0

माँ की याद में शुरू हुई केले की खेती, 400+ किस्मों तक पहुँचा सपना
माँ की याद में शुरू हुई केले की खेती, 400+ किस्मों तक पहुँचा सपना

By Gaon Connection

केरल के तिरुवनंतपुरम ज़िले के परसाला गाँव में एक ऐसा खेत है, जहाँ केला सिर्फ फसल नहीं बल्कि संस्कृति, स्मृति और संरक्षण का प्रतीक है। कभी कोच्चि में वेब डिजाइनिंग कंपनी चलाने वाले विनोद सहदेवन नायर ने माँ के निधन के बाद कॉर्पोरेट दुनिया छोड़कर खेती को अपनाया। आज उनके खेत में भारत ही नहीं, दुनिया भर से लाई गई 400 से ज़्यादा केले की दुर्लभ किस्में उग रही हैं।

केरल के तिरुवनंतपुरम ज़िले के परसाला गाँव में एक ऐसा खेत है, जहाँ केला सिर्फ फसल नहीं बल्कि संस्कृति, स्मृति और संरक्षण का प्रतीक है। कभी कोच्चि में वेब डिजाइनिंग कंपनी चलाने वाले विनोद सहदेवन नायर ने माँ के निधन के बाद कॉर्पोरेट दुनिया छोड़कर खेती को अपनाया। आज उनके खेत में भारत ही नहीं, दुनिया भर से लाई गई 400 से ज़्यादा केले की दुर्लभ किस्में उग रही हैं।

जब समंदर से लड़ने उतरीं महिलाएं: ओडिशा के तट पर हरियाली का सुरक्षा कवच
जब समंदर से लड़ने उतरीं महिलाएं: ओडिशा के तट पर हरियाली का सुरक्षा कवच

By Gaon Connection

बंगाल की खाड़ी के किनारे बसे ओडिशा के गाँव हर साल समंदर के ग़ुस्से का सामना करते हैं। साइक्लोन आते हैं, खेत डूब जाते हैं, घर उजड़ जाते हैं। लेकिन इन्हीं तटों पर महिलाओं ने एक ऐसा जंगल खड़ा किया है, जो सिर्फ पेड़ों का समूह नहीं, बल्कि एक जीवित सुरक्षा कवच है।

बंगाल की खाड़ी के किनारे बसे ओडिशा के गाँव हर साल समंदर के ग़ुस्से का सामना करते हैं। साइक्लोन आते हैं, खेत डूब जाते हैं, घर उजड़ जाते हैं। लेकिन इन्हीं तटों पर महिलाओं ने एक ऐसा जंगल खड़ा किया है, जो सिर्फ पेड़ों का समूह नहीं, बल्कि एक जीवित सुरक्षा कवच है।

एक पेड़-पूरा गाँव: उत्तराखंड के हर्षिल की मिसाल, जहाँ विकास ने प्रकृति से समझौता किया
एक पेड़-पूरा गाँव: उत्तराखंड के हर्षिल की मिसाल, जहाँ विकास ने प्रकृति से समझौता किया

By Divendra Singh

जब देश के अलग-अलग हिस्सों में सड़क, खनन और विकास के नाम पर जंगल कट रहे हैं, उसी समय उत्तराखंड के हर्षिल गाँव ने एक अलग रास्ता चुना। कहानी है एक देवदार की और उस पूरे गाँव की, जिसने तय किया कि विकास का मतलब प्रकृति की बलि नहीं होता।

जब देश के अलग-अलग हिस्सों में सड़क, खनन और विकास के नाम पर जंगल कट रहे हैं, उसी समय उत्तराखंड के हर्षिल गाँव ने एक अलग रास्ता चुना। कहानी है एक देवदार की और उस पूरे गाँव की, जिसने तय किया कि विकास का मतलब प्रकृति की बलि नहीं होता।

जहाँ लोग रिटायर होकर आराम ढूंढते हैं, वहाँ जगत सिंह ने जंगल उगा दिया
जहाँ लोग रिटायर होकर आराम ढूंढते हैं, वहाँ जगत सिंह ने जंगल उगा दिया

By Gaon Connection

रुद्रप्रयाग के एक छोटे से गाँव में, एक BSF जवान ने एक महिला की दर्दनाक मौत को सिर्फ याद नहीं रखा, उसने उसे बदलाव की जड़ बना दिया। सेवानिवृत्ति के बाद जहाँ लोग आराम की तलाश करते हैं, वहीं जगत सिंह चौधरी, जिन्हें लोग प्यार से ‘जंगली दादा’ कहते हैं, ने अपनी बंजर ज़मीन पर जंगल उगा दिया।

