होगी।''

पृथ्वीराज ने देश की सांस्कृतिक एकता के अनिवार्य तत्व को रेखांकित करते हुए 15 जुलाई 1952 को नई दिल्ली में राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान एक राष्ट्रीय थिएटर के गठन का सुझाव दिया था। जिसके माध्यम से विभिन्न संप्रदायों और भिन्न-भिन्न भाषाएं बोलने वाले व्यक्तियों को एक साथ लाने और एक समान मंच साझा करने तथा उचित व्यवहार सीखने के अवसर प्रदान किए जा सकें। 60 के दशक के आरंभ में कांस्टीट्यूशन हाउस, कस्तूरबा गांधी मार्ग पर होता था, जहां पृथ्वीराज शुरू में बतौर राज्यसभा सांसद रहें। वैसे बाद में वे अपने कार्यकाल के अधिकतर समय में इंडिया गेट के पास प्रिंसेस पार्क में रहे।

पृथ्वीराज कपूर के लिए दिल्ली को पराया-अनजाना शहर नहीं थी। बीसवीं शताब्दी के तीसरे और चौथे दशक के शुरू के वर्षों में पृथ्वीराज कनॉट प्लेस के कई थिएटरों में मंचित अनेक नाटकों में अपने अभिनय का जलवा बिखेर चुके थे। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि उस दौर में दिल्ली में नाटक करने के लिए कोई ढंग का आधुनिक प्रेक्षागृह नहीं था। हिंदी सिनेमा के सितारे बन चुके पृथ्वीराज ने कनॉट प्लेस के सिनेमाघरों में कई नाटकों का प्रदर्शन किया।

पुस्तक "थिएटर के सरताज:पृथ्वीराज" बताती है, "इसी बीच पृथ्वीराज कपूर अपना थिएटर लेकर दिल्ली आए। उन दिनों उनके तीन नाटक बहुत चर्चित थे-"शकुन्तला", "दीवार" और "पठान"। ये तीनों नाटक अपनी-अपनी जगह लोगों की खूब वाह-वाही ले रहे थे।

हिंदी सिनेमा के शीर्ष अभिनेता अमिताभ बच्चन ने एक इंटरव्यू में बताया था कि 'चीनी कम' फिल्म के सेट पर वरिष्ठ अभिनेत्री ज़ोहरा सहगल हमेशा सबको बड़े प्यार से पुरानी कहानियां सुनाया करती थीं। ज़ोहरा के साथ अपने करीबी संबंधों का ज़िक्र करते हुए अमिताभ बताते हैं, "ज़ोहरा जी, पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थिएटर से जुड़ी थीं और पृथ्वीराज कपूर का मेरे पिता से बहुत करीबी रिश्ता था। जब भी पृथ्वीराज जी अपने नाटक के सिलसिले में इलाहाबाद आते, तो वहां हम सबकी ज़ोहरा जी से ज़रूर मुलाकात होती।"

उल्लेखनीय है कि पृथ्वी थियेटर और इप्टा के साथ अभिनय की यात्रा शुरू करने वाली जोहरा सहगल एक पारंपरिक मुस्लिम परिवार में पैदा हुई थी। पृथ्वीराज कपूर को पिता का दर्जा देने वाली जोहरा सहगल ने 14 साल तक पृथ्वी थियेटर के साथ काम किया। एक्टिंग को अपना पहला प्यार मानने वालीं जोहरा अल्मोड़ा में स्थापित उदय शंकर डांस एकेडमी का हिस्सा थीं। उन्होंने इंग्लैंड के कई मशहूर टीवी सीरियलों के अलावा बॉलीवुड की भी कई फिल्मों में काम किया।

पेंगुइन से प्रकाशित रंजना सेनगुप्ता की पुस्तक "डेल्ही मेट्रोपालिटिनःद मेकिंग आफ एन अनलाइकली सिटी" में कनाट प्लेस में पले-बढ़े मनीष सहाय अपने बीते समय को याद करते हुए बताते हैं कि उन्होंने पृथ्वीराज कपूर को रीगल थिएटर और रिवोली में नाट्य प्रदर्शन करते हुए देखा। उल्लेखनीय है कि रीगल एक ऐसा सिनेमाघर था जिसमें नाटक और फिल्में दोनों दिखाए जाते थे। इसका स्थापत्य-बाक्स, ग्रीन रूम और विंग्स, इसके इतिहास का पता देते हैं।

इस इमारत में एक ही छत के नीचे रीगल सिनेमा हॉल, दुकानें, और रेस्तरां मौजूद थे। रीगल का स्वरूप रंगमंच और सिनेमा को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था। गौरतलब है कि पहले कनाट प्लेस के रीगल सिनेमा में रूसी बैले, उर्दू नाटक और मूक फिल्में दिखाई जाती थीं। आज़ादी से पूर्व उस दौर में, यहां समाज के उच्च वर्ग का तबका, जिनमें अंग्रेज़ अधिकारी और भारतीय रजवाड़ों के परिवार हुआ करते थे, नाट्य प्रस्तुति देखने आया करता था।

