By Gaon Connection
उत्तराखंड सरकार ने विकास, पर्यटन और नागरिक जीवन सुधार के लिए ऐसे फैसले किए हैं, जो सीधे आम लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाएंगे। किसान, भूमिहीन, युवा प्रतियोगी परीक्षार्थी और शहरवासियों के लिए नई उम्मीदें और अवसर खुल रहे हैं
उत्तराखंड सरकार ने विकास, पर्यटन और नागरिक जीवन सुधार के लिए ऐसे फैसले किए हैं, जो सीधे आम लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाएंगे। किसान, भूमिहीन, युवा प्रतियोगी परीक्षार्थी और शहरवासियों के लिए नई उम्मीदें और अवसर खुल रहे हैं
By Dr SB Misra
भारत की खेती 10,000 साल पुरानी है, लेकिन आज किसान अपने ही खेत में असहाय खड़ा है। कैसे विकास के गलत मॉडल, रसायनिक खेती और नीतिगत खैरात ने किसान को आत्मनिर्भर से आश्रित बना दिया।
भारत की खेती 10,000 साल पुरानी है, लेकिन आज किसान अपने ही खेत में असहाय खड़ा है। कैसे विकास के गलत मॉडल, रसायनिक खेती और नीतिगत खैरात ने किसान को आत्मनिर्भर से आश्रित बना दिया।
By Dr SB Misra
गाँव में आज भी चिकित्सा व्यवस्था संतोषजनक नहीं है। 70% आबादी गाँवों में रहती है, लेकिन डॉक्टरों का सिर्फ़ 26% हिस्सा वहां उपलब्ध है। अस्पतालों की कमी, दवाइयों का अभाव, झोलाछाप डॉक्टरों का बोलबाला और तेजी से बढ़ती शहरी बीमारियां, ग्रामीण स्वास्थ्य को बड़ी चुनौती के रूप में खड़ी कर रही हैं।
गाँव में आज भी चिकित्सा व्यवस्था संतोषजनक नहीं है। 70% आबादी गाँवों में रहती है, लेकिन डॉक्टरों का सिर्फ़ 26% हिस्सा वहां उपलब्ध है। अस्पतालों की कमी, दवाइयों का अभाव, झोलाछाप डॉक्टरों का बोलबाला और तेजी से बढ़ती शहरी बीमारियां, ग्रामीण स्वास्थ्य को बड़ी चुनौती के रूप में खड़ी कर रही हैं।
By Divendra Singh
दो आदिवासी बहनें जब मंच पर गाती हैं, तो उनकी आवाज़ सिर्फ संगीत नहीं, संस्कृति की पुकार बन जाती है। उनके गीत पूरे आदिवासी समाज से पूछते हैं कि क्या हम अपनी जड़ों, अपनी पहचान और अपनी कुड़ुख भाषा से दूर जाते जा रहे हैं?
दो आदिवासी बहनें जब मंच पर गाती हैं, तो उनकी आवाज़ सिर्फ संगीत नहीं, संस्कृति की पुकार बन जाती है। उनके गीत पूरे आदिवासी समाज से पूछते हैं कि क्या हम अपनी जड़ों, अपनी पहचान और अपनी कुड़ुख भाषा से दूर जाते जा रहे हैं?