रुद्रप्रयाग के एक छोटे से गाँव में, एक BSF जवान ने एक महिला की दर्दनाक मौत को सिर्फ याद नहीं रखा, उसने उसे बदलाव की जड़ बना दिया। सेवानिवृत्ति के बाद जहाँ लोग आराम की तलाश करते हैं, वहीं जगत सिंह चौधरी, जिन्हें लोग प्यार से ‘जंगली दादा’ कहते हैं, ने अपनी बंजर ज़मीन पर जंगल उगा दिया।

थाली तक पहुँचने से पहले, क्या फ़सलों में एंटीबायोटिक हमारी सेहत को खतरे में डाल रहे हैं?
थाली तक पहुँचने से पहले, क्या फ़सलों में एंटीबायोटिक हमारी सेहत को खतरे में डाल रहे हैं?

By Divendra Singh

FAO की एक रिपोर्ट ने भारत में बागवानी और फसल उत्पादन में एंटीबायोटिक के इस्तेमाल पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। किसान की फसल बचाने की मजबूरी और उपभोक्ता की सेहत के बीच यह संतुलन कैसे बने, इसी पड़ताल की यह ज़मीनी कहानी।

FAO की एक रिपोर्ट ने भारत में बागवानी और फसल उत्पादन में एंटीबायोटिक के इस्तेमाल पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। किसान की फसल बचाने की मजबूरी और उपभोक्ता की सेहत के बीच यह संतुलन कैसे बने, इसी पड़ताल की यह ज़मीनी कहानी।

Food and Agriculture Organization की घोषणा: 2026 होगा अंतरराष्ट्रीय महिला किसान वर्ष। जानिए भारतीय महिला किसानों के लिए क्यों है यह ज़रूरी?
Food and Agriculture Organization की घोषणा: 2026 होगा अंतरराष्ट्रीय महिला किसान वर्ष। जानिए भारतीय महिला किसानों के लिए क्यों है यह ज़रूरी?

By Preeti Nahar

अगर महिला किसानों को पुरुषों के बराबर संसाधन मिलें, तो खेती की पैदावार 20-30% तक बढ़ सकती है। इससे दुनिया भर में भुखमरी 15% तक कम हो सकती है। महिला किसान सिर्फ़ परिवारों का पेट ही नहीं भरतीं, बल्कि ग्रामीण समुदायों को मज़बूत बनाती हैं और देश की अर्थव्यवस्था में भी बड़ा योगदान देती हैं।

अगर महिला किसानों को पुरुषों के बराबर संसाधन मिलें, तो खेती की पैदावार 20-30% तक बढ़ सकती है। इससे दुनिया भर में भुखमरी 15% तक कम हो सकती है। महिला किसान सिर्फ़ परिवारों का पेट ही नहीं भरतीं, बल्कि ग्रामीण समुदायों को मज़बूत बनाती हैं और देश की अर्थव्यवस्था में भी बड़ा योगदान देती हैं।

पानी की आत्मकथा: बादल से धरती और फिर समुद्र तक
पानी की आत्मकथा: बादल से धरती और फिर समुद्र तक

By Dr SB Misra

ग्रामीण भारत की जल-व्यवस्था कभी सामुदायिक तालाबों और कुओं पर टिकी थी। आज वही संरचनाएँ उपेक्षा और अतिक्रमण का शिकार हैं। अगर गाँवों की जल-धरोहर बचाई जाए, तो देश के जल संकट से निपटा जा सकता है।

ग्रामीण भारत की जल-व्यवस्था कभी सामुदायिक तालाबों और कुओं पर टिकी थी। आज वही संरचनाएँ उपेक्षा और अतिक्रमण का शिकार हैं। अगर गाँवों की जल-धरोहर बचाई जाए, तो देश के जल संकट से निपटा जा सकता है।

आंध्र से ओडिशा तक झींगा संकट: जब कुछ ही दिनों में उजड़ जाती है पूरी मेहनत
आंध्र से ओडिशा तक झींगा संकट: जब कुछ ही दिनों में उजड़ जाती है पूरी मेहनत

By Divendra Singh

व्हाइट स्पॉट डिज़ीज़ (WSSV) ने आंध्र प्रदेश से ओडिशा तक झींगा पालन को अस्तित्व की लड़ाई में बदल दिया है। यह सिर्फ़ एक बीमारी नहीं, बल्कि लाखों किसानों, मज़दूरों और तटीय अर्थव्यवस्था पर मंडराता संकट है।