वर्ष 1954 में नई दिल्ली स्थित संगीत नाटक अकादमी के 'रत्न सदस्यता सम्मान' से सम्मानित होने के बावजूद उन्होंने पृथ्वी थिएटर के लिए किसी भी तरह की सरकारी सहायता लेने से इंकार कर दिया था।

संगीत नाटक अकादेमी की ओर से 27 फरवरी 1955 को नयी दिल्ली की नेशनल फिजिकल लेब्रोटरी में आयोजित देश के पहले "फिल्म सेमीनार" के निदेशक के रूप में पृथ्वीराज कपूर ने कहा कि फिल्म कलाकार को मन से इस बात को महसूस करना चाहिए कि वह फिल्म उद्योग का सबसे महत्वपूर्ण अंग है और उसे अपने उस दायित्व को निभाने में सक्षम बनने के लिए अवश्य प्रार्थना और कार्य करना चाहिए। कलाकार को अपने दायित्व की अनुभूति को समझना चाहिए। वह समूचे उद्योग का चेहरा बदल सकता है। उसे यह बात समझते हुए काम करना चाहिए।

उन्होंने राज्यसभा के सदस्य के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मंचीय कलाकारों के कामकाज की स्थिति को सुधारने के लिए कड़ी मेहनत की। इसी का नतीजा था कि वे मंचीय कलाकारों के लिए रेल किराए में 75 प्रतिशत की रियायत प्राप्त करने में सफल रहे।

उनकी पोती और पृथ्वी थिएटर को दोबारा सँभालने वाली संजना कपूर के अनुसार, "मेरे दादा के कारण ही आज हम 25 प्रतिशत रेल किराए में पूरे देश भर में यात्रा करने में सक्षम हैं अन्यथा हम अपना अस्तित्व ही नहीं बचा पाते।" इतना ही नहीं, पृथ्वीराज कपूर दिल्ली स्थित ऑल इंडिया रेलवे यूनियन के अध्यक्ष रहे और विश्व शांति कमेटी के भारतीय चेयरमैन भी।

प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन अपनी आत्मकथा "दशद्वार से सोपान तक" में लिखते हैं, "हिंदी शेक्सपियर मंच की ओर से 18, 19, 20 दिसम्बर 1958 को नयी दिल्ली के फाइन आर्ट्स थियेटर में मैकबेथ रंगमंच पर प्रस्तुत हुआ। पंडितजी (नेहरूजी), जैसा कि उन्होंने वादा किया था, पहले ही दिन नाटक देखने के आये, साथ इन्दुजी (इंदिरा गाँधी) भी आयीं और वे पूरे समय तक बैठे रहे। नाटक देखकर जब पंडितजी ने कहा, ए रिमार्केबिल एचीवमेंट, तो जैसे हमारा सब श्रम सफल हो गया। अंतिम दिन प्रख्यात फिल्म-फनकार और नाट्य अभिनेता पृथ्वीराज कपूर ने नाटक देखा और कहा ए न्यू एंड प्रेजवर्दी वेंचर (नया और सराहनीय प्रयास)।"

इससे पता चलता है कि पृथ्वीराज न केवल स्तरीय रंगमंच करते थे बल्कि उसको बढ़ावा देने में भी पीछे नहीं थे। इतना ही नहीं, पृथ्वीराज हरिवंशराय बच्चन की कविताओं के भी ज़बर्दस्त प्रशंसक थे। मधुशाला के कवि के पुत्र शीर्ष सिने अभिनेता अमिताभ बच्चन ने कपूर और बच्चन परिवार के बीच संबंधों के बारे में अपने ब्लॉग में स्पष्ट लिखा है कि दोनों परिवारों के बीच आपसी सम्मान का जो रिश्ता उनके पिता हरिवंश राय बच्चन और पृथ्वीराज कपूर के समय में बना था वह आज भी चला आ रहा है।

हिंदी फिल्मों में सम्मोहित अभिनय और रंगमंच को नई दिशा देने वाले पृथ्वीराज का 29 मई, 1972 को निधन हुआ। उन्हें मरणोपरांत सिनेमा जगत के सबसे बड़े सम्मान दादा साहब फाल्के (वर्ष 1971) से सम्मानित किया गया, उनके लिए यह सम्मान राज कपूर ने ग्रहण किया। वे मरणोपरांत इस सम्मान से सम्मानित होने वाले पहले अभिनेता थे।

    Follow us
    Contact
    • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
    • neelesh@gaonconnection.com

    © 2025 All Rights Reserved.