By Dr SB Misra
एक समय था जब गाँवों की लाइफ साइकिल और बैलगाड़ी तक सीमित थी। आज वहां मोटरसाइकिल, कार और ट्रैक्टर की भरमार है, लेकिन ड्राइविंग ट्रेनिंग और ट्रैफिक नियमों की समझ पीछे छूट गई। नतीजा: दुर्घटनाएं बढ़ रहीं, और जिम्मेदारी कोई लेने को तैयार नहीं।
एक समय था जब गाँवों की लाइफ साइकिल और बैलगाड़ी तक सीमित थी। आज वहां मोटरसाइकिल, कार और ट्रैक्टर की भरमार है, लेकिन ड्राइविंग ट्रेनिंग और ट्रैफिक नियमों की समझ पीछे छूट गई। नतीजा: दुर्घटनाएं बढ़ रहीं, और जिम्मेदारी कोई लेने को तैयार नहीं।
By Gaon Connection
बुंदेलखंड की सूखी ज़मीन से उगी है एक ऐसी कहानी जिसने हजारों महिलाओं की ज़िंदगी बदल दी। 2019 में शुरू हुई बलिनी मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी आज 63,000 से ज़्यादा महिलाओं को रोज़गार, आत्मनिर्भरता और सम्मान दे रही है और पूरे क्षेत्र की आर्थिक तस्वीर बदल रही है।
बुंदेलखंड की सूखी ज़मीन से उगी है एक ऐसी कहानी जिसने हजारों महिलाओं की ज़िंदगी बदल दी। 2019 में शुरू हुई बलिनी मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी आज 63,000 से ज़्यादा महिलाओं को रोज़गार, आत्मनिर्भरता और सम्मान दे रही है और पूरे क्षेत्र की आर्थिक तस्वीर बदल रही है।
By Divendra Singh
संवाद केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक एहसास है, जहाँ कोई मंच पर बोलता है, तो वह सिर्फ अपने समुदाय की बात नहीं करता, वह अपने पुरखों की धड़कनें, जंगलों की खुशबू और अपनी मिट्टी की स्मृतियाँ साथ लेकर आता है।
संवाद केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक एहसास है, जहाँ कोई मंच पर बोलता है, तो वह सिर्फ अपने समुदाय की बात नहीं करता, वह अपने पुरखों की धड़कनें, जंगलों की खुशबू और अपनी मिट्टी की स्मृतियाँ साथ लेकर आता है।
By Gaon Connection
COP30 में जारी क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2026 ने एक बार फिर दिखाया है कि जलवायु संकट अब भविष्य की आशंका नहीं, बल्कि वर्तमान की सच्चाई है। रिपोर्ट के मुताबिक, 1995 से 2024 के बीच भारत बार-बार बाढ़, चक्रवात, लू और सूखे जैसी चरम मौसम की घटनाओं से प्रभावित हुआ है और अब दुनिया के दस सबसे असुरक्षित देशों में नौवें स्थान पर है।
COP30 में जारी क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2026 ने एक बार फिर दिखाया है कि जलवायु संकट अब भविष्य की आशंका नहीं, बल्कि वर्तमान की सच्चाई है। रिपोर्ट के मुताबिक, 1995 से 2024 के बीच भारत बार-बार बाढ़, चक्रवात, लू और सूखे जैसी चरम मौसम की घटनाओं से प्रभावित हुआ है और अब दुनिया के दस सबसे असुरक्षित देशों में नौवें स्थान पर है।
By Dr SB Misra
आधुनिक भारत में हम भले ही तकनीक और विकास की राह पर आगे बढ़ गए हों, पर हमारी नैतिकता, शिक्षा और संस्कृति पीछे छूटती जा रही है। कैसे औपनिवेशिक मानसिकता, अंधी आधुनिकता और मूल्यों का ह्रास आज के समाज, राजनीति और शिक्षा- सबको प्रभावित कर रहा है।
आधुनिक भारत में हम भले ही तकनीक और विकास की राह पर आगे बढ़ गए हों, पर हमारी नैतिकता, शिक्षा और संस्कृति पीछे छूटती जा रही है। कैसे औपनिवेशिक मानसिकता, अंधी आधुनिकता और मूल्यों का ह्रास आज के समाज, राजनीति और शिक्षा- सबको प्रभावित कर रहा है।
By Manoj Bhawuk
छठ पूजा की सबसे बड़ी सुंदरता इसकी लोकभाषा और लोक-संगीत में है। छठी मइया को गीतों में संवाद पसंद है, संस्कृत के गूढ़ मंत्रों में नहीं। यही कारण है कि घर से घाट तक की यात्रा गीतों से भरी होती है
छठ पूजा की सबसे बड़ी सुंदरता इसकी लोकभाषा और लोक-संगीत में है। छठी मइया को गीतों में संवाद पसंद है, संस्कृत के गूढ़ मंत्रों में नहीं। यही कारण है कि घर से घाट तक की यात्रा गीतों से भरी होती है