व्हाइट स्पॉट डिज़ीज़ (WSSV) ने आंध्र प्रदेश से ओडिशा तक झींगा पालन को अस्तित्व की लड़ाई में बदल दिया है। यह सिर्फ़ एक बीमारी नहीं, बल्कि लाखों किसानों, मज़दूरों और तटीय अर्थव्यवस्था पर मंडराता संकट है।

सहकारिता के भरोसे आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश: ड्रोन दीदी से लेकर पैक्स तक बदली ग्रामीण अर्थव्यवस्था
सहकारिता के भरोसे आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश: ड्रोन दीदी से लेकर पैक्स तक बदली ग्रामीण अर्थव्यवस्था

By Gaon Connection

उत्तर प्रदेश में सहकारिता आंदोलन तेज़ी से ग्रामीण बदलाव का आधार बनता जा रहा है। ड्रोन दीदियों को प्रमाण पत्र, एम-पैक्स के ज़रिये उर्वरक आपूर्ति, जन औषधि केंद्रों से सस्ती दवाएं, सोलर रूफटॉप और गोदाम निर्माण जैसे कदमों ने सहकारिता को सिर्फ़ एक संस्था नहीं, बल्कि किसानों और युवाओं की आर्थिक रीढ़ बना दिया है।

उत्तर प्रदेश में सहकारिता आंदोलन तेज़ी से ग्रामीण बदलाव का आधार बनता जा रहा है। ड्रोन दीदियों को प्रमाण पत्र, एम-पैक्स के ज़रिये उर्वरक आपूर्ति, जन औषधि केंद्रों से सस्ती दवाएं, सोलर रूफटॉप और गोदाम निर्माण जैसे कदमों ने सहकारिता को सिर्फ़ एक संस्था नहीं, बल्कि किसानों और युवाओं की आर्थिक रीढ़ बना दिया है।

खाद संकट पर NSA का कवच, लेकिन किसान की समस्याएं हैं और भी गंभीर
खाद संकट पर NSA का कवच, लेकिन किसान की समस्याएं हैं और भी गंभीर

By Manvendra Singh

उत्तर प्रदेश में रबी सीजन अपने निर्णायक दौर में है। इस समय गेहूं, आलू, सरसों और दलहनों की फसल खेतों में खड़ी होती है और किसानों के लिए सबसे ज़रूरी होती है खाद। खासकर गेहूं में यूरिया की टॉप-ड्रेसिंग और आलू में डीएपी और एनपीके की जरूरत अचानक बढ़ जाती है। ऐसे वक्त में अगर खाद समय पर न मिले या ज़रूरत से कम मिले, तो पूरी फसल प्रभावित हो सकती है। इसी तर्ज़ पर उत्तर प्रदेश सरकार ने खाद की कालाबाज़ारी, नकली उर्वरकों की बिक्री और कृत्रिम कमी पैदा करने वालों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी NSA लगाने का फैसला किया है। यह फैसला जितना सख़्त दिखता है, उतने ही सवाल भी खड़े करता है। NSA क्यों लगाया गया, सरकार क्या दावा कर रही है, ज़मीन पर क्या हो रहा है और किसान इस पूरे सिस्टम को कैसे देख रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में रबी सीजन अपने निर्णायक दौर में है। इस समय गेहूं, आलू, सरसों और दलहनों की फसल खेतों में खड़ी होती है और किसानों के लिए सबसे ज़रूरी होती है खाद। खासकर गेहूं में यूरिया की टॉप-ड्रेसिंग और आलू में डीएपी और एनपीके की जरूरत अचानक बढ़ जाती है। ऐसे वक्त में अगर खाद समय पर न मिले या ज़रूरत से कम मिले, तो पूरी फसल प्रभावित हो सकती है। इसी तर्ज़ पर उत्तर प्रदेश सरकार ने खाद की कालाबाज़ारी, नकली उर्वरकों की बिक्री और कृत्रिम कमी पैदा करने वालों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी NSA लगाने का फैसला किया है। यह फैसला जितना सख़्त दिखता है, उतने ही सवाल भी खड़े करता है। NSA क्यों लगाया गया, सरकार क्या दावा कर रही है, ज़मीन पर क्या हो रहा है और किसान इस पूरे सिस्टम को कैसे देख रहे हैं।

